करौली जिला परिक्रमा
करौली जिला – एक परिचय
राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग मे यह जिला 26.3 से 26.49 उत्तरी अक्षांश तथा 7.35 से 77.6 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है. यह जिला मध्यप्रदेश राज्य का समीपवर्ती जिला हैं जिसके पश्चिम में दौसा, दक्षिण-पश्चिमी में सवाईमाधोपुर, उत्तर-पूर्व से धौलपुर तथा उत्तर-पश्चिम में भरतपुर जिले की सीमाएं लगती हैं. चम्बल नदी जिले को मध्यप्रदेश राज्य के मुरैना जिले से पृथक् करती है. राज्य का यह बत्तीससवां जिला वित्तीय वर्ष से अस्तित्व में आया है.
करौली का इतिहास
देशी राज्यों के विलीनीकरण के समय करौली रियासत के महाराजा गणेशपाल देव बहादुर ने इस राज्य को 17 मार्च, 1948 को मत्सय संघ में सम्मिलित कराया. मई, 1949 में मत्स्य संघ का विशाल राजस्थान विलीनीकरण हुआ.
करौली रियासत की स्थापना यदुवंशी राजा अर्जुन सिंह ने विक्रम सम्वत् 1405 (सन् 1348) में कल्याणपुरी नाम से की थी जो कालान्तर में करौली के नाम से प्रचलित हुआ.
करौली की जलवायु
जिले के अल्पकालीन बरसाती मौसम के अलावा शेष समय जलवायु शुष्क रहती है. जिले की सामान्य वार्षिक वर्षा 68.92 डिग्री सेंटीमीटर है. जिले का दैनिक अधिकतम तापमान का औसत मई माह से 49 डिग्री सेल्सियस रहता है तथा न्यूनतम 2 डिग्री सेल्सियस जनवरी में रहता है.
करौली के भूगर्भ संसाधन एवं खनिज
करौली एक तरफ से चम्बल तथा तीन तरफ से मैदानों से घिरा हुआ है. यह मैदान कैमब्रियन-पूर्व की आग्नेय चट्टानों तथा उनकी तलछट से बनी चट्टानों के रूपान्तरण से बने हैं. अरावली, की पूर्व चट्टानें स्फटिक, अभ्रक, नाईसिस्ट, मिग्मा, टाइटस आदि की बनी हुई है. यहां विंध्य श्रेणी की विभिन्न चट्टेनें जिनमें कैमूल, रीवा, भाण्डेर प्रमुख रूप से पाई जाती है. विभिन्न प्रकार के सलेटी पत्थर, बालू पत्थर तथा चूना पत्थर यहां उपलब्ध हैं.
जिला अनेक प्रकार के धात्मिक एवं खनिजों से समृद्ध है. धातुओं मे शीशा, ताम्बा, लोहा अयस्क आदि तथा अधातुओं में चूना पत्थर, चिकनी मिट्टी, सिलिका, सेलखड़ी आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं. इसके अलावा जिले में लेटेराइट, रेड़ आक्साइड, बेन्टोनाइट, बेराईट, मैगनीज तथा काली मिट्टी पाई जाती है. जिलें में विभिन्न प्रकार की चट्टानों से मिलने वाले खनिज जैसे- इमारती पत्थर, सजावट के पत्थर आदि प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध हैं. भाण्डेर रेणी का गुलाबी पत्थर एवं सफेद निशानों वाला पत्थर करौली एवं हिण्डौन क्षेत्र में काफी मात्रा में पाया जाता है. सीमेंट श्रेणी का चूना पत्थर एवं सिलिकासेण्ड सपोटरा, नादोती मे पाया जाता है.
करौली के दर्शनीय स्थल
करौली के महल
करौली कस्बा चारों तरफ से लाल बलुई पत्थर से निर्मित है जिसकी परिधि 3.7 किलोमीटर. जिसमें 6 दरवाजें हैं एवं 11 खिड़कियां हैं. यहां महाराज गोपालदास के समय का एक खूबसूरत महल है जिसके रंगमहल एवं दीवाए-ए-आम को बड़ी खूबसूरती से बनाया गया है.
मदनमोहनजी का मन्दिर
इस कस्बे में लगभग 250 मन्दिर हैं. जिसमें प्रमुख मन्दिर मदनमोहनजी का है . यह मन्दिर सुन्दर सरामदे एवं सुसज्जित पंेटिंग से निर्मित है तथा महाराज गोपालदासजी के द्वारा जयपुर में लायी गयी काले मार्बल से निर्मित मदनमोहनजी की मूर्ति है. प्रत्येक अमावस्या को मेला लगता है. करौली में जैन मन्दिर, जामा मस्जिद, ईदगाह आदि भी धार्मिक आस्था स्थल है.
श्री महावीरजी
श्री महावीरजी दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का एक प्रमुख स्थान है. यहां पर भगवान महावीर लगभग 400 वर्ष पुरानी मूर्ति है. महावीरजी में निर्मित मन्दिर आधुनिक एवं प्राचीन शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है. प्रतिवर्ष चत्र सुदी 13 से वैशाख कृष्णा 2 तक मेला लगता है जिसमें लोखों लोग विभिन्न क्षेत्रों से यहां आते हैं. मेले के अंत में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है.
केलादेवी का मन्दिर
करौली से 26 किलोमीटर दूर यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. यहां पर प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है. इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के तीर्थ यात्री भी आते है. मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है. जिसमें केला (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएं हैं. कैलादेवी की आठ भुजाएं है सिंह पर सवारी करते हुए दर्शाया हैं. यहां क्षेत्रीय लांगुरिया के गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं.
मेहन्दीपुर बालाजी का मन्दिर
यह एक छोटा-सा गांव टोडाभीम तहसील से 5 किलोमीटर दूर है तथा जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है. यहां पर पहाड़ी की तलहटी में निर्मित हनुमानजी का बहुत पुराना मन्दिर है. लोग काफी दूर-दूर से यहां आते हैं. ऐसी मान्यता ही हिस्टीरिया एवं डिलेरियम के रोगी दर्शन लाभ से स्वस्थ होकर लौटते हैं. होली एवं दीपावली के त्योहार पर काफी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते है.
शिवरात्रि पशु मेला (करौली)
शिवरात्रि के अवसर पर करौली में पशुपालन विभाग द्वारा राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में ऊंट, बैल, गाय, घोड़े, खच्चर, गधे आदि सभी जानवरों का क्रय-विक्रय होता है.
करौली की हस्तकला
जिले की खानों से निकलने वाले मजबूत पत्थरों को करौली, हिण्डौन और इसके आसपास के कारीगरों द्वारा तराशकर कई प्रकार की कलात्मक कृतियां बनाई जाती है. इनमें मूर्तियां, आटा पीसने की चक्की, कुण्डा, कुण्डी, प्यालियां, चकले, इमारतों के बारसोत, जालियां आदि प्रमुख हैं. हिण्डौन के आसपास के स्थानों पर कारीगरों द्वारा स्लेट का निर्माण किया जाता है. इन स्थानों पर बनने वाली स्लेटें राज्य से बाहर भी भेजी जाती हैं. हिण्डौन में चूड़ी का कार्य भी किया जाता है.