बाल अधिकारों और कानून पर सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में सवाल पूछे जाते रहे हैं. यह टॉपिक हमेशा से परीक्षार्थियों के लिये मुश्किल रहा है क्योंकि सारे तथ्य एक ही स्थान पर नहीं मिलते हैं. हम यहां सभी तथ्यों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं. यह इस श्रृंखला की पहली पोस्ट है, आने वाले पोस्ट में महिला अधिकार एवं कानूनों के साथ ही बच्चों से सम्बन्धित कानून भी संक्षिप्त और सरल भाषा में आपको उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जायेगा. हाल में होने वाले कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में यह तो एक टॉपिक के तौर पर सिलेबस का हिस्सा है. उम्मीद है आपको इससे तैयारी करने में सहायता मिलेगी.
कुलदीप सिंह चौहान
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बच्चों के प्रति अपराध एवं उनसे संबंधित कानूनी प्रावधान/नियमों की जानकारी
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 नवम्बर, 1989 को बाल अधिकार अधिवेशन में बच्चों के लिए कुछ अधिकारों की घोषणा की थी जिनको भारत सरकार द्वारा 11 दिसम्बर, 1992 में स्वीकार किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते के तहत बच्चों को दिए गए अधिकारों को 4 भागों में बांटा जा सकता है।
(अ) जीने का अधिकार – यह अधिकार बच्चों के जन्म लेने से पहले से ही शुरू हो जाता है। इसमें न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं, भोजन, आवास, वस्त्र और सम्मान से जीने का अधिकार शामिल है।
(ब) विकास अधिकार – बच्चों को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास का अधिकार प्राप्त है।
भावनात्मक विकास – बच्चों की उचित देखभाल और प्यार दिया जाए।
मानसिक विकास – उचित शिक्षा दी जाए।
शारीरिक विकास – मनोरंजन, खेल-कूद तथा पेाषण की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
(स) संरक्षण का अधिकार – बच्चों को उपेक्षा हिंसा व शोषण के विरूद्ध अधिकार प्राप्त है। दिव्यांग बच्चों को विशेष संरक्षण दिया जाना चाहिए।
(द) भागीदारी का अधिकार – बच्चों से जुडे़ मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी प्राप्त हो।
बाल अधिकार हनन के विभिन्न रूप –
1. कन्या भ्रूण हत्या – समाज में व्याप्त रूढिवादिता एवं पुत्र मोह के कारण बालिकाओं को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है इसकी रोकथाम के लिए PCPNDT कानून 1994 लागू किया गया है।
भारत सरकार ने बालिका संरक्षण हेतु बेटी बचाओ अभियान शुरू किया है।
2. बाल विवाह – शिक्षा एवं जनचेतना की कमी के कारण बाल विवाह हेाते हैं। इससे स्वास्थ्य, पोषण व शिक्षा के अधिकार का हनन होता है। बाल विवाह की रोकथाम हेतु बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 लागू किया गया है।
3. बाल श्रम – 18 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराने पर बाल श्रम (निरोध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 तथा फैक्ट्री एक्ट 1948 के तहत कार्रवाई की जाती है। बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिये बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति 1987 में लागू की गई थी।
4. बाल यौन हिंसा – 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा की रोकथाम के लिए लैंगिक अधिकारों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 लागू किया गया है।
5. बाल तस्करी – बाल श्रम, यौन हिंसा व दूसरे कार्यों के लिए बालकों की तस्करी के रोकने के लिए दण्डात्मक कानून बनाए गए हैं।
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग –
यह आयोग बालक/बालिकाओं के अधिकारों के हनन के मामलों की जांच और सुनवाई के साथ-साथ बच्चों से जुडे़ कानूनों/योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी/समीक्षा का कार्य करता है।
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल हैं और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो है.
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल हैं और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो है.
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 संसद द्वारा 1 अप्रेल, 2010 को लागू किया गया था. राजस्थान में इस अधिनियम को दिनांक 1 अप्रेल, 2011 से लागू किया गया है, जिसमें 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बालक-बालिका के लिए प्रारंभिक शिक्षा को निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।
बाल संरक्षण हेतु राज्य में कार्यरत संस्थायें
राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग –
(1) राज्य में बाल अधिकारों के संरक्षण एवं पुनर्वास के लिए बाल अधिकारिता विभाग कार्यरत है। यह विभाग बाल अधिकारों व बच्चों के संरक्षण से संबंधितयोजनाओं/कार्यक्रमों/नीतियों/अधिनियमों को क्रियान्वयन करता है।
(2) राज्य बाल अधिकार संरक्षण समिति
यह समिति राज्य में विभिन्न बाल संरक्षण कार्यक्रमों/कानूनों व नीतियों के क्रियान्वयन का कार्य करती हैं जिला, ब्लाक व ग्राम पंचायत स्तर तक इसकी समितियां कार्य करती है।
(3) चाइल्ड हेल्प लाइन – 1098 कठिनाइयों में घिरे पीड़ि़त/उपेक्षित/लावारिस बच्चों की देखरेख और संरक्षण के लिए 24 घण्टे कार्यरत आपातकालीन सेवा है।
टोल फ्री नम्बर 104 पर कोई भी नागरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या के समाधान हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श ले सकता है तथा जननी व शिशु के लिए निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा 104 के अलावा 108 न. टोल फ्री पर भी मिलती है।
टोल फ्री नम्बर 104 पर कोई भी नागरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या के समाधान हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श ले सकता है तथा जननी व शिशु के लिए निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा 104 के अलावा 108 न. टोल फ्री पर भी मिलती है।
भारतीय संविधान में बच्चों के अधिकार
अनुच्छेद – 21 ए : 6-14 वर्ष की आयु समूह वाले सभी बच्चों को अनिवार्य और ऩिःशुल्क शिक्षा का अधिकार
अनुच्छेद – 24 : 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चे को किसी भी जोखिम वाले कार्य से सुरक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 15: भेदभाव के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 21: व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून की सम्यक् प्रक्रिया का अधिकार
अनुच्छेद 23: बँधुआ मजदूरी के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार
संविधान में राज्य के लिये निम्न नीति निदेशक अनुच्छेदों के तहत यह व्यवस्था की गई है कि वह बच्चों के सुरक्षा के लिये काम करेगा-
अनुच्छेद – 39 ई : बाल श्रम से सुरक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 39 एफ: समान अवसर व सुविधा का अधिकार, शोषण से सुरक्षा का अधिकार
अनुच्छेद 46: सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से, समाज के कमजोर तबकों के सुरक्षा का अधिकार
बच्चों के लिए बने विशेष कानून
जन्म पूर्व जाँच तकनीक विनियमन एवं दुरुपयोग निरोध कानून, 1994
बाल विवाह निषेध कानून, 1929
बाल (बँधुआ मजदूरी) कानून 1933
बँधुआ मजदूरी व्यवस्था (समाप्ति) अधिनियम, 1976
बाल श्रम (निरोध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
बाल न्याय (बालकों की देखभाल व सुरक्षा) अधिनियम 2000
काम के नोट्स: