जिला दर्शन – दौसा (dausa)
राजस्थान की राजधनी जयपुर से 54 किलोमीटर दूर स्थित दौसा राजस्थान का प्रमुख जिला है। राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित दौसा कच्छवाह राजपूतों की पहली राजधानी रही है। देवगिरी पहाड़ी के नाम को आधार बनाते हुए इसे दौसा का नाम दिया गया। दौसा ऐतिहासिक और भौगोलिक स्थिति की वजह से राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक गिना जाता है।
➤ भगवान राम के वंशज कछवाह राजाओं की राजस्थली और उनके साम्राज्य विस्तार में दौसा का सर्वाधिक योगदार रहा है।
➤ कछवाह श्री राम के बड़े पुत्र कुश के वंशज हैं और सूर्यवंशी क्षत्रिय जाति के हैं।
➤ अयोध्या पर शासन करने के पश्चात् कुश के वंशज मुकुटपुर में रहे, तत्पश्चात् सोन नदी के समीपस्थ प्रदेश साकेत व रोहिताश्व पर अधिकार किया।
➤ उन्हीं के वंशज राजा नल ने 826 ई. के लगभग नश्वर (ग्वालियर) की नींव डाली।
नल के पुत्र ढोला राजा थे, जिनका विवाह पिंगल (जैसलमेर) के समीपस्थ प्रदेश नरेश की पुत्री मरवण से हुआ था जो ढोला मारू के नाम से प्रसिद्ध है।
➤ दौसा का दसवीं शताब्दी से पूर्व का क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता है। संभवतया इससे पूर्व वर्तमान नगर का यह भू-भाग जलमग्न था।
➤ विश्वास किया जाता है कि कालान्तर में जल सूखता गया तथा लोग पर्वत पर बसने लगें कदाचित इसलिए पर्वत का निचला भाग जो जलमग्न था या सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा किया हुआ था, आज भी सागर कहलाता है।
➤ दौसा की ढूंढार राज्य की प्रथम राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
➤ सन् 1009 में महमूद गजनवी के आक्रमण के विरूद्ध आनन्दपाल की सहायता उज्जैन, कालिंजर, ग्वालियर और अजमेर के क्षत्रीय राजाओं ने की।
➤ आनन्दपाल की सहायता करने के कारण महमूद गजनवी ने क्रोधित होकर अजमेर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार किया।
➤ अजमेर में उस समय पराक्रमी राजा बीसलदेव चैहान राज्य कर रहा था।
➤ इस पराजय के कारण बीसलदेव चौहान ने जोबनेर में शरण ली एवं पुनः शक्ति एकत्रित कर शुत्रुओं को पराजित किया तथा ढूंढ—ढांढ कर उनका विनाश किया।
➤ इसी कारण इस भू-भाग का नाम कालान्तर में ढूंढार पड़ा।
➤ राजा नल की संतति ने ही ढूंढार राज्य पर शासन कियां
➤ नल की 21 वीं पीढ़ी में 33 वें शासक थे, ग्वालियर नरेश सोढ़देव।
➤ सोढ़देव के पुत्र दुलेराम का विवाह मोरा के चैहान राजा रालपसी की कन्या सुजान कंवर के साथ हुआ था।
➤ दसवीं शताब्दी में दौसा नगर पर दो राजवंश चौहान व बड़ गुर्जर राज कर रहे थे।
➤ दौसा के किले में जो पर्वतीय नाला आता था, वह इन दो राज्यों को उत्तरी व दक्षिणी सीमा में विभाजित करता था।
➤ प्रारम्भ में इन दो राजवंशाों में सद्भाव था, परन्तु कालान्तर में वैमनस्य होने के कारण चैहान ने अपनी सहायता के लिए ग्वालियर से अपने जामाता दुलेराय को आमंत्रित किया।
दुलेराय घोड़े के व्यापारी बनकर यहाँ आये व अपने ससुर की सहायता की।
