राजस्थान की चित्रकला
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राजस्थान में चित्रकला का इतिहास प्राचीन है और राजवंशों से इस कला को आश्रय मिलने की वजह से मरूभूमि में चित्रकला का बहुत विकास हुआ।
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राजस्थान में कला, रंग, रेखांकन और क्षेत्र के लिहाज से अलग-अलग शैलियों की चित्रकला का विकास हुआ।
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शैलियों के लिहाज से देखें तो राजस्थान की चित्रकला को मोटे तौर पर 12 भागों में विभाजित किया गया है।
मेवाड़ शैली
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मारवाड़ शैली
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नाथद्वारा शैली
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किशनगढ़ शैली
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बीकानेर शैली
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बूंदी शैली
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कोटा शैली
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जयपुर शैली
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अलवर शैली
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उनियारा शैली
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अजमेर शैली
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डूंगरपुर शैली
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रंग की दृष्टि से देखें तो जयपुर और अलवर के चित्रों में हरे रंग का प्रयोग अधिक किया गया है।
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इसी तरह जोधपुर और बीकानेर के चित्रो में पीले रंग का प्रयोग अधिक हुआ है।
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कोटा के चित्रो में नीले रंग का और उदयपुर के चित्रों में लाल रंग का प्रयोग अधिक हुआ है।
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सुनहरा रंग बूंदी के चित्रों की विशेषता है तो गुलाबी रंग का प्रभाव किशनगढ़ शैली के चित्रों पर अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।
शैली
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रंग
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जयपुर और अलवर
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हरा
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जोधपुर और बीकानेर
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पीला
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उदयपुर
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लाल
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कोटा
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नीला
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किशनगढ़
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सफेद और गुलाबी
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बूंदी
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सुनहरा
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राजस्थान की चित्रकला की सभी शैलियों में वृक्ष प्रमुख रूप से चित्रित किए गए है और चित्रकारो ने क्षेत्र विशेष के अनुसार शैली में वृक्षों को प्रमुखता दी है।
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उदयपुर शैली में जहां कदम्ब को ज्यादा चित्रित किया गया है वहीं किशनगढ़ शैली में केले के वृक्ष को महत्व दिया गया है।
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कोटा-बूंदी शैली में खजूर के पेड़ को चित्रित किया गया है तो जयपुर और अलवर के चित्रों में पीपल और वट वृक्ष ज्यादा दिखाई देते हैं।
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बीकानेर और जोधपुर की शैली में आम के वृक्ष को प्रमुखता से चित्रित किया गया है।
शैली
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वृक्ष
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जयपुर और अलवर
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पीपल और वट
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जोधपुर और बीकानेर
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आम
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उदयपुर
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कदम्ब
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कोटा- बूंदी
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खजूर
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किशनगढ़
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केला
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इन शैलियों में उपयोग में लाए गए कैनवास की किनारी या बाॅर्डर्स के हिसाब से भिन्नता थी।
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जयपुर शैली के चित्रों को बनाने में उपयोग लिए गए कैनवास की किनारी चंदेरी और लाल रंग की होती थी।
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जबकि उदयपुर के चित्रों की किनारे पीले होते थे।
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इसी तरह किशनगढ़ शैली में गुलाबी और बूंदी के चित्रों में सुनहरी व लाल रंग के होते हैं।
शैली
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किनारे
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जयपुर
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चंदेरी व लाल
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उदयपुर
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पीली
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किशनगढ़
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गुलाबी
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बूंदी
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सुनहरा व लाल
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इसी तरह शैली के हिसाब से चित्रित किए जाने वाले पशु-पक्षियों को अलग महत्व मिला है।
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जोधपुर और बीकानेर में कौवा, चील, ऊंट और घोड़े बड़ी संख्या में चित्रित किए गए हैं।
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उदयपुर में हाथी और चकोर को ज्यादा महत्व दिया गया है।
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कृष्ण के नायक होने की वजह से नाथद्वारा में गाय को बहुत चित्रित किया गया है।
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जयपुर और अलवर में मोर तथा घोड़े को बहुत दिखाया गया है। नायक और नायिका के साथ मोर का चित्रण इस शैली की विशेषता है।
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कोटा और बूंदी के चित्रों में बतख, हिरण और शेर का चित्रण अधिक किया गया है। नायिका और हिरण को अक्सर इन शैलियों में साथ दिखाया गया है।
शैली
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पशु-पक्षी
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जयपुर-अलवर
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मोर तथा घोड़े
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उदयपुर
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हाथी और चकोर
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कोटा-बूंदी
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बतख, हिरण, शेर
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जोधपुर-बीकानेर
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कौवा, चील, ऊंट, घोड़े
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नाथद्वारा
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गाय
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आंखों की बनावट भी इन शैलियों में भिन्न-भिन्न रही और उन्हें अलग अलग साहित्यिक उपमाओं के अनुरूप बनाया गया।
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जैसे नाथद्वारा शैली में आंखों का चित्रण हिरण के समान किया गया।
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तो बीकानेर शैली में आंखों का चित्रण खंजन पक्षी के आंखों की तरह किया गया।
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इसी तरह बूंदी शैली में आम के पत्तो की आकृति में नायक और नायिका के आंखों का चित्रण किया गया है।
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जयपुर शैली में मछली के समान आंखें का चित्रण किया गय है।
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किशनगढ़ में आंखों की आकृति कमान से मिलती है तो जोधपुर शैली में आखों के बादाम की तरह बनाया गया है।
शैली
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आंखों की आकृति
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जयपुर
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मछली
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किशनगढ़
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कमान
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बूंदी
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आम का पत्ता
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बीकानेर
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खंजन
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नाथद्वारा
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हिरण
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जोधपुर
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बादाम
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राजस्थान की चित्रकला में भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम पक्ष को बहुत सुंदरता से चित्रित किया गया है।
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वहीं युद्ध कौशलता और युद्ध के चित्रों का अंकन भी बहुत गहराई से किया गया है।
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नायक-नायिका के प्रेम दृश्यों का अंकन भी राजस्थान की चित्रकला में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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किशनगढ़ शैली की बणी-ठणी नायिका के सौन्दर्य पर ही आधारित है।