बूंदी (Bundi)
➤ लगभग 759 वर्ष पुराने बून्दी को सन 1241 में हाड़ा वंश के श्री राव देवा ने मीणा सरदारों से जीता ओर बून्दी राज्य की स्थापना की।
➤ इस शहर का नामकरण बूंदा मीणा के नाम पर हुआ।
➤ स्वतंत्रता के बाद अंतिम शासक महाराव श्री बहादुर सिंह रहे।
➤ प्राकृतिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भरापूरा यह जिला खनिज संपदाओं का भण्डार समेटे हुए है।
➤ वन सम्पदाओं से भरपूर स्थापत्य, भवन निर्माण कला और विभिन्न ललित कलाओं, चित्रकला व भित्ति चित्रों की अनमोल कृतियों का यह शहर देश-विदेश में विख्यात है।
➤ पाषाण कालीन सभ्यता इस जिले में फैली नदियों के किनारे फलीभूत हुई है।
➤ जिसके अवशेष नदियों के किनारे बिखरे पडे हैं।
➤ यहां शैल चित्रों के अवशेष से सदियों पुरानी सभ्यता का पता चलता है।
➤ वन एवं खनिज सम्पदाओं और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर बून्दी जिले में अरावली व विंध्याचल दो पर्वत श्रेणियां फैली हुई हैं।
➤ मध्यपूर्वी पर्वत श्रृंखला जिले के दो भागो में विभाजित करती है।
अधिकांश हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र है, यहां मिट्टी कठोर व पथरीली है लेकिन मैदानी भागों में कृषि की दृष्टि से बहुत उपजाऊ काली मिट्टी है।
➤ यहां वनों की बहुतायत है। डावी-धनेश्रव क्षेत्र में घना जंगल है और नैनंवा क्षेत्र में वन्यजीव अभयारण्य है, जो 352 वर्ग किमी में फैला हुआ है।
➤ बून्दी जिले का फैलाव 75 19 30 से 76 19 30 पूर्वी अक्षांश एवं 24 59 11 से 25 53 11 उत्तरी अक्षांश के मध्य है।
➤ बून्दी जिले के उत्तर में टोंक एवं सवाई माधोपुर, पश्चिम में भीलवाड़ा, दक्षिण-पश्चिम में चित्तौड़गढ़ और दक्षिण में कोटा जिला अवस्थित है।
➤ बूंदी नगर जयपुर से 210, अजमेर से 161 व कोटा से 35 किमी दूर है।
➤ कोटा व बून्दी जिले का विभाजन दक्षिण व पूर्व में चम्बल नदी करती है।
➤ जिले को सिंचाई की सुविधा चम्बल नदी व इसकी नहरों से भी उपलब्ध है और सहायक नदियों की नहरों द्वारा भी सुलभ है।
➤ इसके अलावा तालाबों, बांधों और नलकूपों से भी सिंचाई की जाती है।
➤ चम्बल की सहायक नदियों में मेज नदी बून्दी जिले के उत्तर तथा पूर्व दोनों भागों में बहती है।
➤ यह नदी भीलवाड़ा जिले में समुद्र की सतह से 1700 फीट की ऊंचाई से निकलती है।
➤ गुढा तुरकडी के नजदीक मेज नदी पर बांध बनाया गया है।
जिले में आधा दर्जन से ज्यादा नदियां बहती हैं लेकिन मांगली, तालेडा, ➤ घोडा पछाड़, मेज, इन्द्राणी प्रमुख नदियां हैं।
➤ मांगली नदी, मेज नदी की प्रमुख सहायक नदी है।
➤ भीमलत बांध इसी पर बना है।
➤ घोडा पछाड़ नदी बिजलियां की झील से निकलती है।
➤ तालेडा नदी पर बरधां बांध बना है।
➤ जिले की जलवायु उष्ण है और यहां सामान्य वर्षा का औसम 76.41 सेमी है।
➤ जिले का क्षेत्रफल 5850 वर्ग किमी है।
➤ जिले की जनसंख्या 11 लाख 13 हजार 725 (वर्ष 2011 की जनगणना) है और 181 ग्राम पंचायतों के 857 गांवों एवं 6 नगरों में निवास करती है।
➤ सर्दियों में जिले का न्यूनतम तापमान 2 डिग्री और गर्मियों में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है।
➤ राजस्थान का सर्वाधिक पुराना और ऐतिहासिक नगर बून्दी प्रकृति की गोद में बसा है।
➤ पर्यटन की दृष्टि से विशिष्ट स्थान रखने वाले बून्दी जिले में पर्यटन विकास की विपुल संभावनाएं हैं।
➤ यहां वाटर स्पोर्टस, पहाड़ों पर ट्रेकिंग एवं जंगल को विकसित किया जा सकता है।
➤ वर्तमान में पर्यटक यहां ऐतिहासिक स्मारकों, युद्ध प्राचीरों, प्राकृतिक झीलों, कुण्ड-बावडियों और भित्ति चित्रों समेत हवेलियों व झरोखों-छतरियों से आकृष्ट होकर आता है।
➤ कोटा से अजमेर-जयपुर को जाने वाला सडक मार्ग बूंदी शहर का चक्कर लगारकर पहाडी से गुजरता है।
➤ जहां से शहर का दृश्य बडा मनोहारी लगता है।
➤ बून्दी की अजीब-अजूबी गलियां भी दर्शनीय हैं।
➤ बून्दी में पर्यटकों के लिए राजमहल भी प्रमुख आकर्षण है।
➤ 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में निर्मित इस राजमहल का वर्णन करते हुए कर्नल टाॅड ने लिखा है कि ‘समस्त रजवाड़ों में बून्दी का महल सर्वोत्कृष्ठ माना जाना चाहिए।’
➤ विदेशी पत्रकार रूडयार्ड किपलिंग के शब्दों में यह मानव निर्मित नहीं बल्कि फरिश्तों द्वारा निर्मित सा लगता है।
➤ इसमें हजारी दरवाजा, हाथीपोल, नौ ठाण, रतन, दौलत, दरीखाना, रतन निवास, रतन महल, रतन मण्डप, छत्रमहल, बादल महल मोती महल आदि देखने के स्थान हैं।
➤ छत्रमहल एवं बादल महल में भित्ति चित्र बने हुए हैं, जो बून्दी पेन्टिंग की बहुमूल्य कृतियां हैं।
➤ नगर के उत्तर में 1426 फीट ऊंची पहाडी पर तारागढ़ नामक दुर्ग बना है। जो अपनी सुदृढ़ता एवं सुरक्षा की दृष्टि से अनोखा है।
➤ इस दुर्ग को राव राज बेरसिंह ने सन 1354 में बनवाया था।
➤ दुर्ग में चार कुण्ड हैं जो पीने के पानी की समस्या को हल करते हैं।
➤ वहां रहने हेतु सुंदर महल रनिवास बने हुए हैं।
➤ दुर्ग के मध्य मे काफी ऊंची एक बुर्ज हैं जिसे भीम बुर्ज कहते हैं।
➤ कुण्डों में पत्थर के वाल्व लगाकर पानी को स्वच्छ रखने की विधि अपनाई गई है।
➤ बून्दी की चित्रशैली अपनी विशिष्ट रंगयोजना, सुंदर सुमुखी नारियों के चित्रण, पृष्ठ भूमि में सघन वन सम्पदा आदि के लिए प्रसिद्ध रही है।
➤ बून्दी की राग माला एवं बारह मासा अत्यन्त लोकप्रिय है।
➤ चित्रशाला में राव उम्मेद सिंह अपने अंतिम समय में रहे थे।
➤ उनकी याद को चिरस्थाई बनाने हेतु महाराज रामसिंह ने इस कक्ष को भित्ति चित्रों में मंडित कराया।
➤ इन चित्रों को कोटा के दो चित्रकारों ने चित्रित किया था।
➤ राजमहल से नीचे आने और दाये जाने वाला मार्ग नवल सागर झील पर पहुंचता है।
➤ कटोरे के आकार की इस झील के पानी में सूर्यास्त के समय राजमहल की परछाई मन को छू लेती है।
➤ शिखर के निचले हिस्से तक डूबा रहने वाला वरूण मंदिर, गणगौर घाट इस झील की शोभा है।
➤ इसके किनारे तंत्र विद्या पर आधारित गजलक्ष्मी की सुंदर मूर्ति है।
➤ करीबन तीस फुट ऊंचाई वाले मेहराबदार नगर के दक्षिण द्वार को चौगान दरवाजा कहते हैं।
➤ शहर के परकोटे के भीतर बसी बून्दी में जाने का यह मुख्य द्वार है।
➤ इसका निर्माण राव राजा रामसिंह ने सन 1848 में काराया था।
➤ इसकी बुर्जाें पर बनी छतरियां इसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं।
➤ दरवाजे की छत पर अंदर की ओर बेल बूटे वाली मोरनी का चित्र है।
➤ इस दरवाजे के लिए यह गीत प्रसिद्ध है-बूंदी का दरवाजा पर मण्ड रही मोरडी।
➤ बून्दी नगर के दक्षिण द्वार चौगान दरवाजे के बाहर दोनों ओर एक जैसे दो कुण्ड बने हुए हैं।
➤ इन्हें नागर और सागर कुण्डों के नाम से जाना जाता है।
➤ इनके वास्तविक नाम गंगा सागर एवं यमुना सागर हैं।
➤ इन दोनों कुण्डोें का निर्माण सन 1885 में रावराजा रामसिंह की पत्नी श्रीमती चन्द्रभान कंवर ने करवाया था।
➤ इन वर्गाकार कुण्डों की सुंदरता इनकी सीढ़ियों से हैं, जो पाषाण की होते हुए भी मुंह से बोलती नजर आती हैं।
➤ स्थापत्य कला का कमाल है, ये कुण्ड यहां बगीचा है कुण्डों में फव्वारा चलता है।
➤ रावराजा अनिरूद्ध सिंह की रानी नाथावती ने सन 1699 में इस बावड़ी को बनवाया।
➤ इसमें खम्बों पर बने तोरण द्वारा उन पर रखी हाथी की मूर्तियां और पत्थरों पर उकेरे गये भगवान के दशावतार व नवगृह की मूर्तियां दर्शकों को मुग्धकर देती है।
➤ लंका गेट रोड पर स्थित जिला जेल के पास स्थित स्थापत्य संरचना को दर्शाता यह एक वर्गाकार कुण्ड है जिसमें एक ही आकार की सीढ़ियां बनी हैं।
➤ राव राजा रामसिंह ने सन 1821-1889 में निर्माण करवाया।
➤ रावराजा अनिरूद्ध सिंह (सन 1681-1695) ने अपने धान्य भाई देवा गुर्जर की याद में (सन 1683) में बनवाया।
➤ कोटा रोड पर राजकीय महाविद्यालय के सामने रणजीत निवास परिसर में स्थित इस दो मंजिला छतरी के 84 खम्बे हैं।
➤ चबूतरे के चारों ओर विभिन्न पशु-पत्रिज्ञयों, देवी-देवताओं आदि के चित्र पत्थर पर उकेरे हैं।
➤ बून्दी के उत्तरी द्वार के बाहर स्थित है-जैतसागर झील।
➤ लगभग 3.5 किमी लम्बी झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है।
➤ इसके एक ओर टैरेस गार्डन स्थित है तथा झील के किनारे सुखमहल बना है।
➤ निर्माण राव राजा विष्णु सिंह ने 1773 ई. में कराया था।
➤ राव राजा विष्णु सिंह ने बून्दी पर 1773 से 1821 तक शासन किया।
➤ रूडयार्ड किपलिंग ने इसमें सन 1886 में दो रात्रि विश्राम किये।
➤ किपलिंग उन दिनों सिविल एण्ड मिलेट्री गजट में पत्रकार थे।
➤ वर्तमान में रेस्ट हाऊस के रूप में काम आता है और सिंचाई विभाग के अधीन है।
➤ जैतसागर झील से आगे 3 किमी दूर स्थित है— क्षार बाग।
➤ तत्कालीन बून्दी राज्य के दिवंगत राजाओं की स्मृति में निर्मित छतरियों, चबूतरों से भरा बगीचा ‘क्षार बाग’ कहलाता है।
➤ बून्दी आगमन पर क्षार बाग देखे बिना बून्दी दर्शन अधूरा रहता है।
➤ इस बाग में सबसे प्राचीन राव राजा सुर्जन के लडके दूदा की स्मृति में बनी छतरी है।
➤ जब 1581 ई. में मुगलों ने लिए युद्ध करते हुए वह मारा गया था जिसकी चिता पर 60 महिलाओं के सती होने की बात प्रचलित है।
➤ क्षार बाग से थोडा आगे ही केदारेश्वर धाम है जो हिन्दूओं का धार्मिक स्थल है।
➤ यहां स्थित केदारेश्वर महादेव के मंदिर का निर्माण हाड़ा वंश की बूंदी स्थापना के पूर्व का है।
➤ बम्बावदा के राव राजा कोल्हण ने सन 1193 के आसपास इस मंदिर का निर्माण कराया था।
बूंदी (Bundi)— शिकार बुर्ज
➤ महाराव राजा उम्मेदसिंह ने सन 1713 में अपने पुत्र अजीत सिंह के लिए गद्दी छोडकर नगर से 5 किमी दूर एकांतवास बनाया जिसे शिकार बुर्ज कहते हैं।
➤ स्वामी भक्त घोडा हुज्जा तथा शिवप्रसाद हाथी की विशाल प्रस्तर प्रतिमा पुरातत्व व शिल्प वैभव को दर्शाता है।
➤ चारभुजा एवं लक्ष्मीनाथ का मंदिर और महाकति सूर्यमल्ल की हवेली, जहां रहकर उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की है।
➤ बून्दी जिले में पर्यटकों का विशेष आकर्षण रामगढ़ अभयारण्य है।
➤ लगभग 307 वर्ग किमी फैले वन में विभिन्न वन्य जीवों के अतिरिक्त शेर-चीते भी रहते हैं।
➤ इसके अलावा, जरख, नील गाय, सांभर, चीतल, हिरण, भालू, बारह सिंगा, चिंकारा भी देखे जा सकते हैं।
➤ यहां झील, नदी, किले, पहाड़, पटार, झरने सब हैं।
➤ बून्दी में मंदिरों की बहुतायत होने एवं पूर्व में ज्योतिष ज्ञान का केन्द्र होने से बून्दी को छोटी काशी भी कहा जाता है।
➤ यहां रंगनाथ जी, चारभुजा, लक्ष्मीनाथ, कल्याणराय आदि स्थापत्य कला से भरपूर मंदिर हैं।
➤ यहां गुरुद्वारा, चर्च और मीरा साहब की दरगाह भी सभी सम्प्रदाय के लोगों के लिए श्रद्धा स्थल है।
➤ जैन मंदिर भी स्थापत्य कला के उदाहरण हैं।
➤ वैसे तो बून्दी जिले का प्रत्येक कस्बा व शहर स्थापत्य कला व प्राचीन वैभव से भरा पड़ा है।
➤ इनमें मुख्य दुगारी के महल, मंदिर उनमें मण्डित भित्ति चित्र, चंदन वन, तलवास के घने जंगल व पहाड, इन्द्रगढ़ महल व उनमें चित्रित भित्ती चित्र, कमलेश्वर के प्राचीन मंदिर, केशवराय पाटन का भव्य मंदि, जैन तीर्थ एवं दरगाह तथा हिण्डोली के मंदिर एवं रामसागर झील मुख्य हैं।
➤ बूंदी से 45 किमी दूर स्थित केशवराय पाटन नगर चम्बल नदी के तट पर स्थित है।