➤ अपनी कूटनीति से उसने बड़गूर्जरों को हराकर दौसा का शासन अपने पिता सोढ़देव को सौंप दिया।
➤ सोढ़देव ने 14 अक्टूबर, 996 से 28 जनवरी,1006 तक तथा 29 जनवरी, 1006 से 28 जनवरी 1036 तक 30 वर्ष दुलेराय ने दौसा पर शासन किया।
➤ दौसा के पश्चात् कछवाह नेरेशों ने जमवारामगढ़ को दूसरी राजधानी बनाया।
दुलेराय यहाँ से अपने निकट के सबंधी ग्वालियर नरेश जयसिंह तंवर की सहायतार्थ एक युद्ध में गये और वहीं घायल होकर वीर गति को प्राप्त हुए।
➤ उनके बाद उनके पुत्र किलदेव ने मीणाओं को हराकर आमेर को राजधानी बनाया।
दुलेराय और उनके परवर्ती शासको के समय का एक स्मारक है भोमिया जी का महल।
यह जिले के बाहर सागर में एक ऊँचे टीले पर बना है।
➤ यह महल राजा मानसिंह के समकालीन राव सूरजमल की स्मृति में बनवाया गया है, जो कि मृत्यु के पश्चात् सर्प योनि में प्रकट होकर भोमिया कहलाये।
बाद में उन्हें देव योनि प्राप्त हुई।
➤ आमेर व जयपुर के भूतपूर्व शासक राज्याभिषेक से पूर्व भोमिया जी की गद्दी का पूजन करके ही सिंहासनारूढ़ होते थे।
➤ तेरहवीं शताब्दी मे दौसा पर चौदह राजओं का शासन था, जो संभवतः आमेर के कछवाह राजाओं के वंशजों में से थे।
➤ राजस्थान सरकार ने 10 अप्रेल, 1991 को जयपुर से चार तहसीलों दौसा, कसराय, बसवा व लालसोट को निकालकर एक अलग जिला दौसा का गठन किया।
➤ 15 अगस्त 1992 को सवाईमाधोपुर जिले की महुवा तहसील को भी दौसा जिले में सम्मिलित किया गया।
➤ दौसा जिला 25.33 से 27.33 के मध्य उत्तरी अक्षांश एवं 76.50 से 76.90 के मध्य पूर्वी देशान्तर में स्थित है।
➤ राजस्व रिकार्ड के अनुसार दौसा जिले का क्षेत्रफल 340467 हैक्टेयर है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 0.99 प्रतिशत हैं
➤ इसकी सीमाएँ जयपुर, टोंक, सवाईमाधोपुर, अलवर व भरतपुर जिलों से लगती है।
जयपुर से 54 कि.मी. दूर पूर्व की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 11 पर बसा यह ऐतिहासिक एवं व्यापारिक नगर दिन पर दिन प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है।
➤ देवगिरी पर्वत की पश्चिमी तलहटी में दौसा नगर की बनावट अण्डाकार जैसी सुन्दर है।
देवगिरी पर्वत के तीन और प्राचीर बनी हुई है, जो किला कहलाता है।
➤ उस किले के दक्षिणी छोर पर सबसे ऊँची पहाड़ी पर नीलकंठ महादेव का मंदिर है, प्रांगण में एक जल टांका है।
➤ किले के प्रांगण में एक विशाल सुन्दर हरा—भरा मैदान है, जिस पर अब जय भवानी क्लब का फुटबाल मैदान है।
➤ इसी प्रांगण में एक दुर्गा माता का मंदिर, एक मस्जिद, एक जैन मंदिर व एक और वैष्णव मंदिर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है।
➤ दौसा दुर्ग के अवशेष एवं तीन प्राचीन अष्टधातु की तोपेां आज भी अपनी प्राचीन भव्य इतिहास की गाथा के प्रतीक बने हुए हैं।
➤ दौसा का पहाड़ जो देवगिरी के नाम से विख्यात है, उसके सर्वोच्च शिखर पर भगवान नीलकंठ महादेव का एक भव्य मंदिर है, जो अपनी भव्यता के कारण दूर से ही लोगों को आकर्षित करता है।
➤ इस भव्य मंदिर के वर्तमान स्वरूप के निर्माता सवमाी जी श्री योगानन्द जी तीर्थ हैं। इस मंदिर का निर्माण स्वामीजी ने दौसा के प्रत्येक घर से दान के रूप में प्राप्त धनराशि से कराया है, जो समाज की समरसता का एक प्रतीक है।
➤ दौसा जिले में ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व के कई स्थल मौजूद हैं।
➤ बांदीकुई के निकट आभानेरी स्थित कुण्ड बवा के पास राणा सांगा का चबूतरा भाण्डारेज की बावड़िया, झाझी रामपुरा में झाझेश्वर महादेव, दौसा नगर में पंच महादेव के प्रसिद्ध मंदिर, टहलड़ी व गेटोलाव में दादू दयाल के मंदिर, सुन्दरदास जी का स्मारक, अभेद्य एतिहासिक दुर्ग (छाजले की आकृति), आलूदा के बुबानियाँ कुण्ड आदि महत्वपूर्ण स्थल है, जो प्रकृति की अनोखी छटा बिखरते हैं।
➤ प्राचीन महत्व की धरोहर आभानेरी बांदीकुई के समीप ही स्थित है।
आभानेरी में विशाल बावड़ी, ऐतिहासिक इमारतें, कुण्ड तथा उसमें बनी आकर्षक सीढ़ियों से यह अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ लगभग एक हजार वष्ज्र्ञ पूर्व एक वैभवशाली समृद्ध न्रगर रहा होगा।
➤ आभानेरी में गुप्तकाल तथा प्रारम्भिक मध्यकाल के बने हुए कलात्मक ऐतिहासिक स्मारक, बावड़ी, हर्षद (हरसिद्ध शब्द का अपभ्रंश) माता का मंदिर, चान्द बावड़ी के अन्दर तीन ओर बनी आकर्षक सीढ़ियाँ भी कला का बेजोड़ नमूना है।
➤ हर्षद माता के मंदिर के नीचे का हिस्सा सातवीं शताब्दी व गुम्बज ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था।
➤ बावड़ी के नीचे एक सुरंग भी बनी हुई है।
➤ लोगों का अनुमान है कि यह सुरंग भाण्डारेज की बावड़ी होती हुई आलूदा से बुबानियाँ कुण्ड तक जाती हैं मंदिर के बाहर बिखरी पड़ी मूर्तियों के 262 खण्डित टुकड़ों को पुरातत्व विभाग ने महत्वपूर्ण माना है।
➤ झाझेश्वर महादेव से बने झाझीरामपुरा की स्थापना लगीाग 300 वर्ष पूर्व ठाकुर रामसिंह ने की थी तथा यहाँ पर भोजपात्र की बनावट का कुण्ड व गोमुख का निर्माण करवाया था।
➤ इसके पश्चात् कुण्ड का ऊपर का हिस्सा अर्जुनदासजी ने बनवाया।
इसी स्थान पर एक ही जलहरी में 121 महादेव हैं। यहाँ निर्मित गौमुख से सर्दियों में गरम तथा गर्मियों में ठण्डा पानी बहता है।
➤ प्राचीन कला एंव संस्कृति की दृष्टि से जिले में यह स्थान अनूठा है।
➤ दौसा जिला मुख्यालय से 12कि.मी. दूर बसा भाण्डारेज गांव प्रचीन कला व संस्कृति की अद्भुत मिसाल है।
➤ भाण्डारेज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से ज्ञात होता है कि यहाँ बड़ गूर्जर क्षत्रियों का अधिकार था।
➤ ग्यारहवीं शताब्दी में ढूंढार प्रदेश में कछवाहों का राज्य स्थापित करने वाले दुलेराय ने बड़गूर्जरों को परास्त किया।
➤ भाण्डारेज गांव में बावड़ियाँ, कुण्ड, भेतेश्वर महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर, गोपालगढ़ भी स्थित है।
➤ गांव के बाहर दक्षिण में बनी विशाल बावड़ी भी अनुपम है। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह गांव प्राचीनकाल में व्यापारिक मण्डी के रूप में जाना जाता था।
➤ भाण्डारेज में लोहे का सामान, चमड़े की जूतियाँ, रंगाई-छपाई का कार्य आज भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं।
➤ दौसा के समीप ही आलूदा गांव भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
➤ यहाँ ऐतिहासिक बावड़ी में बने कुण्ड पुराने समय मकें आने-जाने के उपयोग में लायी जाने वाली बुबानियाँ (बहली) के आकार में निर्मित हैं। जिनका आकर्षण देखते ही बनता है।
➤ आगरा-जयपुर मार्ग पर सिकन्दरा से महुअवा के बीच घाटा मेंहदीपुर बालाजी का सुप्रसिद्ध मंदिर है।
➤ मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें स्थापित मूर्ति पर्वत का ही एक अंग है।
➤ बालाजी की मूर्ति में बायीं ओर एक पतली जलधारा निरन्तर बहती रहती हैं।
➤ इस मंदिर में भारत के अन्य राज्यों से भी यात्री दर्शनार्थ आते हैं।
➤ मंगलवार, शनिवार को इस स्थान पर प्रायः मेला सा लगा रहता हैं घाटा मेंहदीपुर बालाजी में ट्रस्ट द्वारा महंत किशोरपुरी चिकित्सालय तथा सीनियर बालिका विद्यालय भी संचालित हैं।
➤ ट्रस्ट द्वारा क्षेत्र के शैक्षिक तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
➤ दौसा नगर से 3 कि.मी. की दूरी पर प्राकृतिक छटा बिखेरता एक स्थान गेटोलाव के नाम से विख्यात हैं यह वह स्थान है, जहाँ पर स्वामी दादूदयालजी महाराज ने दौसा में जन्मे संत सुन्दरदासजी सहित संत श्री लाखाजी व नरहरिजी को शिष्य बनाकर दीक्षा प्रदान की थी।
➤ इसी स्थान पर दादूदयालजी का मंदिर, तालाब तथा सुन्दरदास स्मारक ट्रस्ट की ओर से सुन्दरदास जी का स्मारक भी बना हुआ है।
➤ यहाँ स्थित पंच महादेव मंदिरों-नीलकण्ठ, बेजड़नाथ, गुप्तेश्वर, सहजनाथ एवं सोमनाथ में सभी समुदायों के धर्मपरायण लोग नियमित रूप से दर्शन करते हैं।
➤ दौसा शहर की पहाड़ी पर बना सूप के आकार का अभेद्य किला भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
➤ किले में तीन तोपें भी हैं। इसमें लगी 8 फीट लम्बी तोप के संबंध में लोगों का मानना है कि ➤ इसकी मारक क्षमता 40 किलोमीटर तक थीं।
➤ किले के नीचे दक्षिण छोर पर टहलड़ी का सुन्दर भवन व दादूदयालजी का मंदिर, किले की मोरी के पास सूरजमल भौमियाजी महाराज का मंदिर भी प्राचीन कला व संस्कृति की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
➤ किले नीचे दुर्गा मंदिर, मस्जिद व जैन मंदिर भी स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव एवं सामंजस्य के प्रतीक है।
दौसा (dausa)— विभिन्न दर्शनीय स्थल
➤ जिले के विभिन्न कस्बों तथा गांवों में तत्कालीन शासकों द्वारा बनवाये गये गढ़, हवेलियाँ व महल मौजूद हैं, जो पर्यटल की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
➤ पावटा ग्राम का 16 वीं शताब्दी में बना महल, हींगवा में नाथ सम्प्रदाय का ऐतिहासिक गुरूद्वारा, गुढाकटला के समीप कुण्डा माता का मंदिर, रेडिया का बालाजी, झरणियाँ, माधोराजपुरा किला, रामगढ़ का गढ़, गुढ़ा का किला, गीजगढ़ का किला, लालसोट में छह स्तम्भों पर बनी बंजारों की छतरी महित कई स्थान पुरातात्विक दृष्टि से अपनी अमिट पहचान कायम किये हुए हैं।