राजस्थान की प्रमुख विभूतियां (भाग—2)
कर्माबाई
कर्माबाई का जान्म 20 अगस्त 1615 को हुआ।
इनका जन्म प्रसिद्ध भक्तशिरोमणि जीवणजी डूडी के घर राजस्थान के नागोर जिले के कालवा गांव में हुआ।
यह गांव कालूजी डूडी जाट के नाम पर बसाया गया था।
इनका जन्म प्रसिद्ध भक्तशिरोमणि जीवणजी डूडी के घर राजस्थान के नागोर जिले के कालवा गांव में हुआ।
यह गांव कालूजी डूडी जाट के नाम पर बसाया गया था।
कर्माबाई ने 25 जुलाई 16 34 को जीवित समाधी ली थी। कृष्ण भक्ति शाखा की प्रमुख कवियों में इनका नाम है।
तनसिंह
तनसिंह का जन्म 1980 में बाड़मेर जिले के गांव रामदेरिया के ठाकुर बलवंत सिंह के घर हुआ।
घर की माली हालत ठीक न होने के बावजूद तनसिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बाड़मेर से पुरी कर सन 1942 में चौपासनी स्कूल जोधपुर से अच्छे अंकों के साथ मेट्रिक परीक्षा पास किया।
उच्च शिक्षा के लिए पिलानी चले आए जहां से वह नागपुर पहुंचे और वकालत की परीक्षा पास कर सन 1949 में बाड़मेर आकर वकालत का पेशा अपनाया।
लेकिन वकालत के बजाय समाजसेवा में जुट गए। 25 वर्ष की आयु में बाड़मेर नगर वासियों ने उन्हें बाड़मेर नगर पालिका का अध्यक्ष चुन लिया और 1952 के विधानसभा चुनावों में वे पहली बार बाड़मेर से विधायक चुन कर राजस्थान विधानसभा पहुंचे ।
इसके बाद सांसद चुने गए। 7 दिसंबर 1979 को इन्होंने अंतिम सांस ली। राजनीतिज्ञ के साथ ही इन्होंने कई किताबें भी लिखीं।
घर की माली हालत ठीक न होने के बावजूद तनसिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बाड़मेर से पुरी कर सन 1942 में चौपासनी स्कूल जोधपुर से अच्छे अंकों के साथ मेट्रिक परीक्षा पास किया।
उच्च शिक्षा के लिए पिलानी चले आए जहां से वह नागपुर पहुंचे और वकालत की परीक्षा पास कर सन 1949 में बाड़मेर आकर वकालत का पेशा अपनाया।
लेकिन वकालत के बजाय समाजसेवा में जुट गए। 25 वर्ष की आयु में बाड़मेर नगर वासियों ने उन्हें बाड़मेर नगर पालिका का अध्यक्ष चुन लिया और 1952 के विधानसभा चुनावों में वे पहली बार बाड़मेर से विधायक चुन कर राजस्थान विधानसभा पहुंचे ।
इसके बाद सांसद चुने गए। 7 दिसंबर 1979 को इन्होंने अंतिम सांस ली। राजनीतिज्ञ के साथ ही इन्होंने कई किताबें भी लिखीं।
बलदेवराम मिर्धा
चौधरी बलदेवराम मिर्धा का राजस्थान में नागौर जिले के जाट नेता व किसानों के रक्षक माने जाते हैं।
इन्होंने समाज सेवा के साथ ग्राम उत्थान और शिक्षा प्रसार की अलग गांव-गांव जगाई।
किसानों के बच्चों को विद्याध्ययन की प्रेरणा दी। आपने मारवाड़ में छात्रावासों की एक श्रंखला खड़ी कर दी।
इन्होंने समाज सेवा के साथ ग्राम उत्थान और शिक्षा प्रसार की अलग गांव-गांव जगाई।
किसानों के बच्चों को विद्याध्ययन की प्रेरणा दी। आपने मारवाड़ में छात्रावासों की एक श्रंखला खड़ी कर दी।
कन्हैयालाल सेठिया
महाकवि कन्हैयालाल सेठिया को राजस्थानी साहित्य का भीष्म पितामह कहा जाता है।
इन्होंने ताउम्र राजस्थानी भाषा के विकास के लिए संघर्ष किया। सेठिया का11 सितम्बर 1919 को चुरू के सुजानगढ़ में हुआ।
राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध कवि सेठिया की प्रमुख कृतियाँ है- रमणियां रा सोरठा, गळगचिया मींझर, कूंकंऊ आदि हैं।
इन्हें 2004 में पद्मश्री साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 198 8 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
11 नवम्बर 2008 को निधन हो गया
इन्होंने ताउम्र राजस्थानी भाषा के विकास के लिए संघर्ष किया। सेठिया का11 सितम्बर 1919 को चुरू के सुजानगढ़ में हुआ।
राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध कवि सेठिया की प्रमुख कृतियाँ है- रमणियां रा सोरठा, गळगचिया मींझर, कूंकंऊ आदि हैं।
इन्हें 2004 में पद्मश्री साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 198 8 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
11 नवम्बर 2008 को निधन हो गया
मोतीलाल तेजावत
मोतीलाल तेजावत का जन्म 16 मई 1887 में उदयपुर के कोलीयार गांव में हुआ।
इनहोंने भील, गरासिया तथा अन्य काश्तकारों पर होने वाले सामंती अत्याचार का विरोध किया और उन्हें एकजुट किया।
सन 1920 में आदिवासियों के हितों को लेकर मातृकुंडिया नामक स्थान पर एकी नामक आंदोलन शुरू किया।
इन्होंने किसानों से बेगार बंद बनाई और कामगारों को उनकी उचित मजदूरी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आदीजा के बाद उदयपुर व चितौडग़ढ़ से लोकसभा सदस्य रहे तथा राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी बने।
इनहोंने भील, गरासिया तथा अन्य काश्तकारों पर होने वाले सामंती अत्याचार का विरोध किया और उन्हें एकजुट किया।
सन 1920 में आदिवासियों के हितों को लेकर मातृकुंडिया नामक स्थान पर एकी नामक आंदोलन शुरू किया।
इन्होंने किसानों से बेगार बंद बनाई और कामगारों को उनकी उचित मजदूरी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आदीजा के बाद उदयपुर व चितौडग़ढ़ से लोकसभा सदस्य रहे तथा राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी बने।
स्वामी कुमारानंद
स्वामी कुमारानंद का जन्म 15 अप्रैल 18 8 9 में हुआ। इनके पिता रंगून के कमिश्नर थे।
उच्च शिक्षा कोलकाता में हासिल करने के बाद राजस्थान आए और सन 1921 में व्यावर के किसानों को संगठित किया।
सन 1945 में राजपूताना मध्य भारत ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सम्मेलन के माध्यम से किसानों, मजदूरों की आवाज उठाई।
काकोरी कांड के आरोपियों के आश्रयदाता और विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रहे। इनकी मृत्यू 29 दिसंबर 1971 में हुई।
उच्च शिक्षा कोलकाता में हासिल करने के बाद राजस्थान आए और सन 1921 में व्यावर के किसानों को संगठित किया।
सन 1945 में राजपूताना मध्य भारत ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सम्मेलन के माध्यम से किसानों, मजदूरों की आवाज उठाई।
काकोरी कांड के आरोपियों के आश्रयदाता और विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रहे। इनकी मृत्यू 29 दिसंबर 1971 में हुई।
लादूराम जोशी
सीकर के मूंडवाड़ा ग्राम में 18 95 में पैदा हुआ लादूराम जोशी नमक सत्याग्रह व अगस्त क्रांति में सक्रिय रहे।
वे राजस्थान सेवा संघ के आजीवन सदस्य रहे। बिजौलिया, बूंदी, बेहू और सिरोही में आंदोलन के समय लोकजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बिसाऊ नगर में सत्याग्रह आंदोलन का संचालन किया।
काम के नोट्स:
वे राजस्थान सेवा संघ के आजीवन सदस्य रहे। बिजौलिया, बूंदी, बेहू और सिरोही में आंदोलन के समय लोकजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बिसाऊ नगर में सत्याग्रह आंदोलन का संचालन किया।
काम के नोट्स: