Syllabus Notes राजस्थान के प्रमुख राजवंश- गुहिल राजवंश
➤ राजपूतों का आरंभिक राजवंश माना जाता है। राजस्थान में इसके संस्थापक बप्पा रावल थे।
➤ इस वंश के पितृ पुरूष या पहले शासक को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं।
गुहिलों की प्रमुख शाखायें
कल्याणपुर के गुहिल
➤ राजा पद्र इस वंश का प्रमुख शासक हुआ।
➤ इसके अलावा इस शाखा में देवगण,भाविहित और भेति जैसे शासक हुये।
चाटसू के गुहिल
➤ चाटसू और नगर जो वर्तमान जयपुर में स्थित हैं, इस शाखा के शासको का स्थान रहा।
➤ इस शाखा का संस्थापक भर्तृभट्ट माना जाता है।
➤ इस शाखा में ईशान भट्ट, उपेन्द्र भट्ट और गुहिल नाम के यशस्वी शासक हुये।
मालवा के गुहिल
➤ चाटसू के गुहिलों ने मालवा में अपने शासन का विस्तार किया और आगे चलकर यह एक अलग शाखा के तौर पर विकसित हुये।
➤ इस शाखा में पृथ्वीपाल, तिहुणपाल, विजयपाल, सूरपाल, अमृतपाल, सोमेश्वर और विजयपाल उल्लेखनीय शासक हुये।
वागड़ के गुहिल
➤ मालवा के गुहिल शासक विजयपाल ने वागड़ में इस गुहिल शाखा की नींव डाली।
धोड के गुहिल
➤ धोड के गुहिल चित्तौड़गढ़ के मौर्य शासक धवलप्पदेव के सामंत थे।
काठियावाड़ और मारवाड़ के गुहिल
➤ काठियावाड़ के गुहिल सोलंकी राजा सिद्धराज और कुमारपाल के सामंत थे।
मेवाड़ के गुहिल
➤ यह इस राजवंश की सबसे प्रतापी शाखा थी। यह माना जाता है कि मेवाड़ के गुहिल आनंदपुर वड़नगर से आकर यहां बसे थे।
➤ इनके सिक्के भी मिले है जो इस बात को दर्शाते हैं कि इन्होंने राजस्थान में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
मेवाड़ के गुहिलों के प्रमुख शासक
शिलादित्य: नागदा में भीलों को पराजित किया और अपने नाम का सिक्का चलाया। इसी के शासन काल में वड़नगर के जेजक यहां बसे और लोगों को खनिजों का महत्व समझाया।
अपराजित: इसने अपनी सैनिक शक्ति को बहुत बढ़ाया और गुहिलों के प्रभाव में बहुत बढ़ोतरी की। इसके सेनापति वरसिंह की पत्नी अरून्धति ने यहां विष्णु मंंदिर का निर्माण करवाया।
कालभोज: कालभोज अपराजित का पौत्र था, इसने कर्नाटक तक अपना प्रभाव बढ़ाया।
खुम्माण प्रथम: यह कालभोज का पुत्र था और इसने सफलतापूर्वक आरंभिक अरब आक्रमणों का सामना कर अपने साम्राज्य को बनाये रखा।
इसके बाद राष्ट्रकूटो और प्रतिहारों की बढ़ती हुई शक्ति की वजह से गुहिल कमजोर हुये और उनका साम्राज्य सिकुड़कर राजधानी नागदा तक ही सीमित रह गया।
खुम्माण तृतीय: खुम्माण तृतीय ने एक बार फिर गुहिलों की प्रतिष्ठा को वापस लौटाया और अपने क्षेत्र को फिर से हासिल कर लिया। कुंभलगढ़ प्रशस्ति में उसे अगो, कलिंगो, सौराष्ट्रो, तेलगो, द्रविडो और गौडा का विजेता कहा गया।
भर्तृभट्ट द्वितीय: खुम्माण तृतीय का बेटा था और अपने पिता के साम्राज्य का और विस्तार किया। इसी के शासनकाल में आदिवाराह मंदिर का निर्माण हुआ।
अल्लट: कई ख्यातों में इसे आलुरावल भी कहा गया है। यह भर्तृभट्ट का पुत्र था। इसने परमारों के शासक देवाल परमार को परास्त किया। इसने राष्ट्रकूटों और हूणों से मित्रता की और हूणों की कन्या हरियादेवी से विवाह किया। इसने सैनिक सत्ता के साथ ही व्यापार पर भी ध्यान दिया और मेवाड़ को एक व्यापारिक केन्द्र बना दिया।
नरवाहन: अल्लट के पुत्र था और इसने अपनी शक्ति को बनाये रखने के लिये चौहान राजा जेजय की पुत्री से विवाह किया। इसके बाद मेवाड़ की शक्ति का ह्वास हो गया।
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Rajasthan History Syllabus Notes in Hindi: