बाल अधिकारों और कानून पर सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में सवाल पूछे जाते रहे हैं. यह टॉपिक हमेशा से परीक्षार्थियों के लिये मुश्किल रहा है क्योंकि सारे तथ्य एक ही स्थान पर नहीं मिलते हैं. हम यहां सभी तथ्यों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं. यहाँ महिला अधिकार एवं कानूनों के साथ ही बच्चों से सम्बन्धित कानून भी संक्षिप्त और सरल भाषा में आपको उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा. इसकी पहली पोस्ट के बाद इस दूसरी पोस्ट में भी बच्चों के प्रति अपराध एवं उनसे संबंधित कानूनी प्रावधान/नियमों की जानकारी दी जा रही है. हाल में होने वाले कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में यह तो एक टॉपिक के तौर पर सिलेबस का हिस्सा है. उम्मीद है आपको इससे तैयारी करने में सहायता मिलेगी.
कुलदीप सिंह चौहान
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बच्चों के प्रति अपराध एवं उनसे संबंधित कानूनी प्रावधान/नियमों की जानकारी भाग-2
Immoral trafficking prevention (Regulation Act 1956)
Immoral trafficking को रोकने के लिए न्यूयार्क कन्वेंशन 1950 की पालना में यह कानून बनाया गया।
बालको एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 व संशोधित अधिनियम 2016
अ. इस अधिनियम की धारा 3 तहत 14 साल तक की आयु के बालक से किसी भी प्रकार के बराबर खतरनाक एवं गैर खतरनाक कार्य कराना संज्ञेय अपराध है।
ब. बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन अधिनियम 2016 के अनुसार बच्चों को दो श्रेणीयों मे बांटा गया है।
(1) 14 वर्ष तक के बच्चों को कहीं भी रोजगार मे नहीें लगाया जा सकता।
(2) 14 से 18 साल तक के बच्चों को जोखिम वाले कार्यों में नहीं लगाया जा सकता।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
- इस अधिनियम के तहत विवाहित जोडे में से कोई भी नाबालिग है तो इसे बाल विवाह माना जाएगा।
- 18 वर्ष से कम उम्र लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के को इस अधिनियम के तहत नाबालिग माना गया है।
- अतः विवाह की न्यूनतम आयु लड़के के लिए 21 व लड़की के लिए 18 वर्ष है।
- उपखण्ड़ अधिकारी एवं तहसीलदार को उनके अधिकार क्षेत्र में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है।
- 1929 में भारत में पहली बार बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू किया गया था।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत 2 साल की सजा 1 लाख जुर्माना की सजा दी जा सकती है परन्तु कोई स्त्री कारावास की सजा से दण्डनीय नही होगी।
- अधिनियम की धारा 10 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बाल विवाह का आयोजन करता, या करवाता या दुष्प्रेरित करता है तो वह 2 साल की सजा या 1 लाख जुर्माना या दोनों की सजा पा सकता है मात-पिता या जो कोई भी विवाह मे शामिल होता वह सजा का भागीदार होता।
यौन शोषण से बच्चों की सुरक्षा का अधिनियम (2012 पाॅक्सो एक्ट)
- बालको के प्रति बढते यौन अपराध पर नियंत्रण के लिए 14 नवम्बर 2012 को यह अधिनियम लागू किया गया।
- इसमें प्रमुख रूप से बच्चों के प्रति होने वाले यौन/लैगिंक उप्पीड़न, अश्लीलता आदि को सम्मिलित किया गया है। इस कानून के तहत आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
- इस कानून के तहत 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति नाबालिग होता है।
- इस कानून में बदलाव किया गया है तथा यह प्रावधान किया गया है कि 12 साल तक की बच्ची से रेप दोषियों को मौत की सजा दी जाएगी।
- बच्चों को यौन शोषण व यौन हिंसा, पोर्नोग्राफी से बचाने के लिए लाया गया। इसके लिए विशेष कोर्ट की स्थापना का भी प्रावधान।
किशोर न्याय (बालको की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम 2000
- भारत की जनसंख्या का लगभग 39 प्रतिषत 0-18 वर्ष के बच्चे हैं।
- बच्चों की देख रेख और संरक्षण के लिये भारत सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम देश में 2000 में लागू किया गया था जिसमें 2015 मे व्यापक परिवर्तन किए गए थे। इस कानून में 10 अध्याय व 112 धाराएं है।
- भारत में किशोर न्याय व्यवस्था बच्चों के अधिकारों के Promoting, Protecting and Safeguard के सिद्धान्त पर आधारित है।
- 2015 में संसद ने नया अधिनियम पारित कर 2000 के अधिनियम को बदल दिया। यह अधिनियम 15 जनवरी, 2016 को लागू हुआ तथा इसमें गंभीर अपराधों जिसमें 7 साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान हो में लिप्त 16-18 वर्ष के बच्चों को व्यस्क की भांति ट्रायल किए जाने के प्रावधान किए गए।
- इसके तहत प्रत्येक जिले में एक किशोर न्याय बोर्ड की स्थापना की गई है, जिसमें प्रमुख न्यायाधीश व 2 सदस्य होते हैं।
- नये अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि किशोर न्याय बोर्ड का प्रमुख न्यायाधीश तीन वर्ष के अनुभव वाले न्यायाधीश को नियुक्त किया जाएगा।
- इससे पहले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को नियुक्त किया जाता था।
- किशोर न्याय अधिनियम के लिए नियमावली वर्ष 2016 में लागू की गयी थी। यह कानून दो तरह की स्थिति में बच्चों के लिए काम करता है।
(1) ऐसे बच्चे जिनके पास रहने के लिए कोई घर स्थान नहीं है, माता-पिता या संरक्षक नहीं है या जिनके माता-पिता संरक्षक के द्वारा बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट, शोषण या किसी भी तरह की हिंसा की जाती है।
(2) दूसरी श्रेणी में वे बच्चे आते है जिनके द्वारा कोई ऐसा काम किया गया है जो कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है।
इस कानून के अन्तर्गत हर जिले में विशेष किशोर पुलिस इकाई (स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट) का गठन किया गया है। प्रत्येक थाने में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी का भी गठन किया गया है।
तथ्य विशेष
- राजस्थान राज्य न्यायिक अकादमी जोधपुर में स्थित है।
- यूनियन आफ इण्डिया बनाम इंडिपेन्डेन्ट थाॅट (2017) में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि किसी भी व्यक्ति द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के साथ चाहें उसकी मर्जी हो या ना हो शारीरिक संबंध स्थापित किया जाता है (चाहे व उसकी पत्नी ही क्यो ना हो) तो उसे बलात्कार माना जाएगा।
- बचपन बचाओ आंदोलन की अपील पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय दिया गया कि बच्चों की गुमशुदगी के मामलों को संभावित अपराध मानते हुए प्राथमिकी दर्ज की जाए। अभी तक इस संबंध मे कोई कानून नहीं था। आपराधिक कानून मे संशोधन कर बाल तस्करी को अपराध बनाया गया।
- बचपन बचाओं आंदोलन को कैलाश सत्यार्थी ने शुरू किया था। उन्हें देश में बच्चों के हित में काम करने की वजह से नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मिड-डे-मील
मध्याह्न भोजन की व्यवस्था के अन्र्तगत सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चो को दोपहर का भोजन स्कूल द्वारा दिया जाता है। यह योजना सर्वप्रथम तमिलनाडू मे प्रारम्भ की गई। 2001 में सर्वोच्य न्यायालय के आदेश पर इसे देश के सभी राज्यों मे शुरू किया गया। इसमें बच्चों के पोषण में सुधार आया तथा स्कूलो मे नामांकन बढ़ा तथा की उपस्थिति मे सुधार आया।
काम के नोट्स: