जिला दर्शन— जैसलमेर (jaisalmer)
विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपना विशिष्ट स्थान अर्जित कर चुकी स्वर्ण नगरी जैसलमेर अपने प्राचीन दुर्ग, भव्य-राजप्रासादों, कलात्मक हवेलियों, शिल्प सौंन्दर्य के प्रतीक मन्दिरों, स्वर्णिम आभा वाले पीत पाषाणों से निर्मित कलात्मक भवनों एवं मरूस्थलीय जन-जीवन के लिए विश्व विख्यात रहा है। भारत-पाक सीमा पर थार के विशाल मरूस्थल में स्थित जैसलमेर क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा जिला है तथा देश के सबसे बड़े जिलों में तीसरे स्थान पर हैं विशिष्ट वास्तु कला, गौरवशाली इतिहास एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ ही लोक संगीत एवं परम्परागत दस्तकारी तथा हस्तशिल्प को अपने अंक में समेटे जैसेलमेर आज देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकष्रण का केन्द्र बिन्दु बनता जा रहा है।
➤ प्राचीन सिंधु घाटी की सभ्यता के क्षेत्र रहे वर्तमान जैसलमेर जिले का भू-भग प्राचीन काल में ‘माड़धरा’ अथवा ‘वल्ल मण्डल’ के नाम से प्रख्यात था।
➤ ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् कालान्तर में यादवों का मथुरा से काफी संख्या में बहिर्गमन हुआ।
➤ जैसलमेर के भूतपूर्व शासकों के पूव्रज जो अपने वंश केा भगवान कृष्ण के वंशानुक्रम में मानते हैं, संभवतः छठी शताब्दी में जैसलमेर के भू-भाग पर आ बसे थें जिले में यादवों के वंशज भाटी ➤ राजपूतों की प्रथम राजधानी तनोट, दूसरी देरावर, तीसरी लौद्रवा तथा चैथी जैसलमेर में रही।
➤ यदुवंशी भाटी शासक महारावल जैसल ने श्रावण शुक्ला 12 सम्वत् 1212 को एक त्रिकूट पहाड़ी पर आधुनिक जैसलमेर की नींव रखी थीं।
➤ इसका निर्माण महारावल जैसल के पुत्र एवं उत्तराधिकारी रावल शालीवाहन द्वितीय के समय पूरा हुआ।
➤ तत्पश्चात् इसे जैसलमेर राज्य की राजधानी बनाया गयां इससे पूर्व की राजधानी लौद्रवा जैसलमेर से 16 कि.मी. दूरी पार स्थित हैं।
➤ रियासती शासन के अंतिम दौर में स्वाधीनता प्राप्ति के साथ मार्च, 1949 में जैसलमेर रियासत को वृहद् राजस्थान में शामिल किया गया।
➤ 6 अक्टूबर 1949 में जैसलमेर रियासत को पृथक जिले का दर्जा मिला।
➤ इसके बाद सन् 1953 में जैसलमेर जिले का स्तर प्रदान किया गया।
➤ यह वर्तमान में राजस्थान का सीमान्त प्रहरी जिला है।
➤ जैसलमेर जिले का सामान्य आकार का दिशाओं वाले अनियमित बहुभुज जैसा है।
➤ यह राजस्थान के सुदूर पश्चिम में स्थित है और भारत के विशाल मरूस्थल थार का बड़ा भाग है।
➤ यह 26.01. से 28.02 उत्तरी अक्षंश व 69.29 से 72.20 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।
➤ जिले के उत्तर और पश्चिम में देश की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है, जो पाकिस्तान से मिली हुई है।
➤ उत्तर-पूर्व में बीकानेर जिले की सीमाएँ हैं।
