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सवाईमाधोपुर: जिला परिक्रमा

सवाईमाधोपुर का संक्षिप्त इतिहास 

राजस्थान के पूर्व में स्थित सवाई माधोपुर जिला अपनी नैसर्गिक सुन्दरता से देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है. यहां स्थित रणथम्भौार अभयारण्य (बाघ परियोजना) का स्थान विश्व के पर्याटन मानचित्र पर है. जिले में ही देवताओं में प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का ऐतिहासिक त्रिनेत्र गणेश मन्दिर है. ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्त्व का प्रसिद्ध रणथम्भोर का अभेय दुर्ग है. सवाई माधेपुर में राम हम्मीर जैसे देशभक्त हुए हैं जिसने यहा की आन-बान एवं शान के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी. यह वही स्थान है जहां की रानियों की शान के साथ जौहर कर प्राण न्योछावर किये थे.

भौगोलिक स्थिति

अरावली पर्वतमालाओं से आच्छादित एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह जिला 25.45 से 26.41 तक 23.03 से 30.12 तक पूर्वी देशान्तर 75.59 से 77.0 तक 69.30 से 780.17 तक देशान्तर के मध्य स्थित है. जिले की समुद्र तल से ऊंचाई 400 मीटर से 600 मीअर के मध्य है. इसके पूर्व में करौली, मध्यप्रदेश तथा कोटा, उत्तर में भरतपुर और धौलपुर, दक्षिण में बून्दी व टोंक तथा पश्चिम में दौसा जिले की सीमायें लगी हैं. दिल्ली-मुम्बई रेलमार्ग तथा जयपुर-मुम्बई सड़क मार्ग से सीधा जुड़ा सवाईमाधोपुर राजस्थान की राजधानी जयपुर से मात्र 132 किलामीटर एव कोटा से 108 किलामीटर की दूरी पर स्थित है. इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 4.98 हजार वर्ग किलोमीटर है जो राज्य के क्षेत्रफल का  1.46 प्रतिशत है.

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

जिला सवाईमाधोपुर जो पुराने करौली तथा जयपुर राज्य की सवाईमाधोपुर, गंगापुर न हिण्डौन निजामतों में आता था, विभिन्न देशी रियासतों के सात चरणों में विलय के बाद राजस्थान बना. सन् 1948 से सर्वप्रथम अलवर, भरतपुर, करौली तथा धोलपुर राज्यों का मत्स्य संघ के नाम से एक संयुक्त प्रदेश बनां सभी भूतपूर्व करौली राज्य तथा जयपुर राज्य की सवाईमाधोपुर, गंगापुर तथा हिण्डौन निजामतों को मिलाकर जयपुर के पूर्व महाराजा स्वर्गीय माधोसिंह प्रथम ने नाम पर 15 मई, 1949 को सवाई माधोपुर अलग जिला बनाया गया. 

दर्शनीक स्थल

रणथम्भौर

सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय से 13 किलामीटर की दूरी पर ऊंची पहाड़ी पर राणथम्भोर दुर्ग में स्थिति त्रिनेत्र गणेशजी का बड़ा महत्त्व है. यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर शादी-विवाह, फसल की बुवाई एवं अन्य मांगलिक अवसरों पर गणेशजी को प्रथम आमंत्रण देते हैं.

अरावली की पर्वत श्रृखंलाओं के घुमावदार पहाड़ियों के मध्य स्थित रणथम्भोर किले में गणेशजी का का मन्दिर ऐसी अनुपम तीर्थ स्थली है जहां आसपास में अनेक मन्दिर तथा मुस्लिम और जैन संस्कृति के पवित्र स्मारक मौजूद हैं. इसी ऐतिहासिक दुर्ग में चौहान वंश की राजाओं ने स्वतंत्रता, आन-बान एवं शान तथा सम्मान की रक्षा के लिए खिलजी बादशाहों से लोहा लिया था तथा रानियों ने अपने आत्म सम्मान के लिए जौहर किये था. गणेशजी के इस पवित्र स्थान पर वर्ष भर यात्रियों का तांता लगा रहता है तथा प्रत्येक बुधवार को यहां आने वाले यात्रियों की भीड़ लघु मेले का रूप ले लेती है.


रणथम्भोर दुर्ग अपनी प्राकृतिक बनावट तथा सुरक्षात्मक दृष्टि से भी अद्धितीय स्थान रखता है. ऐसा सुरक्षित, अभेद्य दुर्ग विश्व में अनूठा है. ऊंची और ठोस दीवारों से घिरा हुआ किला बुर्जों और बुर्जिंयों से मजबूत बनाया गया हैं. किले की इमारतों में महलों के अवशेष, फौजी छावनी, अनेक हिन्दू और जैन मन्दिर तथा दरगाह व मस्जिद उल्लेखनीय है. दुर्ग क्षेत्र मु गुप्त गंगा, बाहरदरी महल, हम्मीर कचहरी, चैहानों के महल, बत्तीस खंभा की छतरी, देवालय एवं सरोवर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है. दुर्ग में सैकड़ों छतरियां, प्राचीरें, विशाल दरवाजें, मस्जिदें, शिलालेख, जलाशय, घाटियों का अनुपम सौन्दर्य यात्रियों एवं सैलानियों को बरबस ही आकर्षित करता है. दुर्ग में स्थिति हम्मीर महल में पुरातात्विक महत्त्व के हथियार, जिरह बक्ष्तर एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध है.

रणथम्भोर बाघ परियोजना

सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय के समीप स्थित रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान (बाघ अभयारण्य) लगभग 400 वर्ग किलोमीटर में फैला-पसरा है. करौली जिलें का केवलादेव अभयारण्य भी इसी अभयारण्य के समीप से सटा हुआ है. इस बाघ अभयारण्य में स्वच्छन्द विचरण करते वन्य जीव सैलानियों का मन मोह लेते हैं. 

प्रतिवर्ष भारी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी इस अभयारण्य का भ्रमण का आनन्द उठाते है. इस अभयारण्य में बाघ मुख्य आकर्षण हैं इसके अलावा बघेरा, भालू, जंगली सूअर, बिल्ली, गीदड़, लकड़बणा, बिज्जू, भेड़िया, खरगोश, लोमड़ी, नीलगाय, बारहसिंगा, चीतल, चिंकारा, हिरण भी यहां स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुए देखे जाते हैं. यहां के तालाबों में मगर बहुतायत में है. इस क्षेत्र में सर्दियों से सुदूर प्रदेशों से आने वाले कई प्रकार के पक्षी यहां देखे जा सकते है.

रणथम्भोर अभयारण्य क्षेत्र की भूगर्भीय रचना की अद्वितीय है. यहां दो अलग-अलग पर्वत श्रृंखलायें- विध्यांचल एवं अरावली मिलती हैं. वहीं चम्बल और बनास नदियां यहां की जैविक विविधता को चार चांद लगाती हैं. क्षेत्र के उष्ण कटिबंध शुष्क एवं मिश्रित पतझड़ वाले वृक्षों की प्रजातियां आच्छादित है. यहां के वनों में वन्य जीवों की बहुतायात एवं सघन वनस्पति बाघों को समुचित भोजन, पानी और शरणस्थल देने के लिए पर्याप्त हैं.

रामेश्वर घाट

जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर मध्यप्रदेश की सीमा पर चम्बल नदी पर स्थित रामेश्वर घाट धार्मिक दृष्टि से पवित्र स्थल के रूप में विख्यात है. यहा स्थान त्रिवेणी के रूप में भी जाना जाता है. जहां पर तीन प्रमुख नदियां चम्बल, बनास एवं सीप आकर मिलती हैं. 

