जिला दर्शन— झुन्झुनूं (jhunjhunu)
राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग में शेखावाटी का सिरमौर जिला झुंझुनूं स्थ्तिा हैं अरावली पर्वत श्रृंखला के प्राकृतिक सौन्दर्य और भू-गर्भीय वैभव से महिमा मंडित देश के नामी-गिरामी उद्योगपतियों, सीमा पर खून बहाने वाले अनगिनत शहीदों, मेहनतकश खेतिहरों तथा चंग की थाप के साथ बहती कर्णप्रिय स्वर पहरियों पर इतराते स्वाभिमानी लोगों की जन्म-भूमि है झुंझुनूं।
➤ झुन्झुनू जिला 27॰.5 से 28॰.5 उत्तरी अक्षांश तथा 75॰ से 76॰ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है।
➤ जिले के दक्षिण-पश्चिम भाग में सीकर जिले की, उत्तर में चूरू की और पूरब में हरियाणा राज्य की सीमायें हैं।
➤ झुन्झुनू जिले का क्षेत्रफल 5 हजार 928 वर्ग किलोमीटर है।
➤ जिले के दक्षिण और पूर्वी भाग में अरावली पर्वत श्रृंखला है जबकि उत्तरी एवं पश्चिमी भाग रेतीला है।
➤ इतिहासवेत्ता हरनाथसिंह के अनुसार झुन्झुनू को कब और किसने बसाया, इसका स्पष्ट विवरण नहीं मिलता।
➤ उनके अनुसार पांचवीं-छठी शताब्दी में गुर्जरों के काल में झुन्झुनू बसाया गया था।
➤ आठवीं शताब्दी में चैहान शासकों के काल का अध्ययन करते हैं तो उसमें झुन्झुनू के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है।
➤ डाॅ. दशरथ शर्मा ने तेरहवीं शताब्दी के कस्बों की जो सूची जारी की है उसमें भी झुन्झुनू का नाम है।
➤ इसी प्रकार ‘अनन्त’ और ‘वागड़’ राज्यों के उल्लेख में भी झुन्झुनू का अस्तित्व कायम था।
➤ सुलतान फिरोज तुगलक (ई. सन् 1351-1388) के बाद कायमखानी वंशज अस्तित्व में आया।
➤ कहते हैं कि कायम खां के बेटे मुहम्मद खां ने झुन्झुनूं में अपना राज्य कायम किया।
➤ इसके बाद लगातार यह क्षेत्र कायमखानी नवाबों के आधिपत्य में रहा।
➤ एक उल्लेख यह भी है कि सन् 1451-1488 के बची झूंझा नामक जाट के नाम पर झुन्झुनू बसाया गया।
➤ डाॅ. उदयवीर शर्मा ने लिखा है कि झूंझा जाट के नाम पर झुन्झुनूं बसाने की बात पुष्ट प्रमाणों के आधार पर खरी नहीं उतरती।
➤ झुन्झुनूं का अन्तिम नवाब रूहेल खां था जो आसपास के अपने ही वंश के नवाबों से प्रताडित था।
➤ ऐसे में उसने शार्दूल सिंह शेखावत् को झुन्झुनू बुला लिया।
➤ रूहेल खां की मृत्यु के बाद विक्रम संवत् 1787 में झुन्झुनूं पर शेखावत राजपूतों का आधिपत्य हो गया।
➤ उनकी सत्ता जागीर अधिग्रहण तक चलती रहीं
➤ शार्दूलसिंह के निधन के बाद उनके पांच पुत्रों जोरावरसिंह, किशनसिंह, अखयसिंह, नवलसिंह और केसीसिंह के बीच झुन्झुनू ठिकाने का विभाजन हुआ।
➤ यही पंचपाना कहलाया।
➤ इतिहासकार डाॅ. हरफूलतसिंह आर्य के अनुसार जोरावर सिंह एवं उनके वंशजों के अधीन चौकड़ी, मलसीसर मण्ड्रेला, डाबड़ी, चनाना, सुलताना, ओजटू, बगड़, टाई, गांगियासर और काली पहाड़ी आदि का शासन था।
➤ जबकि किशनसिंह और उनके वंशज खेतड़ी, अलसीसर, हीरवा, अडूका, बदनगढ़, सीगड़ा, तोगड़ा, बलरिया आदि के शासक रहे।
➤ नवलसिंह व उनके वंशजों के अधीन नवलगढ़, मण्डावा, महनसर, मुकुन्दगढ़, इस्माईलपुर, परसरामपुरा, कोलिण्डा आदि की शासन व्यवस्था थी।
➤ जबकि केशरीसिंह और उनके वंशजों का बिसाऊ, सूरजगढ़ और डूडलोद में शासन रहा।
➤ अखयसिंह चूंकि निःसंतान थे अतः उनका हिस्सा अन्य भाइयों को दे दिया गया।
➤ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ झुंझुनूं क्षेत्र में जन आक्रोश कई आन्दोलनों के रूप में सामने आया।
➤ स्वतंत्रता सेनानी सांवलराम भारतीय के अनुासार इस जनपद में आर्य समाज आन्दोलन, जागीरदारों के खिलाफ आन्दोलन, प्रजामण्डल आन्दोलन और अंग्रेजों के विरूद्ध स्ततंत्रता आन्दोलन छेड़े गये जो कमोबेश एक-दूसरे के पूरक थे।
➤ झुंझुनूं जिला राजस्थान के शेखावाटी जनपद का प्रमुख जिला है।
➤ इतिहासकार मोहनसिंह लिखते हैं कि जयपुर राज्य की सबसे बड़ी निजामत शेखावाटी थी।
➤ जिसमें वर्तमान झुंझुनूं और सीकर जिलों की संपूर्ण सीमाएं थीं।
➤ शेखाावाटी निजामत का कार्यालय झुंझुनूं था।
➤ सन् 1834 में झुंझुनूं में मेजर हेनरी फोस्टर ने एक फौज का गठन किया था जिसका नाम शेखावाटी बिग्रेड रखा गया था।
➤ झुंझुनूं में जिस जगह यह फौज रहती थी वह इलाका आज भी छावनी बाजार और छावनी मोहल्ला कहलाता है।
➤ महान युगदृष्टा स्वामी विवेकानन्द का खेतड़ी से गहरा रिश्ता था।
➤ शिकागो धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने से पूर्व वे खेतड़ी आये थे।
➤ खेतड़ी नरेश महाराजा अजीतसिंह से उनका पारिवारिक संबंध था।
➤ उल्लेखनीय बात यह है कि स्वामीजी को विवेकानन्द नाम खेतड़ी की ही देन है।
➤ पंडित मोतीलाल नेहरू का भी खेतड़ी से अटूट सम्बन्ध था।
➤ कहा जाता है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा खेतड़ी में हुई थी।
➤ शेरशाह सूरी का खेतड़ी के निकट शिमला गांव से सम्बन्ध था।
➤ शेरशाह सूरी ने इस गांव में सैकड़ों कुएं खुदवाये थे।
➤ सम्पूर्ण शेखावाटी को पर्यटन की दृष्टि से एक ‘कला दीर्घा’ के नाम से जाना जाता है।
➤ यहां इन्द्रधनुषी भित्ति चित्रों वाली हवेलियां, किले, स्मारक, धार्मिक, स्थल और प्राकृतिक सौन्दर्य का साक्षात्कार कराने वाले दर्शनीय स्थान हैं।
झुन्झुनूं (jhunjhunu)— लोहार्गल
➤ झुंझुनूं जिले के दक्षिण में जिला मुख्यालय से करीब साठ किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थ्तिा यह पवित्र स्थान सीकर-नीम का थाना सडक मार्ग पर सीकर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
➤ इस मार्ग पर गोल्याणा बस स्टेण्ड से पांच किलोमीटर का एक पृथक रास्ता लोहार्गल के लिए जाता है।
➤ प्रशासनिक दृष्टि से यह नवलगढ पंचायत समिति का एक ग्राम पंचायत मुख्यालय है।
➤ लगभग 70 मन्दिर, मालकेत और बरखण्डी शिखर, सूर्यकुण्ड आदि के साथ-साथ यहां का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है।
➤ भाद्रपद माह में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक हर वर्ष लोहार्गल के पहाड़ों में हजारों-लाखों नर-नारी पद परिक्रमा करते हैं।
➤ अमावस्या के रोज सूर्यकुण्ड मं पवित्र स्थान के साथ यह ‘फेरी’ विधिवत सम्पन्न होती है।
➤ जिला मुख्यालय से यह स्थान 5-6 किलोमीटर दूर है।
➤ अरावली पर्वत माला की गोद में बसा किरोडी एक रमणीय स्थल है जिसे प्रकृतिक ने वनस्पति और सौन्दर्य सम्पदा से मालामाल कर रखा है।
➤ आम, निम्बू, जामुन और बील-पत्र के वृक्षों की तो बहुतायत है ही साथ ही केवड़े के दुर्लभ वृक्ष भी किरोडी में उपलब्ध हैं।
