Districts of Rajasthan: zila darshan dholpur

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जिला दर्शन — धौलपुर (dholpur)

राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित धौलपुर जिला 15 अप्रैल, 1982 को राज्य का 27वां जिला बना। पहले यह भरतपुर जिले का उपखण्ड था। जिले में एक ओर जहां चम्बल की ऊंची-नीची घाटियां हैं, तो दूसरी ओर लम्बी, सपाट पहाड़ियां हैं, जो अपने गर्भ में विश्व प्रसिद्ध ‘धौलपुर स्टोन’ को समाये हुए हैं। इसके उत्खनन, परिशोधन और दोहन पर ही जिले के लगभग एक तिहाई लोगों की आजीविका आधारित है। 

धौलपुर (dholpur) — ऐतिहासिक परिदृश्य Click here to read More

➤ चम्बल के किनारे पर बसे होने के कारण धौलपुर पुरातन काल में सामरिक महत्व का स्थल रहा है।
➤ यहां कभी राजपूतों का तो कभी मुगलों, जाटों अथवा अंग्रेजों का आधिपत्य रहां इसके फलस्वरूप यहां समन्वित संस्कृति का विकास हुआ।
➤ बाद में धौलपुर के नरेशों ने शैक्षिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का मार्ग प्रशस्त किया।
➤ राजस्थान की पूर्वी सीमा एवं चम्बल नदी पर बसे धौलपुर शहर की स्थापना तोमर वंश के राजपूत राजा धवल देव ने की थीं।
➤ चम्बल नदी उत्तरी एवं दक्षिणी भारत की महत्वर्पूा विभाजक नदी होने के कारण तोमर राजा द्वारा बसाया गया यह नगर तटरक्षक का काम करता था।
➤ बाद में मुगलों, भरतपुर के जाट राजाओं, ग्वालियर के सिंधिया राजाओं के आधिपत्य में रहां सन् 1782 में यह धौलपुर के रानी-राजाओं के पास आ गया।
➤ स्वतंत्रता के पश्चात् यह क्षेत्र मत्स्य संघ में तथा इसके उपरान्त भरतपुर जिले के एक उपखण्ड के रूप में विशाल राजस्थान में शामिल कर लिया गया।
➤ राज्य सरकार द्वारा पन्द्रह अप्रैल, 1982 को धौलपुर राज्य का 27वां जिला बनाया गया।

धौलपुर (dholpur) — भौगोलिक स्थिति Click here to read More

➤ राजस्थान के पूर्वी द्वार पर बसा धौलपुर जिला पूर्व में 26 डिग्री 38’ से 25 डिग्री 65’ तक उत्तरी अक्षाशों और 17 डिग्री 13’ से 78 डिग्री 17’ पूर्वी देशान्तर रेखाओं के मध्य स्थित है।
➤ धौलपुर नगर चम्बल नदी के पास ऊंचाई वाले क्षेत्र में बसा हुआ है।
➤ जिले का पश्चिमी भाग पठारी एवं उत्तरी भाग उपजाऊ है।
➤ इसके दक्षिण में मध्य प्रदेश का मुरैना एवं ग्वालियर तथा उत्तरी प्रदेश का आगरा जिला है।
➤ उत्तर-पश्चिम में राजस्थान का भरतपुर तथा पश्चिम में सवाई माधोपुर जिला हैं चम्बल नदी के किनारे बसा होने के कारण यहां की अधिकांश भूमि पथरीली तथा कम उपजाऊ हैं।
➤ स्थानीय भाषा में इस क्षेत्र को ‘डांग’ के नाम से जाना जाता है।

धौलपुर (dholpur) — जनसंख्या एवं क्षेत्रफल Click here to read More

➤ सन् 2011 की जनगणना के अनुासर धौलपुर जिले की कुल जनसंख्या 12 लाख 06 हजार 516 है।
➤ इसमें 6 लाख 53 हजार 647 पुरूष तथा 5 लाख 52 हजार 869 महिलाएं हैं।
➤ क्षेत्रफल की दृष्टि से धौलपुर राजस्थान का सबसे छोटा जिला हैं

