History of Rajasthan

Historical Places of Alwar: Shimla (Company Bagh)

शिमला (कंपनी बाग) अलवर के कम्पनी बाग में सन् 1885 में तत्कालीन महाराजा मंगलसिंह द्वारा निर्मित यह शिमला देशी—विदेशी पर्यटकों को तो अपनी ओर आकर्षित करता ही है, साथ ही अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण पूरे भारत में अपना सानी नहीं रखता। जो जमीन से पच्चीस फीट गहरे तीस सौ अस्सी फीट लंबे और 288 […]

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Historical Places of Alwar: Bala Fort or Bala Quila

बाला दुर्ग   अलवर का बाला दुर्ग ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण दुर्ग है। शिल्प शास्त्र के मुताबिक बाला दुर्ग यदियानी शिल्प जाति का है। यह समुद्रतल से 1960 फुट और समतल भूमि से एक हजार फुट ऊॅंचा है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक 3 मील, चौड़ाई पूर्व से पश्चिम तक एक मील है

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Monuments of Alwar: Naldeshwar Temple

नलदेश्वर  जिले में प्राकृतिक सुरम्य स्थलों में नलदेश्वर का भी नाम आता है। यह अलवर और थानागाजी के मध्य पहाड़ियों में स्थित है। सड़क मार्ग पर बारां से आगे चलने पर अलवर थानागाजी के बीच ​की ये पहाड़ियां स्थित है। सड़क के बाईं तरफ पहाड़ी की घाटी से अन्दर जाने वाला रास्ता ही नलदेश्वर को

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Historical Monuments of Alwar: Neelkanth Temple

नीलकंठ  अलवर जिले के दर्शनीय स्थलों में नीलकण्ठ भी एक सुरम्य दर्शनीय और धार्मिक स्थान है। कनिंघम के अनुसार अलवर शहर से दक्षिण पश्चिम में कोई 61 किलोमीटर दूर स्थित नीलकण्ठ कछवाह राज्य की स्थापना से पूर्व बडगूर्जर नरेशों की राजधानी था। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य बड़ा अनुपम है। इस स्थल पर ‘नीलकण्ठेश्वर’ का मन्दिर

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Alwar: National Park Sariska

सरिस्का  अलवर जयपुर मार्ग पर अलवर से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित सरिस्का अभयारण्य सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। आठ सौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में वन्यजीवों को विचरण करते हुए देखा जा सकता है। इसे 1955 में वन्यजीव आरक्षित भूमि घोषित किया गया था। 1979 में इसे बाघ

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Historical Monuments of Alwar: Pandupol Shri Hanuman Temple

पाण्डुपोल   अलवर जिले के दर्शनीय स्थलों में पाण्डुपोल का अपना विशेष महत्व है। यह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ—साथ ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पाण्डवों को जब कौरवों की सेना ने आ घेरा तो महाबली भीम ने पहाड़ में गदा मारकर अपना रास्ता निकाला था।

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Historical Monuments of Alwar: Bhartrihari Temple

भर्तृहरि  उज्जैन के राजा और महान योगी भर्तृहरि ने अपने अंतिम दिनों में अलवर को ही अपना तपस्या स्थल चुना। अलवर शहर से 35 किलोमीटर दूर स्थित यह तपस्या स्थल ‘भर्तृहरि’ के नाम से विख्यात है। प्राकृतिक स्थल होने के साथ ही यह ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी है। यहां बनी भर्तृहरि की समाधि पर

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Historical Monuments of Alwar: Taal vriksh

तालवृक्ष  अलवर से लगभग 35 किलोमीटर दूर तालवृक्ष जिले का एक सुरम्य स्थल है जो ऐतिहासिक और धार्मिक पवित्र स्थल के तौर पर भी जाना जाता है। अलवर—नारायणपुर मार्ग पर स्थित यह स्थल प्राकृतिक पर्यटन के तौर पर खासा मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि महान ऋषि मांडव्य ने इस स्थल को अपनी तपोस्थली

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Historical Monuments of Alwar: Siliserh lake

सीलीसेढ़  अलवर से करीब 16 किलोमीटर दूर तहीन ओर अरावली पर्वत की श्रेणियों से​ घिरा यह सुरम्य स्थल पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केन्द्र है। इस स्थल का समग्र सौन्दर्य घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरी नीली झील में सिमट कर आ गया है। वर्षा ऋतु में यह स्थान और भी अधिक मनोहारी  हो

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Dialects and Costumes of Alwar

अलवर की बोलियां और वेशभूषा वर्तमान में इस जिले में चार बोलियां उपयोग में लाई जाती है। जिले के पूर्वी भाग में ब्रज, पश्चिम में अहीरवाटी, उत्तर में मेवाती तथा दक्षिण भाग में ढूंढारी बोली इस्तेेमाल की जाती है। प्रमुखत: यहां मेवाती और अहीरवाटी बोली का ही प्राधान्य माना जाता है। ब्रज भाषा के प्रभाव जिले

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