➤ ऐतिहासिक दृष्टि से यहां उदयपुरवाटी के दानवीर शासक टोडरमल और उनके वित्त मंत्री मुनशाह के स्मारक हैं।
➤ गुनगुने निर्मल जल के तीन कुण्ड हैं, जिनमें गन्धक का मिश्रण बताया जाता है।
➤ झुंझुनूं से चालीस किलोमीटर दूर जयपुर-पिलानी सड़क मार्ग पर चिड़ावा से आठ किलोमीटर आगे (पिलानी की ओर) देवरोड नामक स्थान है।
➤ जहां से दो किलोमीटर लम्बा एक अलग सड़क मार्ग नरहड दरगाह तक जाती है।
➤ यह स्थान न केवल शेखावाटी और राजस्थान का अपितु भारतपर्ष का एक गौरवशाली स्थल है।
➤ यहां हर वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर दरगाह का मेला भरता है।
➤ नरहर के शक्कर पीर बाबा की दरगार पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं।
➤ विशाल एवं भव्य बुलन्द दरवाजे से होकर दरगाह शरीफ तक पहुंचा जाता है। जहां एक आयताकार चौक में मानसिक विकृतिक वाले लोगो के शरीर पर पवित्र मिट्टी रगड़ी जाती है।
➤ कहते हैं ऐसा करने पर उन्हें विक्षिप्तावस्था से मुक्ति मिल जाती है।
➤ यह स्थान चिड़ावा पंचायत समिति का ग्राम पंचायत मुख्यालय है और यहां यात्रियों के आवास के लिए धर्मशाला और तिबारे बने हुए हैं।
➤ प्राचीन शेखावाटी का सबसे बडा ठिकाना खेतड़ी भारत की ताम्र नगरी के नाम से जाना जाता है।
➤ झुंझुनूं से 70 तथा दिल्ली से 180 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान दिल्ली, जयपुर और झुंझुनूं से सडक मार्ग से जुड़ा हुआ है।
➤ अरावली के गर्भ में करीब 75 किलोमीटर लम्बी ताम्र पट्टी छिपी हुई है।
➤ इस सम्पूर्ण पट्टी के ऊपरी छोर पर खेतड़ी स्थित है जहां देश का एक मात्र ताम्बा उत्पादक संस्थान हिन्दुस्तान काॅपर लिमिटेड स्थित है।
➤ प्राचीन खेतडी ओर वर्तमान खेतडी नगर के बीच करीब आठ किमी का फासला है।
➤ खेतडी नगर जहां ताम्बा उपक्रम के कारण देश में चर्चित है वहीं पुराना खेतड़ी कस्बा अपनी ऐतिहासिक पहचान के कारण दर्शनीय है।
➤ खेतड़ी में रामकृष्ण मिशन का मठ, भोपालगढ़ का दुर्ग, पन्नाला शाह का तालाब, अजीतसागर, बागोर का किला, भटियानीजी का मन्दिर जैसे दर्शनीय स्थल हैं।
➤ खेतड़ी अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है।
➤ खेतड़ी के निकट हरियाणा राज्य की सीमा पर जिले का टीबा-बसई गांव है।
➤ यहां बाबा रामेश्वरदास का मन्दिर दर्शनीय है।
➤ इस मंदिर में अति विशाल मूर्तियां, दीवारों पर अंकित गीता व अन्य धर्म ग्रन्थों के पवित्र श्लोक और मंदिर के विशाल परिसर की भव्यता एक अपूर्व झांकी के समान है।
➤ पिलानी को तकनीकी शिक्षा संस्थान बिरला इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस की वजह से देश भर में जाना जाता है।
➤ पिलानी में भारत सरकार का एक उपक्रम केन्दीय इलेक्ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीरी) भी है जो देश के विज्ञान और तकनीकी विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
➤ झुंझुनूं जिले का महनसर कस्बा जयपुर-चूरू रेलमार्ग पर स्थित है।
➤ झुंझुनूं से 45 किमी दूर इस कस्बे में चूरू, झुंझुनूं तथा सीकर जिले के रामगढ़ शेखावाटी से बस द्वारा भी पहुंचा जा सकता है।
➤ महनसर में पोद्दारों की सोने की दुकान पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है।
➤ इस दुकान के भित्ति चित्रों पर स्वर्णिम पालिश होने के कारण ही यह सोने की दुकान कहलाती है।
➤ महनसर में रघुनाथजी मंदिर, तोलाराम मसखरा का आकर्षक भित्ति चित्रों वाला महफिल खाना तथा अन्य हवेलियां भी दर्शनीय हैं।
➤ शेखावाटी में सर्वाधिक विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने वाला झुंझुनूं जिले का मण्डावा कस्बा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर है।
➤ झुंझुनूं, मुकुन्दगढ़ और फतेहपुर से जुड़ा होने के कारण यह कस्बा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भी जुड़ गया है।
➤ मण्डावा में किला, रेत के धोरे आदि दर्शनीय हैं। इनके अलावा भी कई हवेलियां यहां ऐसी हैं जिनके नयनाभिराम भित्ति चित्रों को देखकर सैलानी मंत्र मुग्ध हो जाते हैं।
➤ झुंझुनूं से 35 किमी (सीकर की तरफ) जयपुर-झुंझुनूं सड़क मार्ग पर स्थित डूण्डलोद कस्बा दिल्ली और जयपुर से सीधी रेल सेवा से जुड़ा है।
➤ डूण्डलोद में किला, गोयनका हवेली, गोयनका छतरी इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं।
➤ मण्डावा की तरह यहां भी विदेशी सैलानियों का जमघट लगा रहता है।
➤ जयपुर-झुंझुनूं सड़क और रेल मार्ग पर झुंझुनूं से 40 तथा सीकर से 30 किमी की दूरी पर नवलगढ़ कस्बा बसा हुआ है।
➤ नवलगढ़ का दुर्ग, रूप निवास पैलेस, आठ हवेली, पोद्दार, पाटोरिया, भगत, चौखानी व अन्य परिवारों की हवेलियां, गंगामाता का मंदिर आदि नवलगढ़ के दर्शनीय स्थल हैं।
➤ नवलगढ़ की हवेलियों में भित्ति चित्रों का तो आकर्षण है ही साथ ही लकड़ी के दरवाजों की बारीक जालियां भी जादुई काष्ठ कला का दिग्दर्शन कराती है।
➤ हिन्दू एव मुस्लिम शासकों के अधीन रहा झुंझुनूं शहर आज प्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है।
➤ झुन्झुनूं में कमरूद्दीन शाह की दरगाह का विशाल और विहंगम परिसर देखने लायक है तो पहाड़ी पर बना मनसा माता का मंदिर भी दर्शनीय है।
➤ इन दोनों स्थानों से शहर का नयाभिराम दृश्य बहुत आकर्षक लगता है।
➤ ईश्वरदास मोदी की हवेली में भित्ति चित्रों की भव्यता के साथ-साथ सैकड़ों झरोखों की चित्ताकर्षक छटा भी दर्शनीय है।
➤ शहर में बना खेतड़ी महल एक प्रकार का हवा महल है तो मेड़तणी बावड़ी और बादलगढ भी नजरों में कैद हो जाने वाले स्थल हैं।
➤ समसतालाब, चंचलनाथ का टीला, जोरावर गढ, बिहारी जी का मन्दिर, राणी सती मन्दिर, खेमी शक्ति मंदिर, लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर, दादाबाडी, अरविन्द आश्रम, मोडा पहाड, खेतान बावडी, शेखावत शासकों की छतरियां, टीबडेवाला की हवेलियां, जवाब रूहेल खां का मकबरा, जमाा मस्जिद तथा झुन्झुनूं के निकट आबूसर में नेतका टीला जैसे अनेक अन्य दर्शनीय स्थल भी झुन्झुनूं में हैं।
➤ पर्यटन की दृष्टि से चिड़ावा, बिसाऊ, चूड़ीअजीतढ़, परसरामपुरा, मुकुन्दगढ़, अलसीसर, मलसीसर, गांगियासर, काजड़ा, बगड़, सूरजगढ़, सिंघाना और उदयपुरवाटी में भी हवेलियां, छतरियां, तालाब, धार्मिक स्थल, एऐतिहासिक स्मारक आदि दर्शनीय हैं।
➤ साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से झुन्झुनूं जिले की माटी में पल बढकर अनेक इतिहास वेत्ताओं ने इतिहास लेखन कर समाज को समर्पित किया हैं इस दृष्टि से हरनाथसिंह, पंडित झाबरमल शर्मा, डाॅ. उदयवीर शर्मा, मोहन सिंह, रघ्ज्ञुवीरसिंह शेखावत आदि के नाम प्रमुख हैं।
➤ साहित्य के क्षेत्र में जनाब सालिक अजदज, युसुफ झुंझुनवी, डाॅ. गोरधन सिंह शेखावत, डाॅ. मनोहर शर्मा, विश्वनाथ ‘विमलेश’ रामनिरंजन शर्मा ‘ठिमाऊ’, बनवारी लाल ‘सुमन’, परमेश्वर द्विरेफ, भागीरथसिंह ‘भाग्य’, रामस्वरूप ‘परेश’, नागराज, ओमप्रकाश पचरंगिया आदि अनेक हस्ताक्षर हैं।
➤ मातुराम वर्मा (पिलानी) तथा राजकुमार गनेड़ीवाला (मुकन्दगढ़) ने जहां कलाकार के रूप में अपनी जादुई अंगुलियों का कमाल दिखाया है वहीं सूरतसिंह शेखावत कार्टून विधा के शिरोमणि रहे हैं।
➤ शेखावाटी के चंग और गीन्दड़ नृत्यों ने इस जनप्रद की लोक संस्कृति को पंख प्रदान किये हैं।
➤ वहीं भोपा-भोपी के गायन, बांसुरी और अलगोजों के स्वर तथा सामाजिक उत्सवों पार गहिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीतों में समृद्ध लोक परम्पराओं की झांकी का प्रतिबिम्ब झलकता है।
➤ चिड़ावा के राणा परिवार का परम्परागत शैली का ख्याल तथा विभिन्न कस्बों में गजल गायकी की परम्परा ने भी इसे जिले का नाम रोशन किया है।
➤ लोहार्गल में प्रतिवर्ष भादवा बदी अमावस्या को एक विशाल मेला लगता है जिसमें हजारों श्रृद्धालु भक्त् यहां बने कुण्ड में स्नान करके पुण्य के भागीदार बनते है।
➤ यहां राजस्थान के दूर-दराज स्थानों से हजाों मेलार्थी आते हैं और मालखेत वनखण्डी की जय के उद्घोष से पर्वत श्रृंखलाओं को गुंजाते हैं।
➤ यहां आने वालले यात्री चैबीस कोस की पैदल यात्रा करते हैं।
➤ नरहड़ ग्राम में हजरत हाफिज शक्करबार शाह की प्राचीन दरगाह का मेला जन्माष्टमी के दिन लगता है।
➤ भावात्मक एव सांस्कृतिक एकता के प्रीत इस मेले में सभी धर्मों के लोग समान रूप से पीर बाबा की मजार पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
➤ जायरीनों द्वारा मजार पर चादरें, कपड़े, नारियल और मिष्ठान चढ़ाई जाती है।
➤ दरगाह में एक जाल का वृक्ष है जिस पर जायरीन अपानी मन्नतों के डोरे टांग देते हैं और उनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं।
➤ झुन्झुनूं में मनसा देवी का मेला वर्ष में दो बार चैत्र सुदी अष्टमी एवं आसोज सुदी अष्टमी को लगता है जिसमें जिले के हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
➤ झुन्झुनूं जिले के उत्तरी-पूर्वी भाग से लेकर दक्षिणी छोर तक फैली अरावली पर्वतमाला ने प्राकृतिक रूप से जिले को काफी समृद्ध किया हुआ है।
➤ सिंघाना से लेकर रघुनाथगढ़ तक भू-गर्भ में करीब 75 किलोमीटर क्षेत्र में ताम्र (तांबा) पट्टी फैली हुई है।
➤ इसका दोहन खेतड़ी स्थित हिन्दुस्तान काॅपर लिमिटेड के माध्यम से किया जाता है।
➤ खेतड़ी में तीन खानें हैं, इनमें कोलिहान और खेतड़ी में भूमिगत खदानें हैं जबकि चांदमारी में खुली खान है।
➤ अरावली की गोद में जिले में ग्रेनाइट और लाइम स्टोन के विपुल भण्डार हैं।
➤ उदयपुरवाटी तहसील के अनेक गांवों में इनका खनन होता है।
➤ ग्रेनाइट पत्थर को तराशने और काटने तथा चूने के पत्थर (लाइम स्टोन) से सीमेंट निर्माण के लिए गत एक दशक में अनेक औद्योगिक इकाइयों का फैलाव इस जिले में हुआ है।