धौलपुर (dholpur) — जलवायु एवं तापमान Click here to read More

➤ जिले की जलवायु प्रायः शुष्क हैं गर्मी में तेज गर्म हवायें चलती हैं और सर्दी में अधिक सर्दी पड़ती हैं।
➤ जिले का अधिकतम तापमान 49॰ तथा न्यूनतम तापमान 1॰ तक पहुंच जाता है।
जिले में औसत वार्षिक वर्षा 643 मिलिमीटर होती है।

धौलपुर (dholpur) — नदियां एवं जलाशय Click here to read More

➤ जिले में मुख्यतः चम्बल और पार्वती नामक दो नदियां है।
➤ पार्वती नदी पर एक जलाशय है, जिसका नाम पार्वती बांध है।
➤ बाड़ी तहसील के निकट तालाबशाही नामक एक झील है।
➤ मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा बनाया गया एक महल यहीं पार बना हुआ है।

धौलपुर (dholpur) — खनिज सम्पदा Click here to read More

➤ जिले के कुल भाग चम्बल घाटी के जलोदक के नाम से आवृत्त है।
➤ यह फतेहपुर-सीकरी के हिण्डौन की ओर जा रही पवर्तन श्रृंखला से होता हुआ विंध्याचल तक जाता है।
➤ इस क्षेत्र में प्रायः लाल पत्थर पाया जाता है।
➤ समूचे जिले की आय का प्रमुख साधन यह लाल पत्थर ही है, इसलिये इसे यहां ‘रेड डायमण्ड’ के नाम से जाना जाता हैं
➤ यहां के पत्थर की चार किस्में हैं। सेण्ड स्टोन, मैसनरी स्टोन, लाइम स्टोन तथा बजरी।
➤ जिले के बाड़ी, बसेड़ी और सरमथुरा के क्षेत्रों में यह खनिज पाया जाता है।
➤ सरमथुरा के 90 प्रतिशत लोगों की आजीविका का मुख्य स्त्रोत खनन कार्य ही है।
➤ इस पत्थर का उपयोग भवन निर्माण एवं सड़क निर्माण कार्यों में होता है।
➤ नक्काशी कार्यों के लिये भी यह पत्थर काफी उपयुक्त है।
➤ मुगलकालीन इमारतों में इस्तेमाल किये गये इस पत्थर पर नक्काशी का मनोहारी कार्य आज भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होता है।
➤ जिले में सेण्ड स्टोन, मैसनरी स्टोन तथा लाइम स्टोन की खानें हैं।
➤ वर्तमान में यह खनिज आस्ट्रेलिया, जर्मनी, अल्जीरिया एवं मध्य-पूर्व देशों में बड़े पैमाने पर भेजा जा रहा है।

धौलपुर (dholpur) — अभयारण्य Click here to read More

➤ जिले में वन विहार, रामसागर अभयारण्य तथा चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य है।
➤ चम्बल राष्ट्रीय अभयारण्य राजस्थान, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश की सीमाओं में होने के कारण संयुक्त रूप से संचालित है।
➤ वन विहार, रामसागर अभयारण्य में रीछ, हिरण, नीलगाय, बारहसिंगा, जरक और भेड़िया आदि स्वच्छंद विचरण करते हैं।

धौलपुर (dholpur) — मचकुण्ड Click here to read More

➤ तीर्थराज पुष्कर को जहां समस्त तीर्थस्थलों का ‘मामा’ माना जाता है, वहीं धौलपुर के मचकुण्ड को तीर्थस्थलों का ‘भान्जा’ कहा गया है।
➤ धौलपुर शहर से करीब ढाई किलोमीटर स्थित मचकुण्ड़ पर अनेक घाट बने हुए हैं, जहां लोग स्नान करते हैं।
➤ यहां पर प्रतिवर्ष भादो सुदी 6 को विशाल मेला लगता है।
➤ श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मचकुण्ड में स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
➤ इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि मचकुण्ड़ में बरसात के दिनों में पहाड़ों से आया पानी एकत्रित होता है अतः उसमें गंधक तथा अन्य रसायन मिले हुए होते हैं, जो चर्म रोगों को ठीक करने में सहायक माने जाते हैं।
➤ मचकुण्ड का नाम सिख धर्म से जुड़ा हुआ है।
➤ सिखों के छठे गुरू श्री हर गोविन्द सिंह 4 मार्च 1662 को ग्वालियर से आते समय यहां ठहरे थे।
➤ उन्होंने यहां तलवार के एक ही वार से शेर का शिकार किया था।
➤ उनकी स्मृति में यहां शेर शिकार गुरूद्वारा बना हुआ है, जिसका वैभव देखते ही बनता है।

