महिलाओं से जुड़े अपराध व सम्बन्धित कानून
बाल अधिकारों और कानूनों पर दो पोस्ट डाली जा चुकी है। यह पोस्ट महिलाओं से सम्बन्धित अपराध एवं उसको रोकने के लिये बनाये गये कानूनों पर केन्द्रित है। यह टॉपिक हमेशा से परीक्षार्थियों के लिये मुश्किल रहा है क्योंकि सारे तथ्य एक ही स्थान पर नहीं मिलते हैं. हम यहां सभी तथ्यों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं. यहाँ महिला अधिकार एवं कानूनों को संक्षिप्त और सरल भाषा में आपको उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा. इस विषय पर पहली पोस्ट- महिलाओं से जुड़े अपराध व सम्बन्धित कानून के बाद इस दूसरी पोस्ट में भी महिला अधिकार एवं संबंधित कानूनी प्रावधान/नियमों की जानकारी दी जा रही है. हाल में होने वाले कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में यह तो एक टॉपिक के तौर पर सिलेबस का हिस्सा है. उम्मीद है आपको इससे तैयारी करने में सहायता मिलेगी.
-कुलदीप सिंह चौहान
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महिला संबंधी अपराधों को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान
(1) भारतीय दण्ड संहिता 1860 – यह अपराध और उसके लिए सजा एवं जुर्माने के बारे में बताती है। यह पूरे भारत में लागू है। इस संहिता में महिलाओं के प्रति अपराध के संबंध में विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो निम्नानुसार हैः-
(अ) धारा 354 – स्त्री की लज्जा भंग के उद्देश्य से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
(ब) धारा 354 ए – यौन उत्पीड़न के लिए सजा
(स) धारा 354 बी – बल पूर्वक या हमले द्वारा किसी स्त्री को नग्न करना या नग्न होने के लिए विवश करना।
(द) धारा 354 सी – तांक-झांक करना (घूरना)
(इ) धारा 354 डी – स्त्री का पीछा करना।
(उ) धारा 376:- यह धारा बलात्कार से संबंधित है। पति-पत्नी अलग हो गए हैं तो पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है। (धारा 376 बी)
12 वर्ष से कम उम्र की बालिका से शारीरिक संबंध बलात्कार माना जाएगा। (धारा 376 एबी)
सरकारी स्थान में अभिरक्षा में स्त्री के साथ बलात्कार धारा 376 सी के अन्तर्गत अपराध है।
किसी भी अपराध में महिला आरोपी को बिना किसी महिला कांस्टेबल के शाम 6 बजे के बाद अथवा सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
धारा 376 के अधीन यदि कोई स्त्री न्यायालय के सम्मुख यह कहती है कि उसके साथ शारीरिक संबंध बिना सहमति के बनाए गए तो न्यायालय यह मानेगा कि सहमति नहीं दी गई थी। (साक्ष्य अधि. की धारा 114 A)
साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 B में कहा गया है कि यदि कोई स्त्री न्यायालय में यह कहती है कि उसका यौन उत्पीड़न हुआ है, लज्जा भंग हुई है, उसका पीछा किया गया है तो जब तक इसके विपरीत तथ्य न्यायालय में साबित ना हो जाए तब तक न्यायालय यह मानेगा कि अपराध उस व्यक्ति द्वारा किया गया है।
आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2015 मे महिला अपराध की सुनवाई बंद कमरे मे व विडियोग्राफी का प्रावधान किया गया है। इस कानून में महिलाओं के विरूद्ध अपराध की FIR दर्ज नहीं करने वाले पुलिसकर्मियों को दण्डित करने का भी प्रावधान है।
अपराधी महिला को महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही गिरफ्तार किया जा सकता है। बलात्कार पीड़ित महिला के बयान विशेष रूप से महिला पुलिस अधिकारी द्वारा लिखे जाने चाहिए तथा बयान उसके निवास स्थान पर या उसके इच्छित स्थान पर लिये जाने चाहिए।
महिला परिवादी तथा गवाहों को यथा संगत पुलिस थाने पर नहीं बुलाया जाए और सूर्यास्त के पश्चात एवं सूर्योदय से पहले महिलाओं को किसी भी परिस्थिति में थाने में नहीं बुलाया जाए। किसी भी महिला को शाम 6 बजे के बाद एवं सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता तथा गिरफ्तारी के दौरान महिला कान्स्टेबल की उपस्थिति अनिवार्य है।
महिला अपराध के संबंध में महिला देश के किसी भी थाने मे FIR दर्ज करा सकती है।
(अ) धारा 498 A दहेज उत्पीड़न से संबंधित है।
(ब) धारा 509 – ऐसे शब्द बोलना, शारीरिक प्रदर्शन करना या ऐसा कार्य करना जो स्त्री की लज्जा का अनादर करते हो।
इन धाराओं में अपराध के लिए सजा अथवा जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा व गरिमा की सुरक्षा करना है।
भारतीय दण्ड संहिता संशोधित अधिनियम 2018
देश में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा (विशेष रूप से यौन उत्पीड़न) को रोकने के लिए भारतीय दण्ड संहिता संशोधित अधिनियम 2018 लागू किया गया, जिसमें बलात्कार की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।
बलात्कार पीड़िता की मौत हो जाने या उसके स्थायी रूप से मृतप्राय हो जाने की स्थिति में अपराधी के लिए इस कानून में मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
सामूहिक बलात्कार की स्थिति में दोषियों के लिए धारा 376 क के तहत न्यूनतम 20 वर्ष की सजा का प्रावधान रखा गया है जो आजीवन कारावास तक हो सकती है।
इस कानून में सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 वर्ष तय की गई है।
महिलाओं का पीछा करने, तांक-झांक करने के अपराध को पहली बार में जमानती व दूसरी बार समान अपराध करने पर गैर जमानती बनाया गया है।
तेजाब से हमला करने वालों के लिए 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। सभी अस्पतालों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वें तेजाब हमले से पीड़ित व बलात्कार पीड़ि़त को तुरन्त प्राथमिक सहायता व निःशुल्क उपचार उपलब्ध करायेंगे। ऐसा करने में विफल रहने पर सजा का प्रावधान किया गया है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में भी संशोधन किया गया है तथा यह प्रावधान किया गया है कि यदि बलात्कार पीड़ित महिला अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक दृष्टि से अक्षम हो गई है तो वह दुभाषियेया विशेष एजुकेटर की मदद से न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने बयान दर्ज करवा सकती है।
अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
यह अधिनियम वैश्यावृत्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले महिलाओं के व्यापार की रोकथाम एवं इससे सुरक्षा प्रदान करता है।
दहेज निषेध अधिनियम-1961
अधिनियम की धारा-2 के अनुसार दहेज लेना व देना या लेने या देने में सहयोग करना अपराध है। इस अपराध के लिए 5 साल की कैद और 15000 रुपये जुमाने का प्रावधान है। भारतीय संहिता की धारा 498 A निर्ममता तथा दहेज के लिए उत्पीड़न, धारा 304 B दहेज से होने वाली मृत्यु व धारा 306 में उत्पीड़न से तंग आकर महिलाओं द्वारा आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाली घटनाओं से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान है।
यदि किसी महिला की सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हों जाती है और साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था तो भारतीय संहिता की धारा 304 के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
स्त्रीधनः- शादी से पहले जो उपहार लड़की को दिए जाते है वे स्त्रीधन कहलाते है। लड़का लड़की के काॅमन उपयोग का सामान भी स्त्रीधन कहलाते है।
स्त्री अशिष्ट रूप प्रतिषेध अधिनियम (1986)
विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन, चित्रों या आंकडों में किसी भी रूप में महिलाओं को अशलील चित्रण नही दिखाया जा सकता।
इस कानून के तहत 2 साल की सजा व 2 हजार रू. जुर्माने का प्रावधान भी हैै। अपराध की पुनरावृत्ति करने पर न्यूनतम 6 माह से 5 साल की सजा व 10000 से 1 लाख रूपये तक जुर्माने तक का प्रावधान है।
इसके लिए शिकायत पुलिस स्टेशन के अलावा जिला न्यायालय, उपनिदेशक महिला एवं बाल विकास तथा तहसील, जिला व राज्य विधेयक प्राधिकरण पर शिकायत की जा सकती है एवं निशुल्क सहायता भी प्राप्त की जा सकती है।
सती रोकथाम अधिनियम 1987
सती प्रथा को रोकने के लिए एवं स्त्रीयों की सुरक्षा के लिए 1987 में यह कानून लागू किया गया था। सती के महिमामंडन पर इस कानून के तहत रोक लगायी गई है। सती को पहली बार भारत में 1829 में बंगाल में प्रतिबंधित किया गया था।
PCNDT Act 1994-गर्भाधान पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम 1994
लिंगानुपात की विषमता का एक बड़ा कारण भ्रूण के लिंग का परीक्षण है। अतः भ्रूण के लिंग परीक्षण पर नियंत्रण व रोक के लिए 1996 में कानून बनाया गया है, जिसके तहत लिंग परीक्षण दण्डात्मक अपराध है।
1.1.1996 को कानून लागू किया गया जिसके तहत प्रसव से पूर्व की निदान जांचों को कानूनी अपराध बनाया गया। प्रसव पूर्व लिंग जांच पर पाबंदी है तथा अल्ट्रासाउण्ड या सोनोग्राफी कराने वाले जोडे़ या करने वाले डाॅक्टर या लैबकर्मी को 5 साल की सजा और 10 से 50 हजार रू. तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005
यह अधिनियम 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुआ था किसी भी महिला के साथ किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक व लैंगिक दुव्र्यवहार या किसी भी प्रकार का शोषण, जिससे महिला की गरिमा को हानि पहुॅचे, अपमान या तिरस्कार हो या ऐसे वित्तिय साधनों से वंचित करना जिसकी वो हकदार हो घरेलू हिंसा की श्रेणी में आते है। घरेलू संबंधी या रिश्तेदार द्वारा शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुॅचाना घरेलू हिंसा की में आता है।
इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू रिश्तों मे हिंसा की शिकार महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करना है। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत यह जरूरी नही है कि पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत दर्ज कराए, कोई भी व्यक्ति चाहे वो पीड़ित हो या नही, घेरलू हिंसा की जानकारी अधिनियम के तहत नियुक्त सम्बद्ध अधिकारी को दे सकता है। घटना की आशंका में भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। लिव-इन मे रहने वाली महिलाएं भी शिकायत दर्ज करा सकती हैं।
पीड़ित महिला को धारा 18 के अधीन न्यायाधीश सुरक्षा आदेश जारी कर सकते हैं। धारा 17 के अधीन पीड़िता को आवास उपलब्ध कराने, धारा 20 और 22 के अधीन क्षतिपूर्ति व भरण पोषण का खर्च तथा धारा 21 अधीन पीड़ित के बच्चों या पीड़िता की ओर शिकायत करने वाले व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दे सकता है।
इस कानून के तहत दिए गए संरक्षण आदेशों का उल्लंघन करने पर 1 साल की जेल या 20,000 रूपए का जुर्माना या दोनों हो सकते है।
महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण प्रतिषेध एवं परितोष अधिनियम 2013)
1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल और शैक्षणिक संस्थाओं में महिलाओं के साथ होने वाले यौन दुव्र्यवहार को रोकने के लिए दिशानिर्देश (विशाखा गाइडलाइन) जारी किए थे।
यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन को अवैध घोषित करता है। कानून के तहत किसी भी महिला के साथ, किसी भी कार्य स्थल पर (चाहे वह वहां काम करती हो या नहीं) किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न हुआ हो तो इस उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं को शिकायत दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है।
किसी भी ऐसी संस्था जिसमें 10 या 10 से अधिक लोग काम करते है, वहाॅ महिला उत्पीड़न की सुनवाई के लिए आन्तरिक परिवाद समिति का गठन किया जाना आवश्यक है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी विशाखा दिशा-निर्देशों की पालना इस अधिनियम में की गई है।
नियोक्ता यदि इस अधिनियम की पालना नहीं करे तो 50,000 रू. तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
काम के नोट्स:
बच्चों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कानून एवं अधिकार भाग-1
बच्चों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कानून एवं अधिकार भाग-2
बच्चों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कानून एवं अधिकार भाग-1
बच्चों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कानून एवं अधिकार भाग-2