हमने कोरोनावायरस पर सामान्य ज्ञान की एक श्रृंखला शुरू की हैं, जिसकी पहली कड़ी में हमने कोराना वायरस की आधारभूत जानकारी साझा की थी। इस दूसरी कड़ी में कोरोना वायरस की जांच और इलाज के बारे में परीक्षा उपयोगी सामान्य अध्ययन आसान भाषा में उपलब्ध करवा रहे हैं, इस श्रृंखला की कड़ी में दूसरी पोस्ट:
– कुलदीप सिंह चौहान
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कोरोना वायरस-Covid-19 की जांच की तकनीके
एंटीबॉडी टेस्ट
इस टेस्ट में नाक और गले से स्वाब का सेम्पल लेने के बजाय रक्त का सैम्पल लिया जाता है. इस जांच में यह पता लगाया जाता है कि क्या रक्त में वायरस के विरूद्ध एंटीबॉडिज डवलप हुई है या नहीं? यदि एंटीबॉडिज रक्त में पाई जाती है यानी टेस्ट पॉजिटिव आता है तो उस स्थिति में मरीज का RTPCR Test किया जाता है।
इस टेस्ट को इसलिये किया जाता है क्योंकि RTPCR Test में टाइम और पैसा दोनों ही ज्यादा लगते हैं तथा बड़े पैमाने पर संक्रमण का पता लगाना हो तो इस टेस्ट को करना आसान होता है क्योंकि यह अपेक्षाकृत बहुत सस्ता है और इसका परिणाम भी जल्दी आता है।
भारत में इस टेस्ट के परिणाम में बहुत अधिक अनियमितता पाये जाने के कारण फिलहाल इसको रोक दिया गया है। एंटीबॉडी टेस्ट को सेरोलॉजिकल टेस्ट भी कहा जाता है। आम बोल चाल की भाषा में इन्हें रैपिड टेस्ट भी कहा जाता है।
पूल टेस्टिंग
किसी क्षेत्र विशेष या बड़े समूह में संक्रमण का पता लगाने के लिये एक साथ बहुत सारे लोगों में आमतौर पर 25 से 50 लोगों के गले और नाक से स्वाब लेकर उसका मिलाकर एक ही बार में RTPCR Test किया जाता है। यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो फिर सबका अलग—अलग टेस्ट किया जाता है और नेगेटिव आने पर एक बड़ा समूह की एक साथ संक्रमण रहित होने की पुष्टि हो जाती है।
कोरोना का इलाज – Covid 19 Treatment
कोरोना का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। इस वायरस से पैदा होने वाले लक्षणों और शारीरिक व्याधियों का इलाज किया जा रहा है। साथ ही ऐसी चिकित्सा विधियों का उपयोग किया जा रहा है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो रही है या फिर एंटीबॉडिज डवलप हो रही हैं। इनमें से प्रमुख तरीकों और दवाओं की जानकारी हम यहां उपलब्ध करवा रहे हैं:
ब्लड प्लाज्मा थैरेपी
इलाज करने के इस तरीके पर अभी शोध कार्य चल रहा है और इससे सम्बन्धित विश्वसनीय आंकड़ों की अभी कमी है। समय के साथ इसके और बेहतर तरीके विकसित किये जाने की संभावना है। इस तकनीक को समझने के लिये मानव रक्त के वर्गीकरण को समझना जरूरी है जो इस प्रकार है:
एन्टीजन
ये बाहरी रोगाणु अथवा पदार्थ है जो सामान्यत: प्रोटीन से बने होते हैं। शरीर में प्रवेश करने के बाद ये शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र को एन्टीबॉडी निर्मित करने के लिये उत्तेजित करते हैं।
एंटीबॉडी
एंटीबॉडी को इम्यूनोग्लोबीन भी कहते हैं। ये प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा निर्मित प्रोटीन है जो प्राणी के रक्त या अन्य तरल पदार्थ में पाये जाते हैं। एन्टीजन के शरीर में प्रवेश करने पर ये उसे पहचानकर निष्प्रभावी करने का कार्य करते हैं.