जिले की खंडार पंचायत समिति के अनियाला ग्राम पंचायत के इस प्रमुख स्थल पर भगवान चतुर्भुजनाथ का मन्दिर मौजूद है जहां पर दूर-दराज से आने वाले भक्तगण त्रिवेणी में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं. इसी स्थान पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णमा पर विशाल मेला भरता है तथा अमावस्य के दिन त्रिवेणी में स्नान करने वाले लोगों की संख्या अधिक होती है.

चमत्कारजी जैन मन्दिर

सवाई माधोपुर स्टेशन से शहर के रास्ते पर आलनपुर में श्री चमत्मारजी जैन मन्दिर स्थित है. इस मन्दिर में स्फटिक पाषाण की बनी भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है. मन्दिर की व्यवस्था श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कमेटी चमत्कारजी द्वारा संचालित है. इस स्थान पर प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को मेला भरता है.

चौथ का बरवाड़ा

सवाईमाधोपुर-जयपुर रेल मार्ग पर चौथ का बरवाड़ा ग्राम में पहाड़ी पर स्थित चैथमाता का मन्दिर प्रसिद्धि लिये हुए है. इस स्थान पर वर्षभर श्रद्धालुओं का मेला लगा सा रहता है. चौथ माता महिलाओं में विशेष पूजनीय है. चौथ का बरवाड़ा में प्रतिवर्ष माघ कृष्ण तृतीया से माघ कृष्णा अष्टमी तक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है.

अमरेश्वर महादेव

जिला मुख्यालय से रणथम्भोर के रास्ते में समीप ही अमरेश्वर महादेव का मुख्य स्थल मौजूद है. यहां पर दो पहाड़ियों के बीच से हमेशा बहने वाले झरने से जलधारा निरन्तर प्रवाहित होती है. इस स्थान पर कुण्ड बना हुआ है जहां दर्शनार्थी स्नान करते हैं. मनोरम पहाड़ी में मध्य स्थित इस कुण्ड के पास महादेवजी एवं भगवान राम-जानकी का प्राचीन मन्दिर भी स्थित है.

काला-गौरा भैरव मन्दिर

सवाई मधोपुर शहर के प्रवेश द्वार पर स्थित यह प्राचीन मन्दिर ऐतिहासिक महत्त्व का प्रमुख दर्शनीक स्थल है. पहाड़ी पर स्थित नौ मंजिले इस आकर्षक मन्दिर का दृश्य देखते ही बनता है. कहा जाता है कि इस मन्दिर का उपयोग तंत्र विद्या के लिए किया जाता था. इस मन्दिर के प्राचीन महत्त्व को देखते हुए पर्यटन विभाग की ओर से इसकी मरम्मत एवं जीर्णोद्धार भी किया गया है.

घुश्मेश्वर महादेव 

जिले के उत्तरी-पश्चिमी छोर पर मनोरम विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के अंचल में अवस्थित ऐतिहासिक एवं पौराणिक अतीत के वैभव से परिपूर्ण घुश्मेश्वर महादेव का मन्दिर शिवाड़ में स्थित है. शिव पुराण शिवालय और मध्यकाल में शिवाल के रूप में उल्लेखित यह स्थान कालान्तर में शिवाड़ के रूप में विख्यात हो गया. ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण यह पावन स्थल भगवान श्री घुश्मेश्वर ज्योतिलिंग की लीला स्थली है. मन्दिर के समीप शिवाड़ का प्रसिद्ध किला भी स्थित है. इस पवित्र मन्दिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को विशाल मेला आयोजित किया जाता है इस मन्दिर में वर्ष भर श्रद्धालओं एवं पर्यटकों का तंता लगा रहता है.

प्रमुख मेले

सवाई माधोपुर जिले में रणथम्भोर दुर्ग में लगने वाले गणेश चतुर्थी का मेला, चैथमाता का मेला एवं रामेश्वर घाट के वार्षिक मेले के साथ ही गंगापुर मे कल्याण जी महाराज का मेला, गंगापुर से 4 किलोमीटर दूर धंूधेश्वर महादेव शिवरात्रि मेला शिवाड़, पशु मेला खण्डार एवं सवाई मधोपुर  में पशु मेलों का प्रतिवर्ष आयोजन किया जता है जिले की बौंली तहसील में एदलकी का हनुमानजी का मेला तथा कुछ स्थानों पर तेजाजी एवं हीरामनजी के मेलों का आयोजन भी होता है.

हस्तकला

जिले में बनास नदी के टीलों पर उपलब्ध खस का उपयोग इत्र निकालने के काम में लिया जाता है. इसके साथ ही समीपवर्ती श्यामोता गांव में कुम्हारों द्वारा तेयार किये जाने वाले मिट्टी के खिलौने एवं बरतन अन्य प्रदेशों में भी विक्रय के लिए भिजवाए जाते है.

चौथ का बरवाड़ा, बहतेड, गंगापुर आदि स्थानों पर चमडेद्य से बने जूते वं जूतियां कारीगरों द्वारा  बड़ी मेहनत से तैयार की जाती हैं. सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय सहित जिले के कई स्थानों पर  हथकर्घा से बनी रेजी, रजाई के खोल भी भारी मात्रा में बिकते हैं. सवाई माधोापुर शहर एवं अन्य स्थानों पर रंगाई-छपाई का कार्य भी खूबसूरती से किया जाता है. यहां के पोमचे जनजाति महिलाओं में विशेष लोकप्रिय हैं.

सवाई मधोपुर जिले में बांस व चबेनी की लकड़ी से बनी टोकरी तथा चटाइयां बनाने का काम भी भारी तादाद में होता है. मूंज की रस्सी, मूंज और सरकी से बनाए जाने वाले मुड्डे और मकानों पर छत के रूप में बिछाए जाने वाले सरकोडे़ भी यहां तैयार किए जाते है. इसके साथ ही हस्तकला के कारीगरों द्वारा कशीदाकारी का श्रेष्ठ काम भी किया जाता है.


लुहारों द्वारा बनाए जाने वाले चिमटे, चलनी, कढ़ाही आदि ग्रामीण अंचलों में लोकप्रिय हैं. कई कस्बों और गांवों में कृषि औजार, दरवाजे, जालियां, खिड़कियां, बाॅक्स, अलमारी आदि बनाने का काम किया जाता है.

मूर्तिकला

सवाई मधोपुर जिले के बौंली तहसील के बांस टोरड़ा में संगमरमर की मूर्तियां बनाने का कार्य किया जाता है. यहां तैयार की जाने वाली मूर्तियां देश के अन्य भागों में भेजी जाती है. जिले के अन्य स्थानों पर पत्थर की कटिंग कर बनायी जाने वाली पत्थर की जालियां, बाई-दरवाजे,  खम्भे भी लोगों में लोकप्रिय हैं.

लघु एवं कुटीर उद्योग

जिलें में अधिकांश पैदावार सरसों की होने के फलस्वरूप कई स्थानों पर तेल घाणी उद्योग स्थापित है. गंगापुर में चावल मि, तेल मिल, पत्थर कटिंग उद्योग, डायमण्ड कटिंग आदि उद्योग प्रमुख हैं. जिले में ‘ड्रिप जिला ग्रामीण उद्योग परियोजना‘ से गांव-गांव में लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापित हुए हैं.

कला एवं साहित्य

जिले के ग्रामीण अंचलों में कच्चे एवं पक्के मकानों की दीवारों पर की जाने वाली भित्ती चित्रकला विशेष महत्त्व रखती है. सवाई माधोपुर में रणथम्भोर स्कूल आॅफ आर्ट्स तथा अन्य चित्रकारों द्वारा चित्रकारी सीखने के इच्छुक युवाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां चित्रकारों द्वारा तेयार चित्र देश-विदेश में अपनी अमिट पहचान बनाए हुए हैं. संगीत के क्षेत्र में गंगापुर में एक संगीत विद्यालय तथा कुछ स्वयंसेवी संस्थाए भी कार्यरत हैं. साहित्य की दृष्टि से भी यह क्षेत्र समृद्ध है.

काम के नोट्स:

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