धौलपुर (dholpur) — कमल के फूल का बाग Click here to read More

➤ मचकुण्ड तीर्थ स्थल के नजदीक ही कमल के फूल का बाग स्थित है।
➤ चट्टान काटकर बनाये गये कमल के फूल के आकार में बने इस बाग का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है।
➤ भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत सिनेटर बेनियन मोनिहन की पत्नी पुरातत्व की जानी-मानी विशेषज्ञ है एवं इतिहासकार है।
➤ भारत प्रवास के समय अपनी महत्वपूर्ण खोजों में सन् 1978 में उन्होंने अपने खोजपूर्ण शोध में यह रहस्योद्घाटन किया था कि प्रथम मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा ‘तुजके बाबरी’ (बाबरनामा) ने जिस कमल के फूल का वर्णन किया है, वह धौलपुर का यही कमल के फूल का बाग है।
➤ यहां के परिसर में जो स्नानागार बने हैं, वे मुगलकालीन वास्तुकला के अनूठे साक्ष्य हैं।

धौलपुर (dholpur) — लम्बी बावड़ी Click here to read More

➤ पुरानी सब्जी मण्डी के पास एक पतली गली से होकर लम्बी बावड़ी जाने का रास्ता है।
➤ अगर वास्तुकला की दष्टि से इस बावड़ी का मूल्यांकन किया जाये तो इसकी कारीगरी केवल राजस्थान में ही नहीं, बल्कि समूचे भारत में अद्वितीय है।
➤ यह एक पातालतोड़ बावड़ी है। इसके अंदरूनी स्त्रोत वेग को काम में लाने के लिये लम्बा-चौड़ा कुआं बना हुआ है।
➤ यह बावड़ी सात मंजिला है और सातों मंजिलों की बनावट एक जैसी है।
➤ इसकी चार मंजिलें पानी की सतह के नीचे हैं और तीन ऊपर हैं।
➤ इसके दोनों ओर भव्य दालान बने हैं जिनमें चार-चार दरवाजे हैं।
➤ बावड़ी का घेरा लगभग 135 मीटर तथा गोलाई में 16 सुन्दर दरवाजे बने हैं।
➤ बावड़ी में सटा हुआ एक कुआं है, उसकी अनुपम चुनाई देखकर सहज ही आश्चर्य होने लगता है।
➤ एक पत्थर से दूसरे पत्थर के बीच सूतभर भी गुंजाइश नहीं है।

धौलपुर (dholpur) — शेरगढ़ का किला Click here to read More

➤ शेरगढ़ के किले की निर्मााण् जोधपुर के राजा मालदेव ने करवाया था।
➤ जीर्ण-शीर्ण हो गये इस दुर्ग को शेरशाह सूरी ने 1540 ई. में पुनः बनवाया और तभी से इसका नाम शेरगढ़ पड़ गया।
➤ इसके दक्षिण में चम्बल नदी और अन्य तीन दिशाओं में चम्बल नदी हैं।
➤ यह किला कभी धौलपुर के प्रथम राजा कीरत सिंह की राजधानी भी रहा था।
➤ वे सन् 1804 से 1811 तक इस किले में रहे, लेकिन पुत्र शोक से व्याकुल होकर उन्होंने इस किले को छोड़ दिया।
➤ लगभग 500 बीघा क्षेत्र में फैला-पसरा यह किला समुद्र तल से 400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और एक ऊंची पहाड़ी पर किसी टापू-सा प्रतीत होता है।
➤ बरसात के दिनों में जब समूची प्रकृति हरी-भरी हो जाती है, तो इस किले की छटा देखते ही बनती है।
➤ किले के मुख्य द्वार पर अष्ट धातु की एक बेशकीमती तोप लावारिस हालत में पड़ी हुई हैं यह तोप उत्कीर्णन एवं सामरिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।
➤ अनेक फिल्मों की शूटिंग के कारण शेरगढ़ के किले का फिल्मी दुनिया में भी नाम है।

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