Interstate Multipurpose River Valley Projects in Rajasthan | rasnotes.com

Interstate Multipurpose River Valley Projects in Rajasthan
 

राजस्थान की अन्तर्राज्यीय बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएं  

 

चम्बल बहुउद्देश्यीय परियोजना 

 
(1) चंबल परियोजना राजस्थान व मध्यप्रदेश की 50ः50 फीसदी हिस्सेदारी वाली संयुक्त परियोजना है। 
 
(2) परियोजना का आरम्भिक उद्देश्य  चम्बल की बाढ से होने वाले नुकसान को समाप्त कर 4.58 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई व 379 मेगावाट विद्युत उत्पादन करना था। 

(3) इस परियोजना के अन्तर्गत चार बांध बनाए गए हैं – 
(क) गांधी सागर बांध 
(ख) राणा-प्रताप सागर बांध 
(ग) जवाहर सागर बांध 
(घ) कोटा बैराज 
 
(क) गांधी सागर बांध 
 
चौरासीगढ़ के पास यह बांध 1960 में मध्यप्रदेश के मानपुरा तहसील में बनाया गया है। 
यह योजना का सबसे बड़ा जलाशय है एवं इससे दो नहरें निकाली गई है |
बांई नहर बूंदी तक जाकर मेज नदी में मिलती है। 
दांयी नहर पार्वती नदी को पार कर मध्यप्रदेश में गई है जिस पर एक जल विद्युत स्टेशन बनाया गया है। 
इन नहरों से कुल 4.44 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। 
विद्युत स्टेशन से कुल 115 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होता है। 
 
(ख) राणाप्रताप सागर बांध 
 
यह बांध चित्तौड़गढ़ में चूलिया जल प्रपात  के नजदीक रावतभाटा में बनाया गया है। 
बांध से 1.2 लाख हैक्टेयर भूमि में सिंचाई की जा रही है। 
कुल 172 मेगावाट विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है। 
 
(ग) जवाहर सागर बांध 
कोटा के समीप बोरावास गांव में बांध बनाया गया है जो कि पिकअप बांध है। 
बांध से 99 मेगावाट विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है। 
 
(घ) कोटा बैराज  
इसे कोटा शहर के नजदीक बनाया गया है। 

केवल सिंचाई की सुविधा के लिए बनाए गए बांध को बैराज कहते हैं। 

इसमें दो नहरें निकाली गई हैं। दांयी नहर से मध्यप्रदेश  के क्षेत्रों में सिंचाई होती है जबकि बांयी नहर से राजस्थान के कोटा, बूंदी, टोंक, करौली, सवाईमाधोपुर जिलों में सिंचाई व पेयजल की आपूर्ति होती है। 

कोटा में औद्योगिक ,कृषि एवं पर्यटन के विकास में चम्बल का महत्वपूर्ण योगदान है। 

चम्बल कमाण्ड क्षेत्र में पानी का जमाव, क्षारयुक्त भूमि व पानी के मिट्टी में सोख लिए जाने की समस्याएं उत्पन्न हो गई है, जिससे सिंचाई की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है। विश्व बैंक की सहायक संस्था अंतर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन की सहायता से इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। 
 

माही बजाज सागर परियोजना

 
(1) यह राजस्थान तथा गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 
 
(2) माही नदी के पानी का उपयोग करने के लिए राजस्थान व गुजरात में 1966 में  समझौता हुआ था जिसके तहत परियोजना की लागत का 55 प्रतिशत गुजरात द्वारा तथा  45 प्रतिशत राजस्थान द्वारा व्यय किया जाना था। 
 
(3) परियोजना के अन्तर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा में माही नदी पर माही बजाज सागर बांध गनाया गया है। यह राजस्थान का सबसे लम्बा बांध है। 
 
(4) परियोजना के तीन चरणों में माही बजाज सागर बांध के अलावा द्वितीय चरण में डूंगरपुर में सिंचाई की सुविधा के लिए आनन्दपुरी व सागवाड़ा दो नहरें निकाली गई है।
 
(5) तृतीय चरण में दो विद्युत गृहों का निर्माण किया गया है जिससे 140 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। 
 
(6) योजना के अन्तर्गत माही बजाज सागर के अलावा दो बांध कागदी पिक अप (बांसवाड़ा) व कडाना बांध (गुजरात) भी बनाए गए हैं। 
 
(7) माही परियोजना के कारण दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर व बांसवाड़ा क्षेत्र में आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव हुए हैं साथ ही कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में तेजी से बदलाव हुए हैं। इस प्रकार यह परियोजना आदिवासी क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुई है। 
 

भाखड़ा नांगल परियोजना 

 
(1) यह भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियोजना है। 
 
(2) राजस्थान, पंजाब व हरियाणा को इस परियोजना से लाभ मिल रहा है। राजस्थान का इस परियोजना में 15.2 प्रतिशत हिस्सा रखा गया है। 
 
(3) इस परियोजना के अन्तर्गत भाखड़ा व नांगल बांध, नहरें व विद्युत गृहों का निर्माण किया गया है। 
 
(4) भाखड़ा बांध सतलज नदी पर पंजाब के होशियारपुर जिले में भाखड़ा नामक स्थान पर बनाया गया है। इसके जलाशय का नाम गोविंदसागर है। यह भारत का सबसे ऊंचा गुरुत्वीय बांध है। इसे पण्डित नेहरू ने चमत्कारिक विराट वस्तु कहा था। 
 
(5) इस परियोजना से गंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों को  सिंचाई सुविधा मिलती है। 
 
(6) परियोजना से प्रदेश में कुल 2-3 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई व 227.32 मेगावाट विद्युत प्रापत होती है। 
 

व्यास परियोजना व पोंग बांध 

 
(1) यह पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के सहयोग से निर्मित बहुउद्देश्यीय परियोजना है। 
 
(2) परियोजना के अन्तर्गत रावी व व्यास नदी के जल का उपयोग करते हुए सतलज व्यास लिंक नहर और पोंग बांध व पंडोह बांध का निर्माण किया गया है। 
 
(ब) व्यास नदी पर निर्मित पोंग बांध के जल का उपयोग इंदिरा गाँधी नहर परियोजना   में पानी की कमी के समय जलापूर्ति को स्थाई रूप से जल मिलता रहे।
 
(क) इस परियोजना से तीनों राज्यों की कुल 21 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है तथा राजस्थान को 150 मेगावाट विद्युत प्राप्त होती है। 
 
(म) रावी-व्यास जल के वितरण को लेकर हुए विवाद को निपटाने के लिए इराडी आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग का गठन राजीव लोंगेवाला समझौते को लागू करने के लिए मुख्य रूप से की गई थी। 
 
इराडी आयोग ने 1987 में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी जिसके तहत पंजाब व हरियाणा का अंश बढ़ाया गया जबकि राजस्थान का अंश यथावत रहा। पंजाब का मत है कि रावी-व्यास राजस्थान में होकर नहीं बहती इसलिए राजस्थान का इनसे पानी नहीं दिया जाए। पंजाब ने सतलज-यमुना लिंक नहर का निर्माण भी इस कारण से नहीं करवाया। 
 

सिंचित क्षेत्रों में कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम (CAD)

 
(1) राज्य सरकार ने पांचवी पंचवर्षीय योजना में कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम को अपनाया था। 
 
(2) वर्तमान में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत इंदिरा गांधी नहर परियोजना का क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, चम्बल कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम, बीसलपुर कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम, माही कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम शामिल है। 
 
(3) इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य सिंचाई की संभाव्यता व उपयोग के अन्तराल को खत्म करना है। 
इंदिरा गाँधी नहर क्षेत्र विकास कार्यक्रम CAD बीकानेर 
इसमें 6 प्रोजेक्ट सम्मिलित है 
1.इंदिरा गाँधी नहर प्रोजेक्ट 


2.सिद्धमुख नहर प्रोजेक्ट 


3.अमर सिंह जसाना उपशाखा सिंचाई प्रोजेक्ट 

4. गंगनहर प्रोजेक्ट 
 
5. भाकड़ा नहर प्रोजेक्ट
 
6. मण्डी विकास कमिश्नर
 
ये सभी प्रोजेक्ट CAD, IGNP के अन्तर्गत आते हैं, जिसका कार्यालय बीकानेर में है। CAD द्वारा इस क्षेत्र में निम्न कार्य किए जाते हैं। 
(1) भूमि समतल करना
(2) पानी के खालों (नालियों) को पक्का करना
(3) आबादी बसाने के लिए आवश्यक  सुविधाएं विकसित करना। 
 
इन कार्यों के लिए विश्व बैंक की IDA (अन्तर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन) से सहायता मिलती है। इन क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिए जापान के ओवरसीज इकोनोमिक को-आपरेशन फण्ड (OECF) द्वारा सहायता की गई है। 
 

चम्बल कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम  

 
(1) यह क्षेत्र IGNP के क्षेत्र से पृथक है क्योंकि यह क्षेत्र  पहले से आबाद था तथा सामाजिक सेवाएं भी पहले से ही विकसित अवस्था में थी। अतः इस क्षेत्र में पहले से  स्थापित व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य CAD द्वारा किया जा रहा है। यहां 1974 में कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम में भी विश्व बैंक की मदद ली गई है। इसके अंतर्गत बेहतर जल प्रबंधन के कार्य किए जा रहे हैं। 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top