रक्त कणिकायें
रोगों से लड़ने का कार्य रक्त में मौजूद श्वेत रक्त कणिकायें करती है। रक्त का लगभग 40 प्रतिशत भाग रक्त कणिकाओं से बना होता है। ये रक्त कणिकायें तीन प्रकार की होती है:
1. लाल रक्त कणिकायें या इरिथ्रोसाइट्स या आरबीसी
2. श्वेत रक्त कणिकायें या ल्यूकोसाइट्स या डब्ल्यूबीसी
3. प्लेटलेट्स या थ्रोम्बोसाइट्स
रक्त में स्थित श्वेत रक्त कणिकायें प्रतिरक्षा का कार्य करती हैं. शरीर को संक्रमित करने वाले रोगाणु या परजीवी को नष्ट करके ये शरीर को स्वस्थ बनाये रखती है इसलिये इन कणिकाओं को सैनिक कणिकायें भी कहते हैं। ये शरीर में टूटी हुई व मृत कोशिकाओं का भक्षण करके रक्त को साफ रखती है। ये रंगहीन होती है तथा ये लाल रक्त कणिकाओं की तुलना में बड़ी और केन्द्रक युक्त होती है।
ब्लड प्लाज्मा
मानव रक्त के दो मुख्य भाग् होते हैं: 1. तरल प्लाज्मा 2. ठोस कणिकायें
प्लाज्मा हल्का पीला, साफ, चिपचिपा तथा पारदर्शी तरल पदार्थ होता है. रक्त में लगभग 50 से 60 प्रतिशत भाग प्लाज्मा होता है। प्लाज्मा में 90 प्रतिशत जल तथा 10 प्रतिशत कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। प्लाज्मा की प्रकृति क्षारिय होती है। प्लाज्मा रक्त को तरल रूप में बनाये रखने का कार्य करता है.
कोविड—19 के इलाज में ब्लड प्लाज्मा का उपयोग हो रहा है जिसे प्लाज्मा थैरेपी कहा जाता है। इस वजह से इसकी बहुत चर्चा हो रही है।
जब कोई व्यक्ति किसी वायरस या बैक्टिरिया की वजह से बीमार होता है तो शरीर उससे लड़ने के लिये एंटीबॉडिज का निर्माण करता है, जो रक्त का हिस्सा होता है। इस वजह से बीमार शरीर उस वायरस से लड़कर स्वस्थ हो जाता है.
ऐसे व्यक्ति जो कोविड—19 से संक्रमित होते हैं और इसके बाद स्वस्थ हो जाते हैं तो उनके शरीर में इस वायरस से लड़ने वाले एंटी बॉडिज विकसित हो जाते हैं जो ब्लड प्लाज्मा में स्टोर रहते हैं. ऐसे व्यक्ति का ब्लड प्लाज्मा ऐसे कोविड संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है जो इस वायरस की वजह से गंभीर बीमार हो गया है. इससे उस व्यक्ति के शरीर में बीमारी से लड़ने वाले एंटीबॉडिज पहुंच जाते हैं.
कोविड—19 के इलाज में प्रयोग में लाई जा रही दवायें
रेमडेसिवीर
रेमडेसिवीर एक प्रोड्रग है। प्रोड्रग वे दवाएँ होती हैं , जिन्हें पहले शरीर में जाकर अपने सक्रिय स्वरूप यानी ड्रग में बदलना होता है। इस दवा की निर्मात्री अमेरिकन कम्पनी जिलियेड है। इस दवा को हेपेटाइटिस-सी और रेस्पिरेटरी वायरस के लिए एक दशक पहले बनाया गया था।
हाइड्राक्सी क्लोराक्वीन
हाइड्राक्सी क्लोरोक्वीन को स्थानीय भाषा में कुनैन भी कहा जाता है। यह दक्षिण अमेरिकी पेड़ सिनकोना पौधै की छाल से प्राप्त होता है। इससे मलेरिया बुखार की दवा के निर्माण में किया जाता है। इसका रासायनिक सूत्र C20H24N2O2 है।
इसके अलावा फेवीपिराविर, रिटोनाविर, लॉपीनाविर और आयुष 64, अश्वगंधा, मुलैठी, गडूची, पीपली प्रयोग में लाई जा रही है।
(यह जानकारी सामान्य अध्ययन और परीक्षा में पूछे जाने वाले सवालों के उत्तर के लिये दी जा रही है न कि यह कोई चिकित्सकीय परामर्श है।)
इस श्रृंंखला की तीसरी कड़ी में हम कोविड से जुड़ी महत्वपूर्ण शब्दावलियां जैसे क्वारेन्टाइन, आइसोलेशन, इंफोडेमिक, एंडडैमिक, हर्ड इम्यूनिटी जैसी जानकारी साझा करेंगे।
काम के नोट्स:
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