Women related laws and Crime in india | rasnotes.com

Women related laws and Crime in india

महिलाओं से जुड़े अपराध व सम्बन्धित कानून

बाल अधिकारों और कानूनों पर दो पोस्ट डाली जा चुकी है। यह पोस्ट महिलाओं से सम्बन्धित अपराध एवं उसको रोकने के ​लिये बनाये गये कानूनों पर केन्द्रित है। यह टॉपिक हमेशा से परीक्षार्थियों के लिये मुश्किल रहा है क्योंकि सारे तथ्य एक ही स्थान पर नहीं मिलते हैं. हम यहां सभी तथ्यों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं. यहाँ महिला अधिकार एवं कानूनों को संक्षिप्त और सरल भाषा में आपको उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा. इसके बाद आने वाली दूसरी पोस्ट में भी महिला अधिकार एवं संबंधित कानूनी प्रावधान/नियमों की जानकारी दी जायेगी. हाल में होने वाले कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में यह तो एक ​टॉपिक के तौर पर ​सिलेबस का हिस्सा है. उम्मीद है आपको इससे तैयारी करने में सहायता मिलेगी.

-कुलदीप सिंह चौहान
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महिला सशक्तीकरण के ऐतिहासिक प्रयास

1. 19वीं सदी में 1829 में राजा राममोहन के प्रयासों से गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक द्वारा सती प्रथ पर प्रतिबंध लगाया गया। 

2. ईश्वरचंद्र ने विधवा विवाह के समर्थनर में जन जागृति पैदा की, 1856 में पहली बार लार्ड केनिंग द्वारा हिंदु विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लागू किया गया। 

3. ज्योतिबा फूले और सावित्री फूले ने महिला शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। सावित्री फूले को भारत की प्रथम महिला अध्यापक कहा जाता है। भारत में पहला कन्या विद्यालय सावित्री फूले द्वारा खोला गया था। भारत में महिला अधिकारिता आंदोलन की जनक भी इनको कहा जाता है। 

4. महात्मा ज्योतिराव द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई। 

भारत के संविधान में महिलाओं को सशक्त बनाने वाले अनुच्छेद

भारत के संविधान में समानता को मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया है.

संविधान के भाग-3 मौलिक अधिकार और भाग-4 (राज्य के नीति निर्देशक तत्वों) में सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए उपायों का वर्णन किया गया है। 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में भारत के सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता और समान संरक्षण प्रदान किया गया है। 

अनुच्छेद 15 में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध किया गया है।

अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत लोकनियोजन में अवसर की समानता का अधिकार दिया गया है. इसी अनुच्छेद के तहत महिलाओं के लिये राजकीय सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता का कानूनी तौर पर निषेध किया गया है। 

अनुच्छेद 23(1) के अन्तर्गत मानव व्यापार और बेगार प्रथा पर रोक लगायी गई है। 

अनुच्छेद 42 के तहत काम के लिये राज्य द्वारा न्यायपूर्ण एवं मानवीय स्थितियों का प्रबंध तथा प्रसूति में राहत सुनिश्चित करने के प्रावधानों का वर्णन किया गया है.

अनुच्छेद 51(अ)(ई) के तहत महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग किया गया है. 

संविधान के अनुच्छेद 39 के अन्तर्गत आर्थिक न्याय के लिए प्रावधानों का वर्णन किया गया है, जिसके तहत –

(1) महिला व पुरूष को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने के अधिकार हैं। 

(2) पुरूष और महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाना चाहिए। 

(3) श्रमिक पुरूष तथा महिलाओं के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग नहीं किया जाना चाहिए। 



(4) इसी अनु. में समान व निःशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान किया गया है। 



महिला एवं पुरूष की समानता के लिये निम्न संकल्पनाओं एवं विचारों को समझना जरूरी है:

लिंग भेद 

स्त्री और पुरूष के बीच शारीरिक बनावट के अन्तर को लिंग भेद कहा जाता है जो प्राकृतिक एवं जैविक है। यह स्त्रीत्व एवं पुरूषत्व का आधार है। 

लैंगिक भेद (Gender Discrimination) 

यह कृत्रिम है, समाज द्वारा निर्मित है। स्त्री व पुरूष के बीच अधिकारों, अवसरों, कर्तव्यों व सुविधाओं के बीच असमानता पर आधारित बंटवारा लैंगिक भेद है। 

भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 60% भाग कार्यशील जनसंख्या (15 से 59 वर्ष है) लेकिन भारत में लिंगानुपात में भारी विषमता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति एक हजार पुरूषों की आबादी पर 943 महिलाएं हैं। 

राजस्थान की जनगणना 2011 के अनुसार राज्य में लिंगानुपात 928 प्रति हजार है। कुल साक्षरता 66.17 प्रतिशत, पुरूष साक्षरता 79.20 प्रतिशत तथा महिला साक्षरता 52.10 प्रतिशत है। 

लैंगिक संवदेनशीलता (समानता) 

स्त्री व पुरूष के प्रति समान भाव रखना लैंगिक समानता है। दोनों को विकास के समय अवसर और अधिकार उपलब्ध करवाना। 

महिला सशक्तीकरण के विशेष प्रयास

भारत में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, भ्रूण हत्या और लिंग चयनात्मक गर्भपात, घरेलू हिंसा, अनैतिक व्यापार, असमान अवसर एवं वेतन की असमानता, बाल विवाह और अशिक्षा जैसी समस्याओं को दूर करने के लिये भारत में कई कानूनों का प्रावधान किया गया एवं योजनाओं का निर्माण किया गया. जो निम्नानुसार है:

(1) दहेज प्रथा निषेध कानून, बाल विवाह निषेध कानून, सती प्रथा निषेध कानून। 

(2) महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए दंडात्मक कानून बनाया गया है। 

(3) पंचायती राज व नगरीय निकायों के चुनाव में महिलाओं के लिए राजस्थान में 50 प्रतिशत स्थान आरक्षित किए गए हैं। 

(4) महिला समस्याओं के हल में मदद के लिए राष्ट्रीय व राज्य महिला आयोग बनाए गए हैं। 

(5) सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए राजस्थान में 30 प्रतिशत पद आरक्षित किए गए हैं। 

(6) समान कार्य के लिए समान मजदूरी का कानून बनाया गया है। 

(7) महिला आयोग में महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन/हनन के मामलों, घरेलू हिंसा, दहेज, यौन अपराध, पुलिस द्वारा असहयोग, लैंगिक भेदभाव साइबर अपराध की शिकायत की जा सकती है। 

(8) भारत सरकार ने 2001 को महिला सशक्तीकरण वर्ष (स्वशक्ति) घोषित किया। सन् 2001 में महिलाओं के सशक्तीकरण की नीति पारित की गई।

(9) लिंगानुपात की विषमता का एक बड़ा कारण भ्रूण के लिंग का परीक्षण है। अतः भ्रूण के लिंग परीक्षण पर नियंत्रण व रोक के लिए कानून बनाया गया है, जिसके तहत लिंग परीक्षण दण्डात्मक अपराध है। 

महिला हेल्पलाइन – 1090/1095/112

महिला उत्थान की योजनाएं  

(अ) प्रत्येक जिले में महिला थाना और महिला सलाह एवं सुरक्षा केंद्रों का गठन किया गया है। 

(इ) महिला के नाम सम्पत्ति की रजिस्ट्री करवाने पर स्टाम्प शुल्क में छूट दी जाती है। 

(ब) बालिकाओं की उच्च शिक्षा के लिए बचत द्वारा धन जुटाने के लिए सुकन्या समृद्धि योजना आरंभ की गई है। 

(द) भामाशाह योजना में परिवार का मुखिया महिला को बनाया गया है। 

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ – 

(1) अभियान 22 जनवरी, 2015 को सोनीपत हरियाणा से शुरू हुआ तथा  8 मार्च, 2018 को झुंझुनूं में प्रधानमंत्री द्वारा पूरे भारत में लागू की गई। 

(2) इसक उद्देश्य लिंग जांच को रोकना, बालिकाओं की सुरक्षा व शिक्षा को बढ़ावा देना है। 

(3) महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, स्वास्थ्य विभाग, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के समन्वित प्रयास से चल रही है। 

महिला सशक्तीकरण हेतु सात सूत्रीय कार्यक्रम

राज्य में महिलाओं के सम्पूर्ण विकास को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2009-10 की बजट घोषणा के द्वारा महिला सशक्तीकरण हेतु सात सूत्रीय कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी। 

यह कार्यक्रम महिलाओं के जीवन के विभिन्न चरणों की आवश्यकता के आधार पर बनाया गया है, ताकि महिलाएं एक गरिमापूर्ण तथा स्वतंत्र जीवन जी सके तथा उनको प्राप्त अधिकारों एवं सेवाओं का अधिकतम लाभ उठा सके। 

सात सूत्र निम्नलिखित है – 
1.सुरक्षित मातृत्व
2.शिशु मृत्यु दर में कमी 
3.जनसंख्या स्थिरीकरण 
4.बाल विवाह रोकथाम 
5.बालिकाओं का स्कूल में कम से कम कक्षा 10 तक ठहराव 
6.महिलाओं को सुरक्षा एवं सुरक्षित वातावरण प्रदान करना 
7.महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करते हुए स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण। 

महिलाओं को उत्पीड़न एवं शोषण से राहत दिलाने के लिए प्रत्येक जिले में जिला प्रमुख की अध्यक्षता में जिला स्तरीय महिला सहायता समिति का गठन किया गया है। महिला एवं बालिका हिंसा को रोकने तथा लैंगिक भेदभाव रोकने के लिए एक अभिनव पहल के रूप में ’चिराली’ समुदाय का गठन किया जा रहा है। यह एक ऐसा समुदाय आधारित अनौपचारिक समूह है जो महिलाओं एवं बालिकाओं के प्रति हिंसा की रोकथाम हेतु प्रतिबद्ध रहेगा। 

योजना के क्रियान्वयन में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष सहायता प्रदान करेगा। 

ग्राम पंचायत स्तर पर साथिन इस समूह की समन्वयक होती है। 

महिला एवं सुरक्षा एवं सलाह केंद्र –

1. महिलाओं को सुलभ न्याय दिलाए जाने के उद्देश्य से पारीवारिक न्यायलय की स्थापना की गई। 

2. वर्ष 2010-11 में गैर शासकीय संस्थाओं के माध्यम से राज्य के सभी पुलिस जिलों में महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र स्थापित करने के लिए महिला सुरक्षा एवं सलाह केंद्र नियमन एवं अनुदान योजना 2010 लागू की गई थी। 

3. इस योजना में 2017 संशोधन किए गए हैं। योजना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक एवं पारिवारिक स्तर पर किसी भी रूप में हिंसा से व्यथित/उत्पीड़ित महिला को तुरंत सहायता मार्गदर्शन उपलब्ध करवाकर उसके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। 
4. ये केंद्र जिला मुख्यालय पर चयनित थानों में संचालित होते हैं।
काम के नोट्स:


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