➤ यहां नवम्बर माह में कार्तक पूर्णिमा का भव्य मेला लगता है, जिसमें ग्रामीण व शहरी धर्मावलम्बियों की भागीदारी एक लाख की संख्या पर पार कर जाती है।
➤ यहां मक्केशाह बाबा की दरगाह भी धर्मावलम्बियों के लिए आस्था का केन्द्र है, जहां हिन्दू-मुस्लिम सभी सम्प्रदाय के लोग जाते हैं।
➤ मुनि सुव्रतनाथ का जैन मंदिर भी यहां आस्था का केन्द्र है।
➤ राज राजेश्वर भी दर्शनीय है।
➤ बूंदी मुख्यालय से 85 किमी दूर स्थित मंदिर स्थापत्य वैभव और धार्मिक आस्था का केन्द्र है।
➤ यहां प्रत्येक माह में दो बार चतुर्दशी को मेला लगता है।
➤ चर्म रोगों के दूर होने के विश्वास और आशा के साथ इस मेले में बूंदी के अलावा टोंक, भीलवाड़ा, कोटा, सवाई माधोपुर, चित्तौड़, बारां और अजमेर जिले से भी दर्शनार्थी आते हैं।
➤ कोटा साड़ी के नाम से प्रसिद्ध कोटा डोरिया की साडियां बूंदी जिले के रोंटेटा ग्राम में भी बनती हैं।
➤ यहां के जुलाहा परिवार अपनी हस्तकला से इन साडियों को खूबसूरत रूप देते हैं।
➤ बूंदी में वैसे तो कई मेले लगते हैं लेकिन कजली तीज मेले का अपना महत्त्व है।
➤ भादों माह में तीज तिथि को आयोजित इस मेले में गौरी माता की सवारी पूरे लवाजमे के साथ शहर के प्रमुख मार्गों से गुजरती है।
➤ सवारी को देखने के लिए काफी संख्या में लोग आते हें।
➤ पौराणिक कथानुसार महिलाए अपने पति व पुत्र की मंगल कामना के लिए और कुमारी बालिकाएं अच्छे वर को पाने के नितित्त माता पार्वती की पूजा अर्चना करती है।
➤ रियासत काल में यह सवारी सत्ता के शक्ति प्रदर्शन के लिए होती थी।
➤ जिसे अब परम्पराएं संजोए रखने के लिए नगर पालिका द्वारा मनाया जाता है।
➤ बूंदी में पर्यटन महत्त्व के स्थानों को प्रकाश में लाने और इस नगर को पर्यटन नगर के रूप में विकसित करने के प्रयास का नाम ही बूंदी उत्सव है।
➤ पिछले एक दशक से बूंदी को पर्यटन नक्शे पर लाने के प्रयास विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से किए जाते रहे हैं।
➤ अनेक नामों से बूंदी में पर्यटकों को रिझाने, बुलाने के लिए उत्सव आयोजित हुए हैं जिन्हें हाडौती उत्सव, हाडौती शिल्प एवं पर्यटन मेंला बूंदी स्थानना दिवस जैसे नाम दिए गए लेकिन बूंदी उत्सव के नाम से आयोजित इस मेले से बूंदी का नाम विश्व पर्यटन नक्शे पर उभरने लगा है।
➤ जिला प्रशासन एवं जनता के मिले-जुले प्रयासों का नतीजा है कि अब बूंदी में विदेशी पर्यटकों का आवागमन पूरे वर्ष ही रहने लगा है।
➤ पिछले एक दशक में विदेशी सैलानियों की संख्या में शत-प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
➤ बूंदी उत्सव का मूल उद्देश्य यहां के पर्यटन स्थलों को उजागर करना और कला व संस्कृति की जानकारी से विदेशी पर्यटकों को अवगत कराना है।
➤ इस अवसर पर पर्यटकों को नगर भ्रमण से लेकर विभिन्न स्थानीय आयोजन में सम्मिलित किया जाता है ताकि वहां की लोक संस्कृति को वे भी जान सकें।
➤ पुरातत्व सौन्दर्य की 84 खम्बों की छतरी परिसर में दो रात्रि तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
➤ इस अवसर पर स्थानीय कलाकारों की कला को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। साथ ही मनोरंजन के कार्यक्रमों के अंतग्रत शिल्पग्राम, घुड़दौड़, बैलगाडी दौड़, ऊंट दौड़, मुंछों का प्रदर्शन, साफा बांधना, पगडी बांधना, रस्सा-कस्सी, माण्डना, मेहंदी माण्डना व रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है।
➤ शहर की खूबसूरत झील नवल सागर में दीपोत्सव और आतिशबाजी के आयोजन, शोभायात्रा, दीपदान, जादुई करिश्मे, ग्रामीण खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं।
➤ जिले के केशवराय पाटन नगर में नवम्बर माह में कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है।
➤ हजारों नर-नारी इस अवसर पर पवित्र चम्बल नदी में स्नान करते हैं और भगवान केशवराय जी की पूजा करते हैं।
➤ अन्य जिले के नैंनवा और काॅपरेन नगर में तेजाजी का मेला, लाखेरी नगर में गणगौर का मेला विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।
➤ कला की दृष्टि से बून्दी बहुत समृद्ध है।
➤ बून्दी की चित्रकला और चित्रशैली दुनिया में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।
➤ बून्दी की कटार दूधारी होती है। जिसे कला प्रेमियों द्वारा सहेजा जाता है।
➤ कटार पर मण्डित कला—कृतियां उसकी खास पहचान है।
➤ बून्दी की ढाल भी अपने विशेष साज—सज्जा के लिए प्रसिद्ध है।
➤ बूंदी के बंधेज का काम भी बहुत लोकप्रिय है।
➤ यहां के जुलाहे अपनी डोरिया साड़ियों की वजह से दुनिया भर में मशहूर हैं।
➤ राजस्थान के वेदव्यास कहलाने वाले महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण का संबंध बूंदी से ही है।
➤ उन्होंने वंश भास्कर, वीर सतसई जैसे काव्यों की रचना की।
➤ इसके अलावा सूर्यमल्ल मिश्रण गणित, ज्योतिष, संगीत, चित्रकला और दर्शन के भी विद्वान थे।
➤ वीर सतसई का दोहा— इला न देणी आपणी, हालरिया हुलराय। पुत सिखावे पालणे, मरण बड़ाई माय। बहुत प्रसिद्ध हुआ।
➤ इसका अर्थ होता है कि मां अपने पुत्र को झूला झूलाते हुई बाल्यकाल में मरने के महत्व को समझाती है और कहती है कि पुत्र युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो जाना लेकिन अपनी मातृभूमि किसी को न देना।
➤ वीर सतसई में स्वाधीनता संग्राम शुरू होने की तिथि का वर्णन भी इस दोहे में मिलता है— बीकम बरसो बीतिया, गुण सौ चन्द गुणीश। बिसहर तिथ गुरू जेठ, वदि समय पलटी शीश।।
➤ इसका मतलब है— विक्रमी संवत के उन्नीस सौ चौदह वर्षबीत जाने पर जेष्ठ कृष्णा 5 गुरूवार के दिन क्रान्ति हुई।