जिला दर्शन- बीकानेर
बीकानेर राजस्थान के मरूस्थल की गोद में बसा शहर अपने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ भौगोलिक विशिष्टता के लिए विख्यात है। लाल पत्थर के भव्य प्रासाद, हवेलियां, कोलायत, गजनेर के रमणीय स्थल, राज्य अभिलेखागार, म्यूजियम, अनुपम संस्कृत पुस्तकालय व टेस्सीतोरी की कर्मस्थली होने के कारण यह जिला ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी जोधपुर के महाराजा राव जोधा के पुत्र थे। वीर बीकाजी ने अपने बाहुबल से जो भूमि अर्जित करके 3 अप्रेल, 1488 को अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया, वह बीकानेर के नाम से विख्यात है।
जहां यह नगर आबाद है। वह स्थान कभी ’राती घाटी’ के नाम से जाना जाता था। सर्वप्रथम शहर के आबाद होने से पूर्व विक्रम सम्वत् 1542 में बीकाजी ने ’राती घाटी’ के उस टीले पर अपना एक छोटा-सा किला बनवाया जहां वर्तमान में लक्ष्मीनाथ जी के मंदिर के सामने गणेशजी का मंदिर है।
15 वीं शताब्दी से पहले, बीकानेर को जांगलदेश के नाम से जाना जाता था। 1486 में, राजपूत शासक राव बीका ने इस जगह का निर्माण किया था। जिस स्थान पर राव बीका इसे बनाना चाहते थे, वह नेहरा जाट का था, जो राजा को भूमि देने के लिए तैयार हो गए, इसी वजह से इस जगह का नाम दोनों के नाम को जोडकर बीकानेर रखा गया। राव जोधा ने वर्तमान बीकानेर को स्वरूप प्रदान किया। चूंकि बीकानेर थार रेगिस्तान के बीच में था, इसलिए यह गुजरात तट और मध्य एशिया के बीच व्यापार मार्ग के बीच एक विश्राम स्थल के तौर पर भी विकसित हुआ था।
बीका ने 1478 ई. में इस क्षेत्र में एक किला भी बनवाया था। यह जूनागढ़ किले के नाम से प्रसिद्ध है। राव बीका के बाद बीकानेर में जो बड़ा विकास हुआ, वह राजा राय सिंह के शासन में हुआ, जिन्होंने 1571 ई. से 1611 ई. तक शासन किया। राजा राय सिंह ने कई युद्ध जीते जिनमें से एक प्रमुख उपलबि्ध मेवाड को जीतना था। राय सिंह ने 760 फीट की ऊंचाई पर जूनागढ़ किले जिसे चिंतामणि दुर्ग भी कहा जाता है, का पुनर्निर्माण किया।
महाराजा कर्ण सिंह ने 1631 ई. से 1639 ई. तक बीकानेर पर शासन किया और करण महल पैलेस का निर्माण किया। महाराजा अनूप सिंह ने 1669 ई. से 1698 ई. तक शासन किया। करण महल को अनूप सिंह ने ‘दीवान-ए-आम’ में बदल दिया और उसका नाम बदलकर अनूप महल रख दिया गया। चन्द्र महल का जीर्णोद्धार महाराजा गजसिंह ने करवाया जिन्होंने 1746 ई. से 1787 ई. तक शासन किया।
1818 में, महाराजा सूरत सिंह के शासन के दौरान, बीकानेर अंग्रेजों के शासन में आया। उसके बाद, जूनागढ़ किले को पुनर्निर्मित करने के लिए बहुत सारा पैसा लगाया गया था। बादल महल का निर्माण महाराजा डूंगर सिंह ने 1872 ई. में करवाया था। महाराजा गंगा सिंह, जो ब्रिटिश वायसराय के पसंदीदा राजाओं में से एक थे, ने प्रसिद्ध गंगा महल और गंगा निवास पैलेस का निर्माण किया। इस महल को सर सैमुअल जैकब द्वारा डिजाइन किया गया था। उन्होंने इस महल का नाम ‘लालगढ़ पैलेस’ रखा और अपना शाही निवास स्थान जूनागढ़ से लालगढ़ स्थानांतरित कर दिया।
भौगोलिक परिदृश्य
राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में बसा बीकानेर 27,244 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फैला हुआ है। हय जिला 270.11’ से 200.03’ उत्तरी अक्षांश एवं 710.54’ से 740.12 पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है।
जिले की सीमा जहां चूरू, नागौर, गंगानगर, जैसलमेर की सीमा को छूती है, वहीं अनतर्राष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान से भी मिलती है। जिले के दौ प्राकृतिक भागों को उत्तरी व पश्चिमी रेगिस्तान व दक्षिणी व पूर्व अर्द्ध मरूथ्सल व विभाजित किया जा सकता है।
कई स्थानों पर अधिकार मिट्टी के टीले 6 से 30 मीटर ऊंचाई तक देखे जा सकते हैं जलवायु शुष्क है, अतः तापमान में काफी परिवर्तन होते रहते हैं। गर्मियों में लू भरी आंधियां चलती है तथा तापमान 490 सेन्टीग्रेट तक पहुंच जाता है। सर्दियों में तापमान जमाव बिन्दु तक चला जाता है। जिले में सामान्य वार्षिक वर्षा 26.37 सेन्टीमीटर दर्ज की गई है।
वनस्पति
जिले की वनस्पति ट्रॉपिकल वनों के प्राकृतिक खण्ड के तहत आती है। खेजड़ी, रोहिड़ा, बेर और जाल व पीलू के पेड़ आमतौर पर पाये जाते हैं। नहर व तालाबों के किनारे एवं उद्यानों में पाये जाने वाले वृक्षों में शीशम, पीपल, बड़़, सरेस आदि मुख्य है।
आक, फोग, बुई, पाला, करौल, सिवाना, मूंज एवं कान्स कुछ उल्लेखनीय झाड़ियां तथा घास है चूंकि जिले में कोई घना जंगल व पहाड़़ नहीं है, अतः वन्य जीवों में भारतीय मृग, ब्लेक बक, चिंकारा, लोमड़ी, गीदड़, मैन्गूज, साही, गिलहरी, जंगली रीछ, सूअर व भेड़िया प्रमुख है।
खरीफ जिले की मुख्य फसल है। खरीफ में दालें, गेहूं, बाजरा, ग्वार, गन्ना, इत्यादि का उत्पादन होता है। वूलन मिल्स, उरमूल डेयरी, तिलम् संघ, ऊन आधारित उद्योगों के अलावा कुटीर उद्योगों में कताई-बुनाई, स्टील, फेब्रिकेशन, रंगाई-छपाई, ऊन व खिलौने, कागज निर्माण, भुजिया, पापड़ व रसगुल्ला निर्माण आदि शामिल है।
दर्शनीय स्थल
बीकानेर की पर्यटन दृष्टि से अपनी विशिष्ट पहचान है जिले के प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाले स्थानों को सार-संभाल कर उन्हें सुरूचिपूर्ण रूप प्रदान किया गया है।
ऐसे स्थान लोगों की आस्था के साथ-साथ पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के प्रमुख स्थल है। प्रतिवर्ष हजारों देशी-विदेशी पर्यटक व अन्य श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है।
श्री कोलायत
कोलायत बीकानेर से लगभग 30 मील दक्षिण-पश्चिम में बसा एक शहर और तहसील है। इस शहर का नामकरण यहाँ के तालाब कोलायत पर हुआ है। माना जाता है कि इसी कोलायत तालाब के किनारे कपिल मुनि ने अपना आश्रम बनाया था। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ मेला लगता है। इस स्थान पर ढेरों मंदिर बने हुए हैं जिसमें कपिल मुनी के मंदिर के साथ ही धुनी नाथ जी का मंदिर प्रमुख है।
सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोभूमि कोलायत सरोवर की खुदाई करके इसे गहरा किया गया है। घाटों की मरम्मत के साथ-साथ इससे जुडे़ परिसर में रंगारंग फव्वारों युक्त उद्यानों का विकास करके इस स्थान का कायाकल्प किया गया है। कपिल उद्यान का सौन्दर्य देखते ही बनता है। पर्यटन विभाग ने कपिल सरोवर में नौका विहार की सुविधा उपलब्ध करवाई है।
गजनेर
