राजस्थान में जौहर एवं साके
चित्तौड़गढ़ के साके
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प्रथम साका सन् 1303 में हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर विजय के बाद चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
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इसी समय चित्तौड़गढ़ का पहला शाका हुआ। इस समय शासक राणा रतनसिंह थे।
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दूसरा साका सन् 1534 में हुआ जब गुजरातके सुल्तान बहादुर शाह ने एक विशाल सेना लेकर चित्तौड़ पर हमला किया। राजमाता हाड़ी कर्मावती और दुर्ग की सैकड़ो विरांगनाओं ने जौहर किया।
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तीसरा साका सन 1567 में हुआ जब मुगल बादशाह अकबर ने राणा उदयसिंह के शासन काल में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। यह साका जयमल राठौड़ और पत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।
साका
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वर्ष
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शासक
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आक्रमणकारी
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पहला
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1303
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राणा रतनसिंह
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अलाउद्दीन खिलजी
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दूसरा
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1534
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हाड़ी कर्मावती
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बहादुर शाह
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तीसरा
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1567
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राणा उदयसिंह
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अकबर
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जैसलमेर के साके
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जैसलमेर में कुल ढाई साके होना माना जाता है।
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पहला साका अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित अगणित योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान कर केसरिया किया और वीरांगनाओ ने जौहर किया।
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दूसरा साका फिरोज शाह तुगलक के शासन के शुरुआती वर्षों में हुआ। रावल दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और वीरांगनाओं ने जौहर किया।
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तीसरा साका आधा साका माना जाता है। 1550 में राव लूणकरण के शासन काल में कंधार के शासक अमीर अली के आक्रमण के समय हुआ था। इसे आधा साका माने जाने का कारण इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ।
साका
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वर्ष
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शासक
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आक्रमणकारी
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पहला
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1294
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रावल मूलराज
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अलाउद्दीन खिलजी
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दूसरा
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—
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रावल दूदा
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फिरोज शाह तुगलक
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तीसरा
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1550
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राव लूणकरण
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अमीर अली
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गागरोण का साके
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गागरोण का पहला साका 1423 ईस्वी में हुआ। शासक अचलदास खींची के शासनकाल में मांडू के सुल्तान अलपखां (होशंगशाह) गोरी ने आक्रमण किया। अचलदास खींची री वचनिका में इसका उल्लेख विस्तार से मिलता है।
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गागरोण का दूसरा साका 1444 ईस्वी में हुआ। जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया।
साका
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वर्ष
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शासक
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आक्रमणकारी
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पहला
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1423
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अचलदास खींची
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अलपखां गोरी
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दूसरा
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1444
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—–
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महमूद खिलजी
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रणथंभौर का साका
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यह सन् 1301 में हम्मीद देव चौहान के शासन काल में हुआ। अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के कारण वीरगति को प्राप्त हुए। वीरांगनाओं ने हम्मीद देव की पत्नी रंगादेवी के साथ जौहर किया था।
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राव हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन के विद्रोही सेनापतियों को अपने यहां आश्रय देकर अलाउद्दीन से उनकी रक्षा के लिए युद्ध किया।
जालौर का साका
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कान्हड़देव के शासनकाल में 1311 – 12 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। कान्हड़देव सोनगरा और उनके पुत्र वीरमदेव ने लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दी और वीरांगनाओं ने जौहर किया। कवि पद्मनाभ ने कान्हड़दे प्रबन्ध में इस ऐतिहासिक घटना का विशद् वर्णन किया है।
सिवाणा का साका
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सिवाणा का पहला साका 1310 में हुआ जब वीर सातलदेव और सोम (सोमेश्वर) ने अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दी। यहां भी वीर स्त्रियों ने जौहर किया। सिवाणा का नाम इस साके के बाद अलाउद्दीन ने बदलकर खैराबाद कर दिया था।
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सिवाणा का दूसरा साका अकबर के शासन काल में हुआ जब मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया। वहां के शासक वीर कल्ला राठौड़ ने लड़ते हुए वीरगति पाई और महिलाओं ने जौहर किया।
साका
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वर्ष
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शासक
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आक्रमणकारी
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पहला
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1310
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वीर सातलदेव
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अलाउद्दीन खिलजी
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दूसरा
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वीरकल्ला राठौड़
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अकबर
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