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Historical Monuments of Alwar: Pandupol Shri Hanuman Temple

पाण्डुपोल   अलवर जिले के दर्शनीय स्थलों में पाण्डुपोल का अपना विशेष महत्व है। यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ—साथ ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पाण्डवों को जब कौरवों की सेना ने आ घेरा तो महाबली भीम ने पहाड़ में गदा मारकर अपना रास्ता निकाला था। […]

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Historical Monuments of Alwar: Bhartrihari Temple

भर्तृहरि  उज्जैन के राजा और महान योगी भर्तृहरि ने अपने अंतिम दिनों में अलवर को ही अपना तपस्या स्थल चुना। अलवर शहर से 35 किलोमीटर दूर स्थित यह तपस्या स्थल ‘भर्तृहरि’ के नाम से विख्यात है। प्राकृतिक स्थल होने के साथ ही यह ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी है। यहां बनी भर्तृहरि की समाधि पर

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Historical Monuments of Alwar: Taal vriksh

तालवृक्ष  अलवर से लगभग 35 किलोमीटर दूर तालवृक्ष जिले का एक सुरम्य स्थल है जो ऐतिहासिक और धार्मिक पवित्र स्थल के तौर पर भी जाना जाता है। अलवर—नारायणपुर मार्ग पर स्थित यह स्थल प्राकृतिक पर्यटन के तौर पर खासा मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि महान ऋषि मांडव्य ने इस स्थल को अपनी तपोस्थली

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Historical Monuments of Alwar: Siliserh lake

सीलीसेढ़  अलवर से करीब 16 किलोमीटर दूर तहीन ओर अरावली पर्वत की श्रेणियों से​ घिरा यह सुरम्य स्थल पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केन्द्र है। इस स्थल का समग्र सौन्दर्य घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरी नीली झील में सिमट कर आ गया है। वर्षा ऋतु में यह स्थान और भी अधिक मनोहारी  हो

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Dialects and Costumes of Alwar

अलवर की बोलियां और वेशभूषा वर्तमान में इस जिले में चार बोलियां उपयोग में लाई जाती है। जिले के पूर्वी भाग में ब्रज, पश्चिम में अहीरवाटी, उत्तर में मेवाती तथा दक्षिण भाग में ढूंढारी बोली इस्तेेमाल की जाती है। प्रमुखत: यहां मेवाती और अहीरवाटी बोली का ही प्राधान्य माना जाता है। ब्रज भाषा के प्रभाव जिले

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Painting and Arts of Alwar

अलवर की चित्रकला राजस्थान की विभिन्न ​चित्रकला शैलियों में अलवर शैली की अपनी विशिष्टता है। अलवर शैली की चित्रकला का विकास अलवर रियासत के संस्थापक राव राजा प्र​तापसिंह द्वारा 1775 में राजगढ़ को अपनी राजधानी बनाने से लेकर तत्कालीन महाराजा जयसिंह के शासनकाल (1892—1937) के अन्त तक रहा। इस काल में जिन कलाकारों ने अपनी

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Music of Alwar

अलवर की संगीत कला कलाओं की साधना और विकास में इस जिले के कलाकारों को अपनी देन रही है। यहां की संगीत परम्परा को दरबारी संगीत और लोक संगीत मे विभाजित किया जा सकता है। दरबारी संगीत में गणगौर, तीज, होली, दिपावली जैसे पर्व तथा विवाह और अन्य मांगलिक अवसरों पर आयोजित संगीत म​हफिलों में

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Literature of Alwar

अलवर का साहित्य              अलवर की साहित्य साधना भक्ति परम्परा, रीति परम्परा और आधुनिक साहित्य में विभाजित की जा सकती है। लोक भाषा और बोलियों में रचा साहित्य इस परम्परा का दूसरा अंग है। जिले के प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण वन अंचलों में स्थित पर्वतीय कन्दराएं प्राचीन काल से ही

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Freedom struggle in Alwar

अलवर में स्वतंत्रता संग्राम 1925— राज द्वारा की गई लगान वृद्धि के विरूद्ध किसान आन्दोलन, चौबीस मई को नीमूचाना में किसानों की बड़ी सभा। राज की सेना द्वारा गोलीकांड में अनेक व्यक्ति मरे, सैकड़ों दुधारू पशु जल मरे, गांव में आगजनी। गांधी जी ने ‘हरिजन’ में इसे जलियां वाला कांड की संज्ञा दी। 1932— हिन्दुस्तान

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Alwar: Geographical facts

अलवर का भौगोलिक स्थिति             राजस्थान प्रान्त के उत्तर पूर्व में स्थित अलवर जिला 27 डिग्री 4′ से 28 डिग्री 4′ उत्तरी अक्षांश और 76 डिग्री 7′ से 77 डिग्री 13′ पूर्वी देशान्तर तक फैला हुआ है। उत्तर से दक्षिण में करीब 137 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम में करीब 110

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