Geography of Rajasthan Notes on Rivers of Rajasthan-2

Geography of Rajasthan Notes on Rivers of Rajasthan-2

राजस्थान की नदियां – परीक्षा उपयोगी तथ्य

राजस्थान की नदियां नोट्स की इस श्रृंखला के दूसरे हिस्से में अरब सागर में गिरने वाली नदियों से जुड़े तथ्य दिये जा रहे हैं. इस श्रृंखला में राजस्थान की नदियों और सिंचाई परियोजनाओं को एक साथ लाने का प्रयास करेंगे.

अरब सागर में गिरने वाली नदियां – 

(1) लूणी नदी 

पश्चिमी राजस्थान की यह सबसे प्रमुख नदी है, क्योंकि यह शुष्क मरुस्थलीय क्षेत्र की प्यास बुझाती है। 
 
इसका उद्गम अजमेर के निकट नाग पहाड़ है जहां से यह जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालौर में लगभग 320 कि.मी. बहती हुई अन्त में कच्छ के रन में चली जाती है। 
 
यह केवल वर्षा ऋतु में प्रवाहित होती है। 
 
बालोतरा (बाड़मेर) तक इस नदी का पानी मीठा है जबकि इसके पश्चात् पानी खारा हो जाता है। 
 
लूणी की सहायक नदियां लीलड़ी, मीठड़ी, जवाई, सूखड़ी, बांडी, सागी आदि है। 

(2) लीलड़ी नदी 

अजमेर में जवाजा के निकट से निकलकर पाली में लूणी से मिलती है। 
 

(3) मीठड़ी नदी 

पाली में अरावली से निकलकर पंवाला गांव के पास लूणी में मिलती है। 
 
जवाई पाली के गोरिया गांव से निकलती है। 
 
जालौर के निकट सूकड़ी नदी व खारी नदी से मिलकर बाड़मेर में यह लूणी नदी से मिलती है। 

(4) सागी नदी 

सिरोही से निकलकर जालौर में बहती हुई लूणी में मिलती है। 
 
पश्चिमी बनास नदी अरावली के पश्चिमी ढालों से निकलकर सिरोही में बहती हुई कच्छ के रन में मिल जाती है। 

(5) माही नदी

यह मध्यप्रदेश में अमझोर के निकट महू की पहाड़ियों से निकलती है। 
 
राजस्थान में यह बांसवाड़ा के खाटू गांव के निकट प्रवेश करती है तथा डूंगरपुर, बांसवाड़ा की सीमा बनाते हुए कुल 576 कि.मी. का रास्ता तय करके खम्मात की खाड़ी में गिर जाती है। 
 
बांसवाड़ा के निकट इस नदी पर माही-बजाज सागर बांध बनाया गया है।
 
इसकी प्रमुख सहायक नदियां सोम, जाखम, अनास, चाप और मोरेन है। 
 
माही व उसकी सहायक सोम व जाखम नदी बेणेश्वर धाम में त्रिवेणी संगम बनाती है। यह धाम आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। 

(6) साबरमती नदी 

यह नदी उदयपुर के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर उदयपुर एवं सिरोही जिले में बहती हुई गुजरात में प्रवेश कर खम्मात की खाड़ी में गिर जाती है। 
 
इसे वाकल के नाम से भी जाना जाता है। 
 
हथमती, मेश्रवा और याजम इसकी सहायक नदियां है। 
 
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अन्तः स्थलीय प्रवाह बनाने वाली नदियां – 

राजस्थान में अनेक छोटी नदियां है जो कुछ दूर बहकर रेत अथवा भूमि में विली न हो जाती है या सूख जाती है। पश्चिमी राजस्थान जहां वर्षा तुलनात्मक रूप से कम होती है, वहां ऐसी नदियां प्रायः मिलती है। घग्घर, कान्तली, काकनी, साबी आदि ऐसी प्रमुख नदियां है। राज्य के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र में आन्तरिक प्रवाह वाली नदियां पाई जाती है। 

घग्घर – (हकरा)

प्राचीनकाल में इसे सरस्वती नदी भी कहा जाता था। 
 
हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों से निकलकर हरियाणा में बहती हुई हनुमानगढ़ जिले में टिब्बी में प्रवेश करती है। 
 
टिब्बी में प्रवेश के बाद इसका पानी हनुमानगढ़, सूरतगढ़, अनूपगढ़ होते हुए पाकिस्तान में फैल जाता है। जहां इसे हकरा कहा जाता है। 
 
इस नदी के तल को स्थानीय भाषा में नाली कहा जाता है। 
 
इस नदी को मृत नदी भी कहा जाता है। 
 
वर्षा ऋतु में नदी में अत्यधिक पानी आ जाने के कारण बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो जाता है। शेष मौसम में यह सूखी रहती है। 

काकली

काकली अथवा काकनेय जैसलमेर के कोटरी गांव से निकलने के बाद कुछ किलोमीटर बहकर यह लुप्त हो जाती है। इसे मसूरदी नदी भी कहते है। बुझ झील का निर्माण करती है। 
 
भारी वर्षा के वर्षाें में यह नदी अपने सामान्य पथ से हटकर निरंतर उत्तरी दिशा में लगभग 20 कि.मी. तक (मीठा खाड़ी में गिरने तक) बहती रहती है। इस प्रकार यह उत्तर, पश्चिम और पुनः उत्तर तीन दिशाओं में जल आपूर्ति के आधार पर बहती है। 

कांतली 

यह सीकर के खण्डेला की पहाड़ियों से निकलती है। झुंझुनूं होते हुए 100 कि.मी. बहने के बाद चूरू जिले में यह रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।

साबी नदी 

जयपुर की सेवर की पहाड़ियों से निकलकर बानसूर, बहरोड़ होती हुई हरियाणा में प्रवेश कर विलुप्त हो जाती है।

बाणगंगा 

यह नदी जयपुर जिले की बैराठ की पहाड़ियों से निकलकर आन्तरिक प्रवाह बनाती है क्योंकि इसका पानी यमुना में नहीं मिलकर भरतपुर के पास फैल जाता है।
सांभर लेक आन्तरिक प्रवाह बनाती है। इसमें चार नदियां आकर गिरती है। इसमें चार नदियां मेढा, रूपनगढ़, खारी, खण्डेला व तुरतमती मिलती है। 
 

राजस्थान की नदियों पर स्थित जल प्रपातों में तीन प्रमुख है – 

(1) चूलिया – चम्बल नदी, चित्तौड़गढ़
(2) भीमताल – मांगली नदी, बूंदी 
(3) मेनाल – मेनाल नदी, चित्तौड़गढ़
 
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