राजस्थान का भूगोल भाग—3
राजस्थान का भौतिक भूगोल-पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
➤ पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश में बालूमय शुष्क मैदान राज्य की 25 सेन्टीमीटर समवर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित हैं.
➤ इस भौगोलिक क्षेत्र में राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर तथा जोधपुर, नागौर व चूरू जिलों पश्चिमी भाग शामिल है.
➤ बालू के विशाल टीलों के मध्य जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर के कुछ भागों में चट्टानी भू-भाग है जो ग्रेनाइट, चूना पत्थर और बलुआ पत्थर से बना हुआ है.
➤ राजस्थान के इस शुष्क मैदानी भाग में खारे पानी के छिछले क्षेत्र पाए जाते हैं जिन्हें रन कहते हैं।
➤ पश्चिमी मरूस्थलीय क्षेत्र का दूसरा प्रमुख हिस्सा लूनी बेसिन के तहत आता है.
➤ यह बेसिन 25 सेन्टीमीटर से 50 सेन्टीमीटर की वर्षा वाले क्षेत्रों में अरावली के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है.
➤ इस क्षेत्र का नाम इस क्षेत्र में बरसात के दौरान बहने वाली लूणी नदी के आधार बना है।
➤ लूनी नदी के बेसिन का विस्तार दक्षिणी जोधपुर, पाली, जालौर, व पश्चिमी सिरोही जिलों में है।
➤ लूनी व उसकी सहायक नदियों लिलड़ी, सूकड़ी, जवाई, जोजरी और बाण्डी के बहाव क्षेत्र में जलोढ़क मैदान है।
क्या होते हैं जलोढ़क मैदान?
नदियों द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी के फैलाव से एक समतल भूमि का निर्माण होता है जिसे भौगोलिक शब्दावली में जलोढ़क मैदान कहते हैं. यह क्षेत्र नदियों के बेसिन में पाए जाते हैं.
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➤ इसी क्षेत्र में पचपदरा खारे पानी का क्षेत्र है जहां नमक निर्माण किया जाता है.
➤ पश्चिमी मरूस्थलीय क्षेत्र का तीसरा सबसे प्रमुख हिस्सा अन्तः स्थलीय प्रवाह का मैदान है.
➤ इस प्रदेश को स्थानीय भाषा में शेखावाटी क्षेत्र भी कहा जाता है.
इस अर्द्ध शुष्क मैदान का विस्तार झुन्झुनूं, सीकर, चूरू तथा नागौर के उत्तरी भाग में है.
➤ यहां मध्यम और निम्न ऊंचाई के बालू के टीले पाए जाते हैं और बरखान टीले प्रमुखता से देखे जा सकते हैं.
➤ इस क्षेत्र की ज्यादातर नदियां और नाले थोड़ी दूर बहने के बाद विलुप्त हो जाते हैं जो अन्तः स्थलीय प्रवाह क्षेत्र का निर्माण करते हैं.
➤ मेन्धा व कांतली इस क्षेत्र की मुख्य नदियां हैं और इस क्षेत्र में ही खारे पानी की सबसे मशहूर झीले सांभर, डीडवाना, कुचामन, सूजानगढ़, ताल छापर और परिहारा पाई जाती हैं.