जिला दर्शन — जालोर
स्वर्णगिरि के चारों ओर स्थित जालोर जिला अरब सागर के रेगिस्तानी तट पर धूप स्नान करती हुई उस मछली के समान प्रतीत होता है जिसने अपना मुख समुद्र में डाल रखा हो। सदियों से दूर सरकता हुआ समुद्र अपने पीछे दलदल का असीम विस्तार छोड़ गया है, जिसे आज नेहड़ के नाम से जाना जाता है।
➤ महर्षि जाबालि की तपोभूमि होने के कारण जिले के प्रमुख नगर का नाम जाबालिपुर तथा कालान्तर में जालोर हुआ।
➤ यहां के प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय ने अपनी राज्य सीमाओं का विस्तार अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी (सिन्ध से बंगाल) तक किया।
➤ अपनी राष्ट्रभक्ति और आन-बान के लिए समरांगण में मर-मिटने वाले सोनगरा चैहानों ने परमारों से छीनकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
➤ जिले के तीन प्रमुख नगरों-जालोर, भीनमाल तथा सांचोर पर प्राचीन क्षत्रियों के प्रतिहार, परमार, चालुक्य, चौहान, खिलजी, पठान, मुगल और राठौड़ राजवंशों ने शासन किया।
➤ स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व वर्तमान जालोर जिला तत्कालीन जोधपुर रियासत(मारवाड़) का एक भाग था।
➤ प्रशासनिक दृष्टि से यह तीन परगनों या हुकूमतों-जालोर, जसवंतपुरा तथा सांचोर मेें विभक्त था।
➤ 30 मार्च, 1949 को राजस्थान निर्माण के समय जोधपुर रियासत के साथ ही इसका राजस्थान राज्य में विलय हो गया तथा जोधपुर संभाग का हिस्सा बना।
➤ विभिन्न जिलों का निर्माण हुआ तब वर्तमान जालोर जिला अपने अस्तित्व में आया।
➤ जालोर जिला राजस्थान राज्य के दक्षिण-पश्चिम भाग में 24.45’’5’ उत्तरी अक्षांश से 25.48’’37’ उत्तरी अक्षांश तथा 71.7’ पूर्वी देशान्तर से 75.5’’53’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।
➤ जिले का कुल क्षेत्रफल 10,564.44 वर्ग किलोमीटर है तथा राज्य का 3.11 प्रतिशत क्षेत्र घेरे हुए है।
➤ इस दृष्टि से राज्य में जिले का 13वां स्थान है।
➤ जिले की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बाड़मेर जिला, उत्तर पूर्वी सीमा पर पाली जिला, दक्षिण-पूर्वी सीमा पर सिरोही जिला तथा दक्षिण में गुजरात राज्य की सीमा लगती है।
➤ भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से जिले का अधिकांश भाग चतुर्थ युगीन व अभिनूतन कालीन जमावों से आच्छादित है।
➤ ये जमाव वायु परिवहित रेत (बालु), नवीन कछारी मिट्टी, प्राचीन कछारी मिट्टी तथा ग्रिट के रुप में जिले के अधिकांश धरातल पर दृष्टिगोचर होते हैं।
➤ चट्टानों में मालानी ज्वालामुखीय तथा जालोर ग्रेनाइट प्रमुख हैं।
➤ भीनमाल तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में जिले की सबसे ऊंची पहाड़ियां जसवंतपुरा की पहाड़ियां हैं।
➤ इसकी सबसे ऊंची चोटी सुन्धा 977 मीटर(3252) ऊंची है।
➤ यही इस जिले की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।
➤ सम्पूर्ण जिला लूनी बेसिन का एक भाग है।
➤ अतः लूनी तथा उसकी सहायक जवाई, सूकड़ी, खारी, बाण्डी तथा सागी नदियां जिले के प्रवाह तन्त्र का निर्माण करती हैं।
➤ सभी नदियां बरसाती है।
➤ शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क जलवायु वाला जिला होने के कारण यहां वार्षिक एवं दैनिक तापांतर अधिक रहता है।
➤ वार्षिक वर्षा का औसत 43.4 सेन्टीमीटर है।
➤ जनवरी सबसे ठण्डा महीना होता है और न्यून्तम तापमान 1 या 2 डिग्री सेन्टीग्रेड से नीचे चला जाता है।
➤ मई-जून में तापमान सर्वाधिक ऊंचाई पर रहता है।
➤ औसत दैनिक उच्चतम तापमान 41 या 42 डिग्री सेन्टीग्रड रहता है।
➤ कुछ दिन तो तापमान 48 डिग्री सेन्टीग्रेड को भी पार कर जाता है।
➤ जालोर का तोपखाना वस्तुतः परमार राजा भोज द्वारा बनवाई गई संस्कृत पाठशाला है।
➤ यह धार की भोजशाला की अनुकृति जान पड़ती है जिसे सरस्वती कण्ठाभरण पाठशाला के नाम से जाना जाता है।
➤ ऐसा प्रतीत होता है कि किसी कारणवश भोज इसका निर्माण पूरा नहीं करवा सका।
➤ रियासतकाल में इसमें जोधपुर राज्य की तोपें रखी जाती थीं और तब से इसका नाम तोपखाना पड़ा।
➤ इसी की अनुकृति जान पड़ता एक मन्दिर खण्डहर रूप में रानीवाड़ा के पास रतनपुर गांव में स्थित है।
➤ अरावली पर्वत श्रृंखला में 1220 मीटर की ऊंचाई के सुन्धा पर्वत पर चामुण्डा देवी का प्रख्यात मन्दिर जालोर जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है।
➤ राजस्थान एवं गुजरात से लाखों यात्री प्रतिवर्ष इस मन्दिर में दर्शनार्थ आते हैं।
➤ यहां का वातावरण अत्यन्त रमणीय है। वर्ष भर झरना बहता है जिससे प्राकृतिक वनावलि की छटा देखते ही बनती है।
➤ कलात्मक ढंग से अंकित की गई विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां एवं मण्डप की कलाकृतियां पर्यटकों को देलवाड़ा के जैन मन्दिरों की याद दिलाती हैं।
➤ यहां स्थित सुन्धा अभिलेख भारतीय इतिहास का अनोखा दस्तावेज है।
➤ वस्तुतः प्रयाग का हरिषेण प्रशान्ति लेख या दिल्ली का महरौली स्तंभ लेख भारतीय इतिहास पर जितना महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है, उतना ही महत्वपूर्ण योगदान सुन्धा अभिलेख का भारतीय इतिहास के संकलन में रहा है।
➤ भीनमाल स्थित वराह श्याम का मन्दिर भारत के अति प्राचीन व गिने-चुने वराह श्याम मन्दिरों से एक है।
➤ यहां स्थापित नर वराह की मूर्ति जैसलमेर के पीले प्रस्तर से निर्मित है जो सात फीट ऊंची तथा अढ़ाई फीट चैड़ी है।
➤ मंदिर के बाहरी चैक में स्थान-स्थान पर भूमि की खुदाई से प्राप्त मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
➤ इसमें भगवान श्याम की चतुर्भुज मूर्तियां पुरातात्विक महत्त्व की हैं, जो तत्कालीन सभ्यता, संस्कृति एवं इतिहास की अन्यत्र स्थानों से मिली जानकारियों की पुष्टि करती हैं।
➤ समदड़ी-भीलड़ी रेल मार्ग पर महोदरी माता का अति प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
➤ मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा सप्तशती नामक भाग में भगवती दुर्गा का महोदरी अर्थात् बड़े पेट वाली नाम वर्णित है।
➤ यहां स्थापित मूर्ति लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है। उत्तरी गुजरात के खेरालू नामक ग्राम के एक भाजक से प्राप्त कर स्थापित की गई है।
➤ विक्रम संवत् 1532 के एक शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का प्राचीन नाम आशापुरी मंदिर था।
➤ जालोर के सोनगरा चैहानों की जो शाखा नाडोल से उठकर जालोर आई थी, आशापुरी देवी उनकी कुलदेवी थी।
➤ कहा जाता है कि आशापुरी देवी ने राम लक्ष्मण को स्वप्न में दर्शन देकर नाडोल का राज दिया था।
➤ इस बात की चर्चा मूथा नैणसी के ख्यात में है। यहां नवरात्रि के विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग देवी के दर्शनों के लिए आते हैं।
➤ जालोर दुर्ग की निकटवर्ती पहाड़ियों में स्थित सिरे मंदिर नााि सम्प्रदाय के प्रसिद्ध जालन्धर नाथ की तपोभूमि है।
➤ वर्तमान मंदिर का निर्माण मारवाड़ रियासत के तत्कालीन शासक राजा मानसिंह ने करवाया था। ➤ अपनी विपत्ति के दिनों में उन्होंने यहां शरण प्राप्त की थी।
➤ यहां रत्नेश्वर महादेव, झालरा, जलकूप, भंवर गुफा, तालाब, भव्य हस्ति प्रतिमा, मंदिर का अभेद्या परकोटा, जनाना व मर्दान महल, भुल-भुलैया, चन्दर कूप आदि बड़े दर्शनीय एवं आकर्षक स्थल हैं।
➤ रानीवाड़ा-सांचोर मार्ग पर अत्यन्त प्राचीन शिव मंदिर आज जीर्णशीर्ण अवस्था में है।
➤ शिल्पकला एवं कारीगरी में इसे भारत के किसी भी मंदिर के समकक्ष रखा जा सकता है।
➤ इस मंदिर को सर्वप्रथम खिलजी शासक ने दिल्ली से गुजरात जाते समय तोड़ा था।
➤ बाद में इस मंदिर का जीर्णाेद्धार करवाया गया।
➤ तेरहवीं शताब्दी में कराए गए जीर्णाेद्धार का शिालेख मंदिर में आज भी उपलब्ध है।
➤ बाद में पालनपुर के नवाब द्वारा भी इस पर आक्रमण कर इसे तोड़ा गया।
➤ आज यह ऊपर से लगभग आधा उतार हुआ प्रतीत होता है।
➤ मंदिर के चारों ओर कलात्मक खुदाई वाले प्रस्तर खण्ड बिखरे हुए है।
➤ प्राचीन आश्रम व्यवस्था का युगों के व्यतीत होने के बाद आज के युग में प्रतिनिधित्व करने वाले आश्रमों में से यह एक अत्यन्त मनोहर स्थान है।
➤ अरावली पर्वतमाला में बना यह आश्रम चारों ओर रेत के टीलों से घिरा हुआ है जो कि वर्ष भर बहने वाले झरने के लगभग चरणों में स्थित है।
➤ यह झरना मंदिर से कुछ ही आगे चलकर बालू रेत में विलीन हो जाता है।
➤ यहां स्थित शिवलिंग इतना प्राचीन है कि इसे श्वेत स्फटिक प्रस्तर पट्टिकाओं से ढक दिया गया है ताकि जलाघात से लिंग को बचाया जा सके।
➤ शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है।
➤ मंदिर की महत्ता के कारण यहां जागनाथ रेलवे स्टेशन भी स्थापित किया गया है।
➤ तेरहवीं शताब्दी में बना भगवान अपराजितेश्वर शिव मंदिर आज आपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
➤ कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में यहां रात्रि विज्ञाम किया था।
➤ इस कारण इस स्थान का नाम राम शयन पड़ा जो कालान्तर में बिगड़ कर रामसीन हो गया। ➤ यहां स्थापित शिव प्रतिमा पांच फीट ऊंची है और श्वेत स्फटिक से निर्मित है।
➤ आदिदेव भगवान भोलेनाथ समाधिस्थ मुद्रा में विराजित हैं, कंठ में मालाएं, कानों में कुण्डल, भुजाओं में बाजूबन्द, पैरों में नूपुर, कटि में नागपाश धारण किए हैं।
➤ समझा जाता है कि जीर्णाेद्धार कार्य के दौरान पुरातात्विक महत्व की कुछ मूर्तियां खण्डित हो गई जिनमें प्राचीन गणपति मूर्ति भी सम्मिलित है।
➤ मंदिर के बाई ओर गोमती कुण्ड नामक बावड़ी है जिसका जल खारा है।
➤ मंदिर में श्वेत-श्याम वर्ण की दो मूर्तियां स्थापित हैं जिन्हें कुछ लोग काले एवं भैरव तथा कुछ लोग ब्रह्मा एवं विष्णु की मूर्तियां बताते हैं।
➤ इन मंदिरों के अतिरिक्त किले की प्राचीर में स्थित सोमनाथ महादेव मंदि, जोगमाया का मंदिर, जालोर से कुछ दूरियों पर स्थित कानीवाड़ा हनुमानजी, स्वरूपपुरा महादेव मंदिर, संकराना का सोमनाथ मंदिर, भीनमाल के पास आडेश्वर महादेव का मंदिर और जिले का यत्र-तत्र स्थापित छोटे-बड़े अनेक शिवालयों के देखते हुए यहां की भूमि को शंकर-पार्वती की रमण स्थली कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
➤ अत्यन्त प्राचीकाल से ही मण्डल जैन मत की साधना स्थली रहा है।
➤ कहा जाता है कि स्वयं भगवान महावीर इस क्षेत्र में पधारे थे।
➤ आठवीं शताब्दी के कुवलयमाला ग्रंथ से भी तत्कालीन जैन सम्प्रदाय की समृद्धि का परिचय मिलता है।
➤ गुरूवर शान्ति सूरीश्वर का यह मंदिर भारत भर के जैन मतावलम्बियों के लिए अत्यन्त श्रद्धा एवं विश्वास का केन्द्र है।
➤ सम्पूर्ण रूप से श्वेत स्फटिक से निर्मित यह विशाल, भव्य एवं आकर्षक गुरु मंदिर जालोर जिले की अनुपम धरोहर है।
➤ प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु यहां गुरुवर के दर्शनों के लिए आते हैं।
➤ जालोर कचहरी परिसर के ठीक सामने स्थित नन्दीश्वर तीर्थ भी पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के विशष आकर्षण का केन्द्र रहा है।
➤ मंदिर में बना कीर्तिस्तंभ कलात्मक दृष्टि से अनूठा है।
➤ मंदिर परिसर में स्थित विशाल धर्मशाला एवं भोजनशाला में तीर्थ यात्रियों के लिए आवास एवं भोजन की सुविधा उपलब्ध है।
➤ इनके अतिरिक्त भाण्डपुर का जैन मंदिर भी विख्यात एवं श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है।
➤ खगोल के प्रकाण्ड पण्डित ब्रह्मगुप्त इस जिले की महान विभूति थे जिन्होंने ब्रह्मस्फुट सिद्धन्त की रचना की थी।
➤ यमकालीन साहित्यकारों में मुनि कल्याण विजय, नैनमल जैन, रामेश्वर दयाल श्रीमाली, डा. देवदत्त नाग तथा लालदास राकेश के नाम उल्लेखनीय हैं।
➤ जिलें में मिट्टी व लकड़ी के खिलौने बनाने की कला अपनी विकसित अवस्था में है।
➤ हरजी गांव में बने मिट्टी के सवार सहित घोड़े ‘मामाजी के घोड़े’ कहलाते हैं।
➤ ये लोक देवता के रुप में एक खुले चबूतरे पर स्थापित कर पूने जाते हैं।
➤ इसी प्रकार लकड़ी खिलौनों में विविध प्राचीन एवं नवीन अनुेकृतियां बनाई जाती हैं, जिनका निर्यात होता है। लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगरों की माली हालत अच्छी है।
➤ जालोर जिले में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर सिरे मंदिर, जागनाथ मंदिर, रामसीन स्थित आपेश्वर महादेव, ऊण ग्राम में ऊणेश्वर महादेव मंदिर आदि स्थानों पर धार्मिक मेलों का आयोजन होता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भक्तजन एकत्रित होते हैं। रामसीन में यह मेला सप्ताह पर्यन्त चलता है।
➤ यह मेला वर्ष में एक बार चैत्र शुक्ला सप्तमी को जालोर, रणोदर, मूंगथलासिली आदि स्थानों पर आयोजित होता है।
➤ जालोर मुख्यालय पर आयोजित मेले में विभिन्न जाति की महिलाएं आंचलिक गीत गाती हैं।
➤ विभिन्न ग्रामों की टोलियां ढपली पर फागुन के मस्ताने गीत गाती हुई आती हैं।
➤ यह मेला जालेर से कोई 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शीतला माता के मंदिर पर आयोजित होता है। पारम्परिक वेशभूषा में ग्रामीणों का मेले के प्रति उत्साह देखते ही बनता है।
➤ जालोर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित मोदरा ग्राम में प्रतिवर्ष होली के दूसरे दिन आशापुरी माताजी के मंदिर में मेला लगता है।
➤ श्रद्धालु ग्र्रामीणजनों ने जन सहयोग से मंदिर में नवनिर्माण के अनेक कार्य कराएं हैं, जिससे मंदिर की शोभा बढ़ गई है।
➤ जिले के जसवन्तपुरा पंचायत समिति क्षेत्र में दांतलावास ग्राम के समीप स्थित पहाड़ियों के मध्य सुन्धा माता का मंदिर भक्तों का श्रद्धास्थल है।
➤ यहां पर वैशाख तथा भादों में शुक्ल पक्ष की तेरस से पूनम तक मेला लगता है तथा प्रति माह पूर्णिमा को भी मेले का सा वातावरण रहता है।
➤ रानीवाड़ा रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर आयोजित होने वाले इस पशु मेेलें में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में कांकरेज नस्ल के बैल एवं मुर्रा नस्ल के भैंसों का क्रय-विक्रय होता है।
➤ यह मेला चैत्र शुक्ला एकादशी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक चलता है जिसमें राजस्थान के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात आदि राज्यों से व्यापारी आते हैं।
➤ संवाड़ियां पशु मेले के समय ही सांचोर में भी पशु मेला प्रारम्भ हो जाता है।
➤ मेले का आयोजन पंचायत समिति सांचोर द्वारा किया जाता है।
➤ यह पशु मेला राज्य स्तर का मेला है जिसमें समीपवर्ती प्रान्तों से भारी संख्या में पशु एवं व्यापारी भाग लेते हैं।
➤ मेले में पहुंचने के लिए रानीवाड़ा तक रेलमार्ग एवं रानीवाड़ा से सांचोर तक 47 किलोमीटर सड़क मार्ग की दूरी तय करनी पड़ती है।
➤ इस मेले में प्रतिवर्ष विभिन्न इकाइयों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम, फिल्म प्रदर्शन, आकर्षक प्रदर्शनी आदि का आयोजन किया जाता है।
➤ ऐतिहासिक स्वर्णगिरि दुर्ग की सर्वोच्च चोटी पर मलिक शाह पीर के उर्स का आयोजन होता है जो धर्मिक एकता एवं हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के समन्वय का प्रतीक है।
➤ नाथ सम्प्रदाय के महन्त शंतिनाथजी द्वारा मलिकशाह पीर की मजार पर चादर चढ़ाने का निर्णय धार्मिक एकता का अद्वितीय प्रतीक है।
➤ इस अवसर पर आयोजित हुए जुलूस में हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायों के सभी वर्गों के नर-नारी व बालक उत्साह से भाग लेते हैं।
➤ रात्रि मेें कव्वाली कार्यक्रम के साथ-साथ भगवान श्री राम, कृष्ण, शिव की अर्चना व मीरा के भजनों का गायन हिन्दू और मुस्लमानों में परस्पर आत्मीयता उत्पन्न कर देता है।
➤ जालोर जिले में ग्रेनाइट, इमारती पत्थर, बजरी, चूना एवं ईट निर्माण हेतु मिट्टी आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
➤ मांग एवं आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए जिले में आॅयल एक्सपैलर रिफाइनरी, लकड़ी फर्नीचर, लैदर-प्रोसेसिंग(बैग्स, पर्स, जूतियां) अगरबत्ती, आॅटो रिपेयर्स, आरा मशीन, प्लास्टर आॅफ पेरिस, ऊन प्रोसेसिंग मिल, टायर रिट्रेड़िंग, मसाला पिसाई, ईसबगोल पर आधारित प्रोसेसिंग तथा गोंद बनाने जैसे उद्योगों के विकास की पर्याप्त संभावनांए हैं।
➤ पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, जालोर, बाड़मेर, पाली तथा सिरोही जिलों में ग्रेनाइट उद्योग अत्यन्त विकसित अवस्था में है जिनमें जालोर जिला सबसे आगे है।
➤ इस पत्थर की आयल्स बनाने का काम सबसे पहले यहीं आरम्भ हुआ।
➤ भारत सरकार के भू सर्वेक्षण विभाग की एक रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद राजस्थान सरकार का ध्यान इस ओर गया। इस रिपोर्ट में ग्रेनाइट पत्थर के क्षेत्रों को दर्शाया गया था।
➤ वर्ष 1965 में राजस्थान सरकार ने खान एवं भू विभाग के माध्यम से एक ग्रेनाइट इकाई जालोर में स्थापित की जिसमें समस्त काम हाथ से होता था।
➤ वर्ष 1971 में इसे राजस्थान उद्योग एवं खनिज विकास निगम के अन्तर्गत लाया गया।
➤ इस संस्थान की प्रगति देखकर ही हजनी क्षेत्र इस ओर आकर्षित हुआ। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1987 में ग्रेनाइट उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
➤ आज जालोर जिले में ग्रेनाइट की 60-70 खानें कार्यरत है लगभग हर खान से निकलने वाला पत्थर अलग रंग तथा मजबूती लिए होता है।
➤ इनमें जालोर, नून, लेटा, पीजोपुरा, रानीवाड़ा, तवाब, खाम्बी, धवला, मेटाला तथा नब्बी की खानों का पत्थर अधिक लोकप्रिय है।
➤ पीलोपुरा खान का पत्थर सबसे मंहगा है जबकि दूसरे नम्बर पर गढ़ सिवाना आता है।
➤ ग्रेनाइट का भाव 40 रुपये प्रति वर्ग फुट से लेकर 150 रुपये प्रति वर्ग फुट तक होता है।
➤ जालोर जिला मुख्यालय की 40 किलोमीटर की परिधि में लगभग सभी रंग के ग्रेनाइट चट्टानें उपलब्ध हैं। फिर भी काला रंग दक्षिण से ही प्राप्त होता है।
➤ वहां से इसके ब्लाॅक्स लाकर जालोर में इनके कटिंग, पाॅलिशिंग का कार्य किया जाता है।
➤ जिले की भीनमाल पंचायत समिति में जूती उद्योग काफी विकसित है।
➤ यहां की जूतियां राज्य से बाहर निर्यात की जाती हैं, जिनसे अच्छी खासी आमदनी यहां के कारीगरों को प्राप्त होती है।
खेसला उद्योग
➤ जिला मुख्यालय के निकट स्थित लेटा ग्राम में हथकरघा आधारित खेसला उद्योग काफी उन्नत अवस्था में है।
➤ यहां के स्थानीय कारीगर बड़ी सफाई से पक्के रंगों वाली सूती खेस बनाते हैं, जिंन्हे बाजार में अच्छी कीमत प्राप्त होती है।
➤ राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में होने वाली सामान्य फसलों के अतिरिक्त तीन विशिष्ट फसलों के रुप में जिले के कृषक सफलतापूर्वक उगाते हैं।
➤ लगभग 15 हजार हैक्टर क्षेत्र में सरसों की खेती होती है, जिससे लगभग एक लाख टन सरसों का उत्पादन होता है।
➤ जीरे की खेती लगभग 70 हजार हैक्टर में की जाती है जिससे लगभग 30 हजार टन जीरा उत्पन्न होता है।
➤ पूरे देश का 40 प्रतिशत ईसबगोल जिले में पैदा होता है। यह एक औषधीय फसल है।
➤ लगभग 40-45 हजार हैक्टर में ईसबगोल बोया जाता है तथा 25-30 हजार टन ईसबगोल प्राप्त होता है जिससे करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित होती है।
➤ सब्जी की फसलों में टमाटर तथा फलों में बेदाना अनार जिले की विशिष्ट फसलें हैं।