किसी भी राज्य के आर्थिक विकास के लिए मजबूत आधारभूत ढांचे का होना आवश्यक है।
सड़क एवं परिवहन, रेलवे, बिजली, डाक और दूरसंचार सेवाओं की गणना आधारभूत ढांचे के रूप में की जाती है।
इन संसाधनों की उपलब्धता ही किसी प्रदेश के औद्योगिक विकास को गति प्रदान कर सकती है तथा साथ ही यह गरीबी उन्मूलन व क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने में भी सहायक होता है।
ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण- दो आधारों पर किया जाता है।
नवीनीकरण के आधार पर –
नव्यकरणीय ऊर्जा ऐसे संसाधन जिनकी उपलब्धता पर्याप्त है तथा जिनका नवीनीकरण हो सके जैसे जल, सौर, पवन, बायोगैस, बायोमास, ज्वारीय ऊर्जा आदि।
अनव्यकरणीय ऊर्जा स्रोत – ऐसे ऊर्जा संसाधन जिनको पुनः बनाया नहीं जा सकता जैसे कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम आदि।
परम्परा के आधार पर
परम्परागत ऊर्जा स्रोत – ऐसे ऊर्जा संसाधन जिनका उपयोग हम प्राचीन काल से करते आ रहे हैं जैसे कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, जल विद्युत, कोयला, खनिज तेल, पेट्रोलियम को जीवाश्म ईधन कहा जाता है।
गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत – ऐसे ऊर्जा संसाधन जिनका विकास पिछले कुछ दशकों में हुआ है। जिनका विकास अभी किया जा रहा है। जैसे पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोगैस, बायोमास, ज्वारीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा आदि। इनको ऊर्जा का वैकल्पिक श्रोत भी कहा जाता है।
परम्परागत एवं गैर परम्परागत दोनों ही श्रोतों से राज्य में विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
राज्य में ऊर्जा के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है-
1. कोटा, सूरतगढ़ (गंगानगर) व छबड़ा तापीय संयंत्र
2. धौलपुर गैस तापीय संयंत्र
3. माही पन बिजली परियोजना
4. भाखड़ा, व्यास, चम्बल, सतपुडा अन्तर्राज्यीय भागीदारी परियोजनाएं
5. रिहन्द, दादरी, अन्ता, औरेया, दादरी गैस संयंत्र, ऊंचाहार तापीय व टनकपुर, सलाल चमेरा व ऊरी जल विद्युत केन्द्रीय परियोजनाएं
6. इसके अलावा RREC, RSMML एवं निजी क्षेत्र की पवन ऊर्जा/बायोमास ऊर्जा व सौर ऊर्जा परियोजनाओं से राज्य को बिजली प्राप्त होती है।
7. राजस्थान अणु शक्ति प्रोजेक्ट (RAPP) कनाड़ा के सहयोग से रावतभाटा नामक स्थान पर बनाया गया है ।
राज्य में प्रति व्यक्ति विद्युत उपभोग (2015-16) के अनुसार 1163.52 किलोवाट है जो अखिल भारतीय औसत 1074.65 किलोवाट से अधिक है।
राज्य में मार्च 2019 तक ऊर्जा की स्थापित क्षमता 21077.64 मेगावाट थी। वर्ष 2019-20 में दिसम्बर 19 तक इसमें 736.96 मेगावाट की वृद्धि दर्ज की गई है।
स्थापित 21077.64 मेगावाट में से राज्य की स्वयं के स्वामित्व एवं राज्य की साझेदारी में सृजित क्षमता 7470.79 मेगावाट (35.4 प्रतिशत) है। जिसमें 5850 मेगावाट तापीय, 1017.29 मेगावाट जल व 603.50 मेगावाट गैस ऊर्जा का हिस्सा है।
केन्द्रीय परियोजनाओं से राज्य को 3213 मेगावाट ऊर्जा आवंटित होती है।
RREC, RSMML व निजी क्षेत्र के पवन, ऊर्जा, बायोमास एवं सौर ऊर्जा परियोजनाओं की कुल क्षमता 10394.85 मेगावाट है।
इस 10394.85 मेगावाट में से 4139.20 मेगावाट ऊर्जा पवन से, 2411.70 मेगावाट सौर ऊर्जा से 3742 मेगावाट तापीय/जल विद्युत से तथा 101.95 मेगावाट ऊर्जा का स्रोत बायोमास है।
ऊर्जा क्षेत्र में सुधार एवं पुनर्सरचना के लिए ऊर्जा क्षेत्र सुधार अधिनियम 1999 को राजस्थान में 1 जून, 2000 को लागू कर दिया गया। उक्त सुधारों के तहत राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल का पुनर्गठन करके विशेषज्ञता के आधार पर उत्पादन, वितरण एवं प्रसारण से संबंधित पांच कम्पनियों का गठन किया गया जो निम्नाुनसार है-
(क) राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लि.
(ख) राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि.
(ग) जयपुर विद्युत वितरण निगम लि.
(घ) अजमेर विद्युत वितरण निगम लि.
(ड़) जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि.
इस प्रकार 19 जुलाई, 2000 को विश्व बैंक के साथ समझौते के तहत विद्युत् उत्पादन ,प्रसारण एवं वितरण व्यवस्था की मजबूती के लिए विद्युत क्षेत्र का पुनर्गठन किया गया था।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि.
विद्युत उत्पादन के लिए कार्यरत तापीय ऊर्जा संयंत्रों में सामान्यतः कोयले का उपयोग किया जाता है। जीवाश्म ईधन यथा कोयला, गैस आदि की उपलब्धता सीमित है तथा ये पर्यावरण प्रदूषण के कारक भी है।
राज्य में सर्वश्रेष्ठ किस्म का लिग्नाइट, कोयला पाया जाता है, जिसका खनन बीकानेर के पलाना और बरसिंगसर तथा बाड़मेर के जालीपा, कपूरड़ी एवं गिरल में किया जाता है। बीकानेर के बिथनोक, गुढा, खारा, चान्नेरी, गंगा सरोवर, मुंध भी प्रमुख लिग्नाइट क्षेत्र है |
वर्तमान में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों पर जोर दिया जाने लगा है। इसी क्रम में राज्य में भी ऊर्जा के गैर परम्परागत श्रोत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास आदि का विकास किया जा रहा है
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि.(RVPN) की अनुषगी इकाइयां निम्न विद्युत गृहों का संचालन किया जाता है-
क. सूरतगढ़ थर्मल पावर स्टेशन – 1500 मेगावाट
ख. कोटा सुपर थर्मल पावर स्टेशन – 1240 मेगावाट
ग. छबड़ा सुपर थर्मल पावर स्टेशन – 1000 मेगावाट
घ. छबड़ा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर स्टेशन – 1000 मेगावाट
च. कालीसिंध थर्मल पावर स्टेशन – 1200 मेगावाट
छ. धौलपुर गैस थर्मल पावर स्टेशन – 330 मेगावाट
ज. रामगढ़ गैस थर्मल पावर स्टेशन – 273.5 मेगावाट
झ. माही जल विद्युत गृह – प्रथम व द्वितीय – 140 मेगावाट
ट. लघु जल विद्युत गृह (10) – 23.85 मेगावाट
RVPN की अनुषंगी कम्पनी गिरल लिग्नाइट पावर लिमिटेड की स्थापित क्षमता 250 मेगावाट है।
अन्तर्राज्यीय साझेदारी परियोजनान्तर्गत राणा प्रताप सागर (172 मेगावाट) का संचालन व संधारण भी RVPN द्वारा किया जाता है।
कोटा सुपर थर्मल पावर स्टेशन देश में श्रेष्ठतम कार्य निष्पादन करने वाले ताप बिजली घरों में प्रमुख स्थान रखता है।
राजवेस्ट पावर लि. भद्रेश (बाड़मेर) में लिग्नाइट आधारित तापीय विद्युत केन्द्र का परिचालन करता है। इसकी कुल स्थापित क्षमता 1080 मेगावाट है।
अडानी पावर कवई (बारां) में स्थित है।
राहूघाट विद्युत परियोजना – चम्बल नदी पर करौली के निकट चार बांध बनाकर उन पर स्थापित विद्युत गहों से कुल 270 मेगावाट संभावित उत्पादन राजस्थान व मध्यप्रदेश की 50ः50 भागीदारी के आधार पर प्रस्तावित था। अभी प्रक्रियाधीन है।
राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम
राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम का कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत पंजीकरण 19 जून, 2000 को हो गया था तथा 19 जुलाई, 2000 को इसे राज्य प्रसारण निकाय घोषित किया गया।
यह कम्पनी मुख्यतः 765 KV, 400 KV, 220 KV व 132 KV विद्युत प्रसारण लाइनों एवं सब स्टेशनों का निर्माण, रख-रखाव एवं संचालन का कार्य करती है।
यह विद्युत संबंधी सूचना और आंकड़ों का संकलन, अध्ययन, अन्वेषण एवं आधुनिकीकरण के लिए सुधारात्मक उपायों को भी लागू करती है।
विद्युत वितरण कम्पनियों (Discoms) को आवश्यकता के अनुरूप लघु, मध्यम एवं दीर्घकालीन आधार पर सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2015 में राजस्थान ऊर्जा विकास निगम का गठन किया गया था।
राजस्थान राज्य विद्युत विनियामक आयोग
विद्युत क्षेत्र में सुधारों के अन्तर्गत विद्युत अधिनियम 2003 के तहत राजस्थान राज्य विद्युत विनियामग आयोग का एक स्वतंत्र संस्था के रूप में गठन किया गया है जो राज्य के विद्युत निगमों के कार्याें का नियमन करता है तथा विद्युत ट्रांसमिशन, सप्लाई के लाइसेंस जारी करता है।
विभिन्न लाइसेंसी व उत्पादन निगमों के बीच विवादों के निपटान का कार्य भी इस आयोग द्वारा किया जाता है।
विद्युत दरों का निर्धारण भी आयोग करता है।
उत्पादित विद्युत् का उपभोक्ताओं तक वितरण का कार्य विद्युत् वितरण निगमों (discoms) द्वारा अपने अपने क्षेत्र में किया जाता है