जिला दर्शन— कोटा (Kota)
चम्बल नदी के तट पर बसा हुआ कोटा जिला राजस्थान का एक प्रमुख शैक्षणिक और औद्योगिक केन्द्र है। पानी की बहुतायत की वजह से यह कृषि के क्षेत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है.यह जयपुर—जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 12 पर अवस्थित है. राजस्थान के लिए कोटा आधुनिक के साथ ही ऐतिहासिक महत्व भी रखता है. आजादी से पहले कोटा स्वयं एक रियासत रही है.
➤ कोटा जिले का नाम इसके जिला मुख्यालय नगर कोटा के नाम पर रखा गया है जो कोटा रियासत की राजधानी भी थी।
➤ प्राप्त अभिलेखों के अनुसार चम्बल नदी के पूर्व में स्थित अकेलगढ, जिसका कि शासक कोटिया भील था उसने कोटा नगर बसाया था।
➤ जिसका नाम उसने कोटाह (कोटा) रखा।
➤ सन् 1625 तक कोटा परगना बूंदी राज्य के अधीन रहा।
➤ बाद में मुगल बादशाह जहांगीर ने राजा राव रतन सिंह के पुत्र माधोसिंह की शूरवीरता से प्रसन्न होकर उसे कोटा एवं उसके साथ 360 गांव भेंट किये एवं माधोसिंह को कोटा का प्रमुख बनाया गया।
➤ आगे चलकर कोटा को अलग राज्य घोषित कर दिया गया एवं यहां के शासक महाराव कहलाने लगे।
➤ माधोसिंह के बाद राव मुकन्द सिंह, जगत सिंह, प्रेमसिंह, किशोर सिंह, राम सिंह, भीम सिंह, अर्जुन सिंह, अजीत सिंह, छत्रसाल सिंह प्रथम, गुमानसिंह, उम्मेदसिंह प्रथम, किशोर सिंह द्वितीय, रामसिंह द्वितीय, छत्रसाल सिंह द्वितीय, उम्मेद सिंह द्वितीय एवं भीम सिंह द्वितीय कोटा के शासक बने।
➤ कोटा के अन्तिम शासक महाराव भीमसिंह द्वितीय रहे।
➤ यह जिला राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी भाग में 24.2 और 25.2 उत्तरी अक्षांश तथा 75.37 एवं 77.26 दक्षिणी अक्षांश के मध्य स्थित है।
➤ जिले के पश्चिम में चितौड़गढ़ जिला व बूंदी जिला दक्षिण में झालावाड़, पूर्व में बारां, उत्तर में सवाईमाधोपुर एवं टोंक जिला है।
धरातल का हल्का सा ढलान दक्षिण से उत्तर की तरफ हैं दक्षिण एवं उत्तरी भागों में पहाड़ियां दिखाई देती हैं।
➤ विध्य पहाड़ियों की मुकन्दरा श्रेणी जिले में स्थित है।
➤ कई स्थानों पर दोहरी विरचना दो पृथक पर्वत श्रेणियों की है जो एक दूसरे से दो किलो मीटर से अधिक दूरी पर समानान्तर जाती हैं इन पर्वत श्रेणियों के मध्य पड़ने वाला भाग कहीं-कहीं घने जंगलों से आच्छादित हैं
➤ जिले में बारहमासी बहने वाली चम्बल नदी है जिसका उद्गम स्थल विंध्याचल पर्वत है, जो मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में होकर बहती है।
➤ उत्तर प्रदेश में 32 किलोमीटर बहने के पश्चात् इटावा शहर के समीप यमुना नदी में मिल जाती है।
➤ जिले की अन्य सहायक नदियां काली सिंध, पार्वती, परवन एवं उजाड़ है।
➤ जिले का कुल भोगौलिक क्षेत्रफल 5198.14 वर्ग किलोमीटर हैं जिसमें शहरी 310.05 वर्ग किलोमीटर एवं 4906.95 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण है।
➤ चम्बल उद्यान कोटा में चम्बल नदी के तट पर स्थित है।
➤ 10 एकड़ भूमि में स्थित यह उद्यान राजस्थान के श्रेष्ठतम उद्यानों में से एक है जो 1976 में विकसित हुआ।
➤ चट्टानी भूमि पर विकसित किये गये इस उद्यान को भूतल को समतल कर स्थान प्राकृतिक एवं मौलिक रूप में विकसित किया गया है।
➤ उद्यान में एक बड़ा फव्वारा कई आकर्षक मूर्तियां विद्यमान है।
➤ यहां से चम्बल नदी में नौका विहार की सुविधा भी उपलब्ध है।
➤ सभी आयु वर्ग के पर्यटकों को आकर्षिक करने वाले इस उद्यान में बच्चों के लिए विद्युत चलित टाॅयट्रेन मेरी-गो राउण्ड झूला, लक्ष्मण झूला व अन्य झूले आकर्षण का केन्द्र है।
➤ चम्बल उद्यान के निकट 12 एकड़ भूमि पर निर्मित यातायात पार्क राजस्थान का पार्क व देश के सर्वश्रेष्ठ यातायात पार्कों में से एक है।
➤ इसका निर्माण जुलाई 1992 में पूर्ण हुआ पार्क के किशोरों एवं बालकों को यातायात के महत्वपूर्ण जानकारी देने के उद्देय से यातायात प्रशिक्षण दीर्घा का निर्माण किया गया।
➤ पार्क में सड़कों पर स्थान-स्थान पर सड़क संकेत चिन्ह लगाये गये हैं तथा कई भवनों यथा अस्पताल, स्कूल, डाकघर, हवाईअड्डा आदि के माॅडल भी बनाये गये हैं।
➤ बच्चों के मनोरंजन हेतु यहां वनस्पति उद्यान, पक्षी विहार एवं रंगबिरंगे झूले हैं।
➤ पार्क में निर्मित फ्लाई ओवर ब्रिज का अपना अलग आकर्षण है रात्रि में समय प्रकाश की मनोहारी प्रभाावी व्यवस्था की गई है।
➤ छत्र विलास तालाब व बाग के निकट स्थित स्थल पर कोटा के हाड़ा शासकों में दाह संस्कार करने की परम्परा रही है।
➤ दिवंगत शासक की स्मृति में प्रस्तरों से छतरी बनवाई जाती हैं बाग में स्थित अनेक छतरियां राजपूत स्थापत्यकला का सुन्दर नमूना है।
➤ छतरियों पर पशु-पक्षी, देवी देवताओं एवं लता-बल्लरियों की कलात्मक आकृतियां उत्कीर्ण हैं।
➤ छतरियों के चारों और उद्यान फव्वारे एवं विद्युत सज्जा से बाग और अधिक रमणीय हो गया है।
➤ कोटा शहर के पाटनपोल में भगवान मथुराधीश का मंदिर है जिससे यह नगर वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख तीर्थधाम है।
➤ देश में बल्लभ संप्रदाय की प्रमुख सात पीठों में से कोटा प्रथम पीठ है।
➤ मंदिर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर नंद महोत्सव, सावन में झूलोत्सव, दिपावली पर अन्नकूट उत्सव तथा होली पर आयोजित होने वाले डोल उत्सव प्रमुख हैं।
➤ आठवीं शताब्दी का कन्सुआ का शिव मंदिर कोटा शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर डी.सी.एम. मार्ग पर स्थित है।
➤ मंदिर के परिक्रमा पथ में बाईं ओर दीवार पर कुटिला लिपि में लिखा हुआ आठवीं शताब्दी का शिलालेख है।
➤ यह शिलालेख शिवगणमौर्य का है जिसमें इस मंदिर के निर्माास का सविस्तार उल्लेख किया गया है।
➤ प्रसिद्ध कवि जय शंकर प्रसाद ने अपने चन्द्रगुप्त नाटक के प्राकथन में इस स्थान को कणवाश्रम की संज्ञा देकर आम लोगों की धारणाओं को पुष्ट किया है।
➤ इस धारणा के अनुसार यह कण्य ऋषि का आश्रम था। ऐसा भी कहा जाता है कि यही पर शकुन्तला ने अपना बाल्यकाल व किशोरावस्था व्यतीत की थी।
➤ मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर का चतुर्मुख शिवलिंग है।
➤ मंदिर की विशेषता यह है कि सूर्य की प्रथम किरण मंदिर के 20-25 फुट भीतर स्थित शिवलिंग पर सीधी पड़ती है।
➤ यहां स्थित भैरव मंदिर में भैरव की आदमकद मूर्ति विराजमान है। यह शिवलिग 3 फिट ऊंचा और एक फुट चौड़ा है।
➤ कोटा से 25 किलोमीटर दूर चारचौमा ग्राम के समीप प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे गुप्तकालीन अर्थात चौथी पांचवीं शताब्दी का बताया जाता है।
➤ कोटा राज्य के इतिहासकार डाॅ. मथुरालाल शर्मा ने चारचौमा के शिवमंदिर को सबसे प्राचीन शिवालय बताया है।
➤ मंदिर में चतुर्मुख शिव प्रतिमा बहुत आकर्षक है, वेदी से चोटी तक प्रतिमा की ऊंचाई 3 फीट है।
➤ कंठ उपर के चारों मुख श्यामवर्ण और चमकीले हैं। चारों मुखों का केशविन्यास वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दर्शनीय है।
➤ प्राचीन भीमचौरी का मंदिर कोटा से 50 किलोमीटर दूर दर्रा नामक स्थान की नाभी में भीमचौरी अवस्थित है।
➤ एक लम्बे चौड़े पत्थर के दो स्तरीय चबूतरों पर खम्भों वाला एक ध्वस्त मंदिर ही भीमचौरी या भीम चवंरी कहा जाता है।
➤ इतिहासकार इसे गुप्तकालीन मानकर इसका निर्माण काल चौथी शताब्दी बताते हैं।
➤ यहां पर 44 फुट चौड़े और 74 फुट बड़े—बड़े शिला खण्डों से बने एक चबूतरे पर भमचौरा का वह मूल मंदिर खण्डहर अवस्था में उपलब्ध है, जिसे भीम का मण्डप माना जाता है।
➤ मंदिर में शिवलिंग की प्रतिष्ठा मानी गई है।
➤ कोटा के राजकीय संग्रहालय की एक प्रतिमा तंत्रिका पट्टिका का शिल्प की दृष्टि से पूरी हाड़ौती चंचल में अनूठी है जो विदेशों की यात्रा भी कर चुकी हैं मगर मुख से अलंकृत इस पट्टिका में एक व्यक्ति को वाद्य यंत्र बजाते हुए देखा जा सकता है।
➤ कोटा के पूर्व में ग्वालियर की ओर जाने वाली सड़क पर दीगोद उपखण्ड मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर दक्षिण में बूढादीत गांव के तालाब के पश्चिमी किनारे पर पूर्वाभिमुख शिखर बंध सूर्य मंदिर स्थित है।
➤ पंचायतन शैली के मंदिर में गर्भगृह और महामण्डप है।
➤ मंडप का आधुनिकीकरण अठारहवीं शताब्दी में कराया गया।
➤ मंदिर आज भी अपने मूल रूप में विद्यमान है।
➤ यह सूर्य मंदिर नवीं शताब्दी का माना जाता है।
➤ चर्मण्यवती के तट पर स्थित महत्वपूर्ण शिवालयों में से गेपरनाथ शिवालय अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
➤ इतिहासकारों के अनुसार मंदिर का निर्माणकाल पांचवीं से 11 वीं सदी के मध्य माना गया है।
➤ यहां पर बिखरे विस्तृत सांस्कृतिक अवशेषों से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि कभी इस क्षेत्र में मौर्य, शुंग, कुषाण, परमार तथा गुप्तवंशीय राजाओं का शासन था।
➤ कोटा नगर से 22 किलोमीटर दूर रावतभाटा मार्ग पर ग्राम रथ कांकरा के समीप घाटी में 300 से 350 फुट गहराई में स्थित गेपरनाथ का शिव मंदिर अपने अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य, चट्टानों से निकलते हुए अनेक झरनों की लय के मध्य अपनी उन्मुक्तता के साथ दर्शकों को आकर्षित करता है।
➤ यहां हर वर्ष शिवरात्रि का मेला लगता है जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
➤ कोटा नगर से 50 किलोमीटर दूर विंध्य पहाड़ियों की मुकंदरा पर्वत मालाओं के सौन्दर्यमयी प्राकृतिक दर्रा गेम सेन्चुरी पर्यटकों के विचरण और मनोरंजन हेतु विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
➤ लगभग 80 किलोमीटर लम्बी एवं 5-6 किलोमीटर चैड़ी प्राकृतिक घाटी में दर्रा सेन्चुरी का आरंभ 1955 में किया गया।
➤ घाटी के दोनों ओर 335 से 505 मीटर उंची पहाडियां एवं घाटियां मनोहारी लगती है।
➤ अभयारण्य में तेंदुए, सांभर, चीतल, नीलगाय, रींछ, जंगली सूअर आदि प्राकृतिक वातावरण में उन्मुक्त विवरण करते हैं।
➤ कोटा से 16 किलोमीटर दूर कैथून में स्थित यह मंदिर तीसरी से पांचवीं शताब्दी के मध्य का बताया जाता है।
➤ एक छतरी में स्थापित विशाल मूर्ति धड़ से ऊपर तक की हे। जिसे विभीषण की मूर्ति कहा जाता है।
➤ कोटा के अन्य दर्शनीय स्थलों में जग मंदिर, घंटाघर, लक्खी बुर्ज, छोटी व बड़ी समाध, अधरशिला, भीतरियाकुण्ड, गोदावरीधाम, कोटा बैराज, महात्मा गांधी भवन, रंगबाड़ी चिड़ियाघर, खड़ेगणेश जी मंदिर, धाभाईयों के मंदिर एवं नीलकण्ठ महादेव का मंदिर प्रमुख है।