➤ दक्षिण में बाड़मेर व पूर्व में जोधपुर जिलों से इसकी सीमाएँं लगती हैं।
➤ 38 हजार 401 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले जैसलमेर जिले का भू-भाग रेतीला, सूखा तथा पानी की कमी वाला है।
➤ जैसलमेर नगर के निकट 64 किमी व्यास के चट्टानी टीलों व कठोर ऊँचे-नीचे मैदानों से युक्त पथरीली जमीन भी पायी जाती है।
➤ इस अपवाद के अलावा जिला विविध आकार-प्रकार के बालू के टीबों का असीम सागर सा दिखाई पड़ता है।
➤ सबसे बड़े टीबे रामगढ़ व सम उप तहसीलों में पाये जाते हैं।
➤ इनमें से अधिकांश स्थिर पहाड़ जैसे प्रतीत होते हैं।
➤ डेढ़ा के निकटवर्ती क्षेत्र तथा पोकरण तहसइील के लगभग आधे भग मं भूमि बजरी पत्थर वाली हैं।
➤ पोकरण तहसील में 61 से 107 मीटर तक की ऊँचाई वाली पहाड़ियां हैं जो खेजड़ी तथा बोरड़ी से ढकी रहती है।
➤ जिले में एक भी बारहमासी नदी नहीं हैं, जैसलमेर नगर के आस-पास कुछ बरसाती नाले हैं।
➤ इनमें से काकनी नाला जैसलमेर से 22 किमी दूर हैं, आरंभ में यह उत्तर दिशा की ओर बहता है और फिर पश्चिम में मुड़ जाता है व अंत में बुज ग्राम के निकट झील का आकार ले लेता है जिसे ‘‘बुज झील’’ कहा जाता है।
➤ जैसलमेर का गौरवशाली दुर्ग त्रिभुजाकार पहाड़ी पर स्थित है।
➤ इसकी सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर परकोटे पर तीस-तीस फीट ऊँचा है।
➤ यह किला और इसमें स्थित सैकड़ों आवासीय भवन पीले पत्थरों से बने हुए हैं, अतः यह अस्वर्णिम आभा बिखेरता है इसलिए ‘‘सोनार किला’’ के नाम से पुकारा जाता है।
➤ जैसलमेर का दुर्ग राजस्थान के विशालतम दुर्गों में से एक है।
➤ यह संभवतया अपने आप में अकेला दुर्ग है, जो 815 वर्षीय इतिहास के घटनाक्रमों के थपेड़ों को सहने के उपरान्त भी अभी तक आबाद है।
➤ इस ऐतिहासिक किले के भीतर आज भी ढाई हजार से अधिक नागरिक रहते हैं।
➤ इसमें पूर्वाेन्मुख विशाल द्वार से पत्थरों की सड़क के सहारे अखेपोल, सूरज पोल, गणेश पोल एवं हवा पोल को पार करते हुए पहुंचा जाता है।
➤ हवा पोल पार करे ही दुर्ग स्थित रंग महल, गज विलास, मोती महल, सर्वोत्तम विलास आदि कलात्मक इमारतें दृष्टिगोचर होती है।
➤ इन इमारतेों पर की गई बारीक खुदाई एवं आकर्षक भिति चित्र दर्शनीय है।
➤ दुर्ग में अनेक वैष्णव मंदिरों के अलावा स्थापत्य एवं शिल्प कला के सजीव केन्द्र के रूप में जैन मन्दिर बने हुए हैं।
➤ यहां प्रति वर्ष हजारों जैन धर्मावलम्बी व पर्यटक आते हैं।
➤ पत्थरों पर कलात्मक खुदाई कर बनाई गयी देव प्रतिमाएं इन जैन मन्दिरों का सौंन्दर्य हैं।
➤ इन मंदिरों में शिल्प कला व उत्कृष्ट नक्काशी देखने लायक है।
➤ लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर अपने सोन व चांदी कपाटों के कारण विशेष महत्व रखता है।
➤ दुर्ग स्थित जैन मन्दिरों के तहखानों में ‘जिन भद्र सूरि-ज्ञान-भण्डार’ बना हुआ है।
➤ इसमें बहुत सी प्राचीन पुस्तकों का भण्डार है जो संस्कृत, मगधी, पाली, गुजराती, मालवी, डिंगल व अन्य कई भाषाओं में अनेक विषयों पर लिखे गये हैं।
➤ जिन भद्रसूरि ज्ञान भण्डार प्राचीन ताड़ पत्रों व कागजी पुस्तकों एवं ग्रंथों के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है।
➤ यहां पर हस्लिखित सरस्वती स्रोत, पांच फीट ऊँचे व चार फीट चौड़े कांच में मढा कर रखा हुआ है।
➤ जैसलमेर शहर का प्रत्येक मकान कलात्मक खुदाई एवं इनमें बने झरोखों से सुसज्जित है।
➤ यही काराण् है कि जैसलमेर नगर हवेलियों व झरोखों की नगरी के नाम से भी विख्यात है।
➤ यहां ऐसी काई भी गली एवं मोहल्ला नहीं है जिसके प्राचीन भवनों में शिल्पकारों ने अपनी कला का प्रयोग न किया हो।
➤ इनमें से पटवों की हवेलियां, सालमसिंह की हवेली, नथमल की हवेली तो कलात्मकता के लिए सर्व सुविख्यात है।
➤ इनका निर्माण 18 वीं से 20 वीं शताब्दी के मध्य का है।
➤ पटवा हवेलियों को पांच भाइयों ने मिल कर बनाया था।
➤ इन पांचों हवेलियों के झरोखे अनुपम व उत्कृष्ट नक्काशी से युक्त है।
➤ हवेलियों का जालीदार स्वरूप अपने आप में एक आकर्षक अजूबा हैं हवेलियों में बनी लकड़ी की छतें, दरवाजे, हाथी दांत व सोनी की कलम की चित्रकारी, कांच का कार्य, भित्ति चित्र देखने लायक हैं।
➤ गगन चुम्बी पांच-पांच मंजिला, पटवा हवेलियों में आदर्श गृहस्थी के लिए अलग-अलग उपयोगों के लिए भवन बने हुए हैं।
➤ इनमें से दो हवेलियां राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन हैं तो तीन पटवा परिवारों के पास है।
➤ नथमल की हवेली एक सुन्दर भवन, कठोर पाषाण में कोमल, कशीदाकारी के कारण नक्काशी की कला में दक्षता का उत्कृष्ट नमूना है।
➤ सालमसिंह की हवेली यहां के श्रेष्ठतम भवनों में से एक है। इस 6 मंजिला भवन पर, सुपरिष्कृत अलंकरण हैं।
➤ विशेषकर सबसे ऊपर की मंजिल पर एक शानदार चमकीला, नीला गुम्बद आकाश में होड़ करता नजर आता है।
➤ इन दोनों नक्काशीदार सुन्दर हवेलियों का निर्माण रियासत के दीवानों ने कराया था।
➤ सालमसिंह की हवेली को मोतीमहल भी कहते हैं जिसमें उत्कृष्ट कोटि की चित्रकारी दीवारों पर आज भी है।
➤ जैसलमेर शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित पवित्र गड़सीसर सरोवर अपने कलात्मक प्रवेश द्वार तथा जलाशय के मध्य स्थ्तिा सुन्दर छतरियेां व इसके किनारे बनी बगीचियों के कारण प्रसिद्ध है।
➤ सन् 1965 से पहले यही जैसलमेर वासियों का प्रमुख पेयजल स्त्रोत था।
➤ इस कृत्रिम सरोवर का निर्माण रावल गड़सी ने सन् 1340 में कराया था।
➤ सरोवर के मुख्य प्रवेश द्वार स्थित विशाल द्वार सन् 1909 में तत्कालीन टीलां नाम की वैश्या ने कराया था।
➤ टीला नामक इस लोक कल्याणकारी भावना वाली वैश्या ने उस समय जल की उपयोगिता एवं महत्व को देखते हुए गड़सीसर जलाशय को एक आकर्षक द्वार से सजाने का निश्चय किया।
➤ कपितय पोंगा पंथियों ने राजा के कान भर कर इस द्वार को तुड़वाने की भी योजना बनाई, परन्तु टीलां ने इस द्वार के ऊपर एक मन्दिर का निर्माण करवा कर इसे विवादास्पद होने से बचा लिया।
➤ टीलां की यादगार बना यह पीत पाषाणों का कलात्मक द्वार सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
➤ गड़सीसर सरोवर के किनारे पर ही जैसलमेर लोक सांस्कृतिक संग्रहालय हैं इस निजी संग्रहालय को एन.के. शर्मा ने स्थापित किया।
➤ इसमें जैसलमेर के इतिहास संबंधी दस्तावेज, लोक संस्कृति, लोक वादकों, लोक वस्तुओं, वस्त्रों चित्रों जीवाश्मों, ऊँट श्रृंगार सामग्री सिक्कों, पट्टों, पत्रों, मूमल महल के दर्शन होते हैं।
➤ लौद्रवा के रास्ते में जैलसमेर से पांच किमी दूर अमर सागर तालाब और उसके उद्यान स्थित है।
➤ तालाब के किनारे सुन्दर जैन मंदिर बना है, जिसका निर्माण सन् 1871 में बाफना हिम्मतराम ने कराया था।
➤ अमर सागर का निर्मााण् महारावल अमरसिंह ने वि.सं. 1748 में करवाया थां सरोवर में वैश्याओं द्वारा बनाई गयी गवावें हैं।
➤ एक ओर अमर नाम है, जिसमें छतरियां तथा पेड़ पर्शनीय हैं। अमर सागर पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों के लिए अवकाश मनोरंजन स्थल है।
➤ जैसलमेर से 5 किमी दूर रामगढ़ रोड़ पर स्थित बड़ा बाग जैसलमेर के महारावलों के श्माशन पर बने कलात्मक छतरी-स्मारकों के लिए विख्यात है।
➤ यहां जैतसर (महारावल जैतसिंह द्वारा 1585 में निर्मित) सरोवर है।
➤ सरोवर के दूसरे किनारे तहलटी में बाग बना हुआ है।
➤ बाग में आम के सुन्दर विशाल वृक्ष हैं तो अन्य वृक्ष भी हैं।
➤ मरू भूमि के नखलिस्तान इस बड़ा बाग के ऊपरी भाग पर दिवंगत ऐतिहासिक पुरूषों की कलात्मक छतरियां हैं।
➤ बड़ा बाग में क्षेत्रपाल जी का मंदिर भी है।
➤ जैसलमेर-सम मार्ग पर स्थित मूल सागर यद्यपि आज अपना सरोवरीय स्वरूप खो चुका है, किन्तु इस पर स्थित बाग व इसमें बनाये गये कृत्रिम झरने कश्मीर के निशात एवं शालीमार बाग की हल्की झलक देते हैं।
➤ इस बाग में लगने वाले पुष्प एवं फल वृक्षों को देख कर यह बात सिद्ध होगी है कि यदि पानी की समुचित व्यवस्था की जाये तो इस भूमि एवं जयवायु में प्रायः अधिकांश भारतीय फल फूलों का उत्पादन करने की क्षमता है।
➤ इसका निर्माण महारावल मूलराज ने कराया था।
➤ मूल सागर का रोकड़िया गणपति मंदिर भी दर्शनीय हैं जैसलमेर से दस किमी. दूर चूंधी तीर्थ है।
➤ इसे प्राचीन च्यवन ऋषि के आश्रम होने का गौरव प्राप्त हैं यहां पर काक नदी में गणेश मंदिर तथा ऊपरी भाग में देवी मंदिर हैं
➤ जैसलमेर शहर के उत्तरी-पूर्वी भाग पर स्थित गजरूप सागर जल संग्रह की सुन्दर भूमिगत व्यवस्था का प्रतीक है।
➤ इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने कराया। इसमें किनारे पर चैकियां बनी हैं।
➤ इसके सामने भारती बाबा का मठ है।
➤ गजरूप सागर के पास स्थित पहाड़ी पर देवी स्वांगिया जी का मंदिर हैं गजरूप सागर पर बनी इमारतों में कला व सौष्ठव देखने लायक हैं।
➤ जैसलमेर से 16 किमी दूर स्थित लौद्रवा राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं विदेशी आक्रमणों के शिकार लौद्रवा के भगनावशेषों में कुछ धार्मिक स्थलों का जीर्णाद्धार जैन धर्मावलम्बियों ने किया। ➤ फलस्वरूप लाद्रवा जैन संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया है। लौद्रवा के इतिहास में इस बात के संकेत मिलते हैं कि यहां स्थित हिंगलाज माता के मंदिर में सम्राट अकबर ने भी पूजन किया।
➤ लौद्रवा के भव्य चिन्तामणी पाश्र्वनाथ जी के जैन मंदिर का निर्माण थारूशाह भंसाली ने कराया।➤ इस मंदिर की कला देखते ही बनती है।
➤ इस मंदिर के मुख्य द्वार पर तोरण द्वार प्राचीन भारतीय कला का अनूठा उदाहरण हैं मंदिर में कलात्मक आरपार जालियों का काम हैं इसके पास ही ‘‘कल्पवृक्ष’’ का कृत्रिम स्वरूप बना है। ➤ लकड़ी के इस वृक्ष पर पत्ते, फल और पक्षी बने हैं।
➤ इसके अलावा लौद्रवा जो कि काक नदी के किनारे बासा था, युगल प्रणय जोड़ी मूमल-महेन्द्र का प्रणय स्थल था।
➤ शुष्क काक नदी के किनारे मूमल मेड़ी के भग्नावशेष आज भी इस अमर प्रेम गाथा को प्रमाणित करते हैं।
➤ जैसलमेर से 15 कि.मी. दूर स्थित वैशाखी तीर्थ तथा 12 किमी दूर रामकुण्डा भी दर्शनीय एवं धार्मिक स्थल हे।
➤ जैसलमेर के पश्चिम में 42 किमी दूर से थार मरूस्थल के विशाल रेतीले टीले का क्षेत्र प्रारंभ होता हैं।
➤ भारत-पाक सीमा के दूसरे छोर तक पर्वतों से होड़ लेते टीलों की यह श्रृंखला निरन्तर रहती है।
➤ सम स्थित ये बालू के पर्वत हिमालय की रूपहली हिमाच्छादित चोटियों के विपरीत बालू के स्वर्णिम पहाड़ों का सा आभास देते हैं।
➤ वहां टीलों के शिखर परखड़े होने वाले पर्यटकों को बालू के ग्लेशियर तथा दूसरी ओर बालू बनती गिड़तीलहरों व आकृतियों में सागर की उतांग लहरों का भी एक ही समय में आभास होता है।
➤ सम के रेतीले टीले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।
➤ ऊँट सफारी का आनंद तथा सूर्यास्त के दर्शन सुखद होते हैं।
➤ सम ही तरह ही जैसलमेर से 45 किमी दूर खुहड़ी गांव के निकट स्थित विशाल रेतीले टीले भी पर्यटकों की पसंद हैं।
➤ खुहड़ी में भी ऊँट सफारी व सूर्यास्त का आनंद लिया जा सकता है।
➤ जैसलमेर से 110 किमी दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर पोकरण जिले का प्रमुख कस्बा है।
➤ पोकरण कस्बे की संरचना मजबूतदीवारों से की गयी थी, जिसमें राम पोल, सूरज पोल, कुम्हारो की पोल, चांद पोल आदि थीं ये अब ध्वस्तावस्था में है।
➤ पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित सुन्दर दुर्ग है।
➤ इसका निर्माण सन् 1550 में राव मालदेव ने कराया थां किले का मंगल निावस, संग्रहालय, तोपें, द्वार, बुर्जियां, सुरक्षात्मक दीवार देखने लायक है।
➤ पोकरण में ही 14 वीं शताब्दी में निर्मित बालीनाथ जी का मठ है।
➤ यह स्थल बाबा रामदेव के गुरूकुल के रूप में विख्यात हैं मठ में बालीनाथ, भैरव राक्षस की प्रतिमाएं हैं।
➤ पोकरण से एक किमी दूर बनी प्राचीन कलात्मक छतरियां देखने लायक हैं।
➤ पोकरण में लाल पत्थरों से बनी कलात्मक हवेलियों में शिल्प वैभव देखते ही बनता है।
➤ पोकरण के पास आशापूर्णा मंदिर, खींवज माता का मंदिर, कैलाश टेकरी दर्शनीय है।
➤ पोकरण से तीन किमी दूर स्थित सातलमेर केा पोकरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं सातलमेर में अब भग्नावशेष हैं।
➤ इसके पास ही भैरव की गुफा हैं कहते हैं बाबा रामदेव ने इसी गुफा में सन् 1451 में भैरव का वध कर उसे धकेल दिया था।
➤ जैसलमेर-बीकानेर मार्ग पर जैसलमेर से 125 किमी दूर रामदेवरा गांव हैं।
➤ इसे रूणिचा भी कहा जाता है।
➤ रामदेवरा तीर्थ सभी धर्मों के लोगों की आराध्य स्थली हैं इस स्थान पर बाबा रामदेव की समाधि है।
➤ इसी मंदिर परिसर में रामदेव की शिष्या डाली बाई की समाधि है।
➤ कोई साढ़े छह सौ साल पूर्व इसी स्थाान पर बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी।
➤ उन्होंने अछुतोद्धार व मानव कल्याण के अनेक कार्य किये।
➤ वे सर्वमान्य लोक देवता के रूप में पूजित हैं।
➤ लोक तीर्थ रामदेवरा में रामदेव सरोवर, गुरूद्वारा, रामदेव जन्म स्थान परचा बावड़ी आदि दर्शनीय स्थल है।
➤ इस लोक तीर्थ पर विभिन्न जाति सम्प्रदायों की 200 से अधिक धर्म शालाएं हैं।
➤ जैसलमेर से लगभग 120 किमी दूर स्थित तनोट, भूतपूर्व रियासत के शासकों की प्राचीनतम राजधानी होने का गौरव रखता है।
➤ इन्होंने बाद में लौद्रवा अपनी राजधानी बनायां यहां तनोट देवी का मंदिर है।
➤ जो जैसलमेर के भूतपूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती हैं।
➤ इस देवी मंदिर में वर्तमान में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं, अतः यह सेना के जवानों की देवी के रूप में विख्यात हैं।
➤ इन्हें थार की वैष्णो देवी भी कहते है।
➤ तनोट से 9 किमी दूर घंटियाली माता का मंदिर है।
➤ तनोट में देवी मंदिर के सामने भारत-पाकिस्तान के 1965 के युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक विजय स्तम्भ भी स्थापित है।
➤ इसी मंदिर के आस-पास युद्ध के दौरान भारी मात्रा में गोले बरसाये गये थे पर मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा।
➤ जैसलमेर जिले में कुलधरा, खाभा, काठोड़ी, बासनपीर, जसुराणा, जाजिया जैसे कई गांव हैं, जो पालीवालों के गांव के नाम से जाने जाते हैं।
➤ जैसलमेर रियासत के दीवान सालमसिंह के अत्याचारों से त्रस्त होकर 84 गांवों में बसे पालीवाल जाति के लोग पलायन कर गये थे