मरू प्रदेश का नैसर्गित दृश्य गजनेर में देखने को मिलता है। झील, महल, वन्य-जीव अभयारण, अप्रवासी पक्षियों का कलरव तथा तालाब में किलकारियों करते पक्षियों के झुंड बरबस ही राहगीर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं निजी क्षेत्र के कारण इस स्थल का जनसाधारण द्वारा उपयोग नहीं के बराबर था।
झील, तालाब व अभयारण्य से सटते ही प्राचीन गोपाल मंदिर का जीर्णोद्धार करके उसे रमणीय स्थल में परिवर्तित किया गया है। इस परिसर में बीकानेर की स्थापत्य कला के अनुरूप गुमटियां व रेलिंग लगाकर नया स्वरूप दिया गया है। यहां नौका विहार सुविधा भी उपलबध है।
देशनोक का करणी माता मंदिर
देशनोक का करणी माता का मंदिर अपनी स्थापत्य कला तथा काबों (चूहों) के अजूबे के लिए विश्वविख्यात है। हर वर्ष देश-विदेश के हजारों लोग यहां पहुंचते हैं।
लोकमान्यता है कि करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ था। उन्हें मां जगदम्बा का अवतार माना जाता है। मान्यता के अनुसार वे एक गुफा में रहकर अपने इष्ट देव की तपस्या करती थी।
यह गुफा वर्तमान मंदिर में देखी जा सकती है। मां करणी के आशीष से ही बीकानेर और जोधपुर राज्यों की स्थापना हुई। माना जाता है कि करणी माता संवत 1595 में चैत्र शुक्ल नवमी को समाधिस्थ हुईं। तब से यहां उनकी पूजा हो रही है।
वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर महाराजा गंगा सिंह जी ने करवाया। इसके निर्माण में संगमरमर का प्रमुखता से प्रयोग किया गया है। यह मंदिर अपने चूहों के कारण पूरी दुनिया में जाना जाता है। सफेद चूहे यहां ज्यादा महत्व पाते हैं, उनकी भी अच्छी खासी संख्या यहां देखने को मिलती है।
विश्नोई तीर्थ मुकाम
नोखा के पास गुरू जम्भेश्वर की तपोभूमि मुकाम से श्रद्धालु भक्तों के सहयोग से विशाल और भव्य मंदिर निर्माणाधीन है। गुरू जम्भेश्वर की समाधि स्थल पर वर्ष में दो बार विशाल मेला लगता है।
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश और अन्य दूरस्थ स्थानों से हजारों संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। जिला प्रशासन ने यात्रियों की सुविधा के लिए एक विश्राम गृह का निर्माण करवाया है।
देवी कुण्ड सागर
बीकानेर से 7 किलोमीटर दूर देवी कुण्ड सागर तालाब ऐतिहासिक महत्व के मंदिरों की श्रृंखला के कारण रमणीक स्थल है। बरसात के मौसम में नगरवासी यहां जल-क्रीड़ाओं के लिए पहुंचते हैं। समीप ही पूर्व बीकानेर राजघराने की छतरियां भी हैं। यह स्थल स्काउट गाईड आंदोलन से जुडे़ लोगों का प्रशिक्षण केन्द्र भी है।
जूनागढ़ का किला
राजा राय सिंह द्वारा 1593 ईस्वी में निर्मित जूनागढ़ बीकानेर का एक प्रमुख किला है। यह पहले चिंतामणि दुर्ग के नाम से जाना जाता था, लेकिन 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में जूनागढ़ किले के तौर पर इसका नामकरण हुआ।
यह राजस्थान के उन दुर्लभ किलों में से एक है, जो पहाड़ी-चोटी पर नहीं बने हैं। जूनागढ़ किले के आसपास बीकानेर शहर बना है। इतिहास में इस किले पर बार-बार हमले हुए लेकिन कोई भी किले को जीत नहीं सका।
किले की वास्तुकला गुजराती और मुगल शैली से संबंधित है। किले के कुछ हिस्सों में वास्तुकला में राजपूत शैली भी देखी जा सकती है। जूनागढ़ किले में चंद्र महल, अनूप महल, डूंगर महल, हवा महल, गंगा महल और दीवान-ए-ख़ास दर्शनीय हैं। यह जिले के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक हैं।
लालगढ़ पैलेस
महाराजा गंगा सिंह ने अपने स्वर्गीय पिता महाराजा लाल सिंह की याद में 1902 ईस्वी में लालगढ़ महल का निर्माण किया। महल को सर सैमुअल जैकब द्वारा डिजाइन किया गया था और इसे लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाया गया था। महल की वास्तुकला में यूरोपीय, मुगल और राजपूत शैली का मिश्रण है। महल में एक विशाल फैला हुआ लॉन है जिसमें मोर रहते हैं। महल में एक कार्ड रूम, एक बिलियर्ड रूम और एक पुस्तकालय भी है। राज्य के पर्यटन में किले का बहुत योगदान है।
गजनेर पैलेस
महाराजा गंगा सिंह द्वारा निर्मित एक झील के किनारे, गजनेर महल को शाही परिवार द्वारा शिकारगाह के रूप में इस्तेमाल किया गया था। महल लाल बलुआ पत्थर से बना है और वास्तुकला शैली अद्भुत है। अब एक हेरिटेज होटल में बदल दिया गया है। यह घने जंगल के बीच में स्थित है और इस जगह से बहुत सारे प्रवासी पक्षियों के मनोरम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
बीकानेर कैमल सफारी
बीकानेर में एक और आकर्षण प्रसिद्ध कैमल सफारी है जो राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है। सफारी में पर्यटकों को विशाल थार रेगिस्तान की यात्रा ऊंट की सवारी से करवाई जाती है। इसमें पर्यटकों को सनसेट प्वाइंट तक ले जाया जाता है।
गजनेर वन्यजीव अभयारण्य
बीकानेर शहर से लगभग 32 किमी की दूरी पर स्थित, गजनेर वन्यजीव अभयारण्य पहले शाही परिवार का शिकारगाह था। अभयारण्य में एक सुंदर झील भी है। झील विभिन्न पक्षी प्रजातियों को भी आकर्षित करती है। अभयारण्य में हिरण, नीलगाय, काला हिरन, जंगली सूअर, रेगिस्तानी लोमड़ी, मृग और अन्य वन्यप्राणी देखे जा सकते हैं।
गंगा सिंह संग्रहालय
गंगा सिंह संग्रहालय का निर्माण 1937 में महाराजा गंगा सिंह द्वारा किया गया था। संग्रहालय एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है और इसमें ऐतिहासिक लेख हैं जो यह साबित करते हैं कि यहां सभ्यता हड़प्पा काल के अस्तित्व से पहले भी मौजूद थी। ऐतिहासिक लेखों में राजपूत शासकों के चित्र, चित्र, मिट्टी के बर्तन आदि शामिल हैं।
सादुल सिंह संग्रहालय
सादुल सिंह संग्रहालय पर्यटकों के आकर्षण का एक और स्थान है और लालगढ़ महल की दूसरी मंजिल पर स्थित है। सादुल सिंह संग्रहालय 1972 में अस्तित्व में आया और वर्तमान में, कई शिकार ट्राफियां, जॉर्जियाई पेंटिंग और दुर्लभ कलाकृतियाँ हैं। संग्रहालय में महाराजा गंगा सिंह, सादुल सिंह और कर्णी सिंह के समय के ऐतिहासिक लेख भी हैं।
जैन मंदिर
बीकानेर के प्रसिद्ध जैन मंदिर की शुरुआत 1468 ईस्वी में भंडास ओसवाल ने की थी। वास्तुकला की राजपुताना शैली के आधार पर मंदिर का निर्माण 1514 में पूरा हुआ। यह एक अद्भुत रूप से निर्मित मंदिर है जिसमें मूर्तियां और सोने की पत्ती का काम किया गया है। यह लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी तीन मंजिला इमारत है।
रामपुरिया हवेली
बीकानेर की हवेलियों में नक्काशी सबसे अच्छी तरह देखने को मिलती है। हवेलियाँ प्रासाद वास्तुकला के अनुपम उदाहरण हैं। इस तरह की हवेलियाँ या आवासीय घर दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं हैं। महान लेखक और दार्शनिक, एल्डस हक्सले कहते हैं कि वे बीकानेर के गौरव हैं। वे पुराने शहर में संकरी गलियों में स्थित हैं।