राजस्थान की प्रमुख विभूतियां (भाग—1)
महाराजा सूरज मल (Maharaja Surajmal)
महाराजा सूरज मल भरतपुर राज्य के महाराजा थे ।
इन्हें जाट समाज के प्लेटो कहा जाता था।
सूरजमल ने सन् 1733 में खेमकरण सोगरिया की फतहगढ़ी पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की।
यहाँ पर 1743 में भरतपुर नगर की नींव रखी। सन् 1753 में वे यहाँ आकर रहने लगे।
महाराजा सूरजमल ने जयपुर के महाराजा जयसिंह से भी मधुर सम्बन्ध थे।
इन्हें जाट समाज के प्लेटो कहा जाता था।
सूरजमल ने सन् 1733 में खेमकरण सोगरिया की फतहगढ़ी पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की।
यहाँ पर 1743 में भरतपुर नगर की नींव रखी। सन् 1753 में वे यहाँ आकर रहने लगे।
महाराजा सूरजमल ने जयपुर के महाराजा जयसिंह से भी मधुर सम्बन्ध थे।
प्रभु लाल भटनागर (Prabhu Lal Bhatnagar)
प्रभू लाल भटनागर का जन्म 8 अगस्त 1912 को कोटा में हुआ।
वे प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे।
इन्हें गणित के लैटिस.बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए जाना जाता है।
इनके पिता कोटा के महाराजा के दरबार में उच्च- पदासीन थे।
इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा रामपुरा में और आगे कोटा के हर्बर्टर कॉलिज से ली।
जयपुर के महाराजा कालेज से 1935 में विज्ञान स्नातक में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
1952 में इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय से फुलब्राइट स्कॉलर रूप में न्यौता मिला।
अपने शोध अनुसंधान के साथ साथ ही इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय गणित ऑलंपियाड प्रतियोगिता की आधारशिला भी रखी।
भारत को इनके अभूतपूर्व योगदानों के लिये भारत सरकार द्वारा इन्हें 26 जनवरी 1968 को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
उसके बाद 1969 में ये राजस्थान विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन हुए।
ये संघ लोक सेवा आयोग से सदस्य रूप में दिल्ली में जुड़े। 1975 में इलाहाबाद में नवनिर्मित मेहता अनुसंधान संस्थान में निदेशक बने।
5 अक्टूबर 1976 को हृदयाघात के कारण इन्होंने अपनी अंतिम श्वास ली।
वे प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे।
इन्हें गणित के लैटिस.बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए जाना जाता है।
इनके पिता कोटा के महाराजा के दरबार में उच्च- पदासीन थे।
इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा रामपुरा में और आगे कोटा के हर्बर्टर कॉलिज से ली।
जयपुर के महाराजा कालेज से 1935 में विज्ञान स्नातक में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
1952 में इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय से फुलब्राइट स्कॉलर रूप में न्यौता मिला।
अपने शोध अनुसंधान के साथ साथ ही इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय गणित ऑलंपियाड प्रतियोगिता की आधारशिला भी रखी।
भारत को इनके अभूतपूर्व योगदानों के लिये भारत सरकार द्वारा इन्हें 26 जनवरी 1968 को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
उसके बाद 1969 में ये राजस्थान विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन हुए।
ये संघ लोक सेवा आयोग से सदस्य रूप में दिल्ली में जुड़े। 1975 में इलाहाबाद में नवनिर्मित मेहता अनुसंधान संस्थान में निदेशक बने।
5 अक्टूबर 1976 को हृदयाघात के कारण इन्होंने अपनी अंतिम श्वास ली।
दशरथ शर्मा (dashrath sharma)
प्रोफेसर दशरथ शर्मा का जन्म चूरू शहर में हुआ।
वह राजस्थान के जाने वाले इतिहासकार थे।
इनकी आरम्भिक शिक्षा चूरु में ही हुई।
आगे की पढाई इन्होंने बीकानेर एवम् दिल्ली विश्वविद्यालय से की।
वह राजस्थान के जाने वाले इतिहासकार थे।
इनकी आरम्भिक शिक्षा चूरु में ही हुई।
आगे की पढाई इन्होंने बीकानेर एवम् दिल्ली विश्वविद्यालय से की।
कान सिंह परिहार (Kan Singh Parihar)
कान सिंह परिहार का जन्म 30 अगस्त 1913 को जोधपुर के पास सूरसागर गांव में हुआ।
आप राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधिश व जोधपुर विश्वविद्यालय पूर्व कुलपति है है।
आप राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधिश व जोधपुर विश्वविद्यालय पूर्व कुलपति है है।
बनवारी लाल जोशी (Banwari Lal Joshi)
बनवारीलाल जोशी का जन्म 27 मार्च 1936 को नागौर के छोटी खाटू नामक ग्राम में हुई।
इन्होंने अपना स्नातक कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कालेज से किया। उसके उपरांत विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय कोलकाता से विधि में स्नातक हुए।
ये उत्तराखंड के राज्यपाल रहे। इससे पूर्व ये दिल्ली के भी उपराज्यपाल रह चुके हैं। फिर 2007 में जोशी मेघालय के राज्यपाल बने।
इन्होंने अपना स्नातक कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कालेज से किया। उसके उपरांत विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय कोलकाता से विधि में स्नातक हुए।
ये उत्तराखंड के राज्यपाल रहे। इससे पूर्व ये दिल्ली के भी उपराज्यपाल रह चुके हैं। फिर 2007 में जोशी मेघालय के राज्यपाल बने।
मेजर पीरू सिंह (Major Piru Singh)
राजपूताना रायफल्स के हवलदार मेजर पीरु सिंह शेखावत झुंझुनू के पास बेरी गांव के लाल सिंह शेखावत के पुत्र थे, जिनका जन्म 20 मई 1918 को हुआ।
शेखावत ने जम्मू कश्मीर में तिथवाल के दक्षिण में इन्हे शत्रु के पहाड़ी मोर्चे को विजय करने का आदेश मिला।
मोर्चे पर बुरी तरह घायल होने बावजूद अपनी स्टेनगन और संगीन से पोस्ट पर मौजूद दुश्मनों को खत्म कर एमएमजी की फायरिंग को खामोश कर दिया लेकिन तब तक उनकी कम्पनी के सारे साथी सैनिक मारे जा चुके थे वे एक मात्र जिन्दा लेकिन बुरी तरह घायल अवस्था में बचे थे।
क्षत-विक्षत शरीर के साथ दुश्मन के तीसरे मोर्चे पर टूट पड़े। रास्ते में सिर में गोली लगने पर ये 19 जुलाई 1948 को वीर गति को प्राप्त हुए।
भारत सरकार ने इन्हे मरणोपरांत इनकी इस महान और अदम्य वीरता के लिए वीरता के सबसे उच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया
शेखावत ने जम्मू कश्मीर में तिथवाल के दक्षिण में इन्हे शत्रु के पहाड़ी मोर्चे को विजय करने का आदेश मिला।
मोर्चे पर बुरी तरह घायल होने बावजूद अपनी स्टेनगन और संगीन से पोस्ट पर मौजूद दुश्मनों को खत्म कर एमएमजी की फायरिंग को खामोश कर दिया लेकिन तब तक उनकी कम्पनी के सारे साथी सैनिक मारे जा चुके थे वे एक मात्र जिन्दा लेकिन बुरी तरह घायल अवस्था में बचे थे।
क्षत-विक्षत शरीर के साथ दुश्मन के तीसरे मोर्चे पर टूट पड़े। रास्ते में सिर में गोली लगने पर ये 19 जुलाई 1948 को वीर गति को प्राप्त हुए।
भारत सरकार ने इन्हे मरणोपरांत इनकी इस महान और अदम्य वीरता के लिए वीरता के सबसे उच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया
दिगेंद्र कुमार (Digendra Kumar)
नायक दिगेंद्र कुमार का जन्म राजस्थान के सीकर जिले की नीम का थाना तहसील के गाँव झालरा में 3 जुलाई 1969 को हुआ।
महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र भारतीय सेना की 2 राज राइफल्स में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध के समय जम्मू कश्मीर में तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटी को मुक्त करवाकर 13 जून 1999 की सुबह चार बजे तिरंगा लहराते हुए भारत को प्रथम सफलता दिलाई जिसके लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1999 को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
काम के नोट्स:
महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र भारतीय सेना की 2 राज राइफल्स में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध के समय जम्मू कश्मीर में तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटी को मुक्त करवाकर 13 जून 1999 की सुबह चार बजे तिरंगा लहराते हुए भारत को प्रथम सफलता दिलाई जिसके लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1999 को महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
काम के नोट्स: