अजमेर का ऐतिहासिक परिदृश्य
राजस्थान के मध्य में स्थित अजमेर को बारहवीं शताब्दी में चौहान राजाओं की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। राजा अजयपाल ने ईसा की सातवीं शताब्दी में इस नगर की स्थापना की। स्वतंत्रता के पश्चात अक्टूबर, 1956 तक अजमेर सी श्रेणी के राज्यों में से एक था। नवम्बर, 1956 में अजमेर मेरवाड़ा का राजस्थान में विलय हो गया। अजमेर जिले के पूर्व में जयपुर और टोंक जिले पश्चिम में पाली, उत्तर में नागौर और दक्षिण में भीलवाड़ा जिले की सीमाएं हैं।
अजमेर पर 700 वर्षों तक चौहान वंश के चेची गुर्जरों का राज रहा। अजमेर पृथ्वीराज चौहान के राज्य का एक बड़ा नगर था। 1193 में दिल्ली के ग़ुलाम वंश ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। मुग़ल सम्राट अकबर ने पुत्र की इच्छा में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में जियारत की थी। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती 12वीं शती में ईरान से भारत आए थे। अकबर और जहाँगीर ने इस दरग़ाह के पास ही मस्जिदें बनवाई थीं। शाहजहाँ ने अजमेर को अपने अस्थायी निवास-स्थान के लिए निकटवर्ती तारागढ़ की पहाड़ी पर भी उसने एक दुर्ग-प्रासाद का निर्माण करवाया था, जिसे विशप हेबर ने भारत का जिब्राल्टर कहा है। 1878 में अजमेर क्षेत्र को मुख्य आयुक्त के प्रान्त के अजमेर-मेरवाड़ रूप में गठित किया गया और दो अलग इलाक़ों में बाँट दिया गया। इनमें से बड़े में अजमेर और मेरवाड़ उपखण्ड थे तथा दक्षिण-पूर्व में छोटा केकड़ी उपखण्ड था। 1956 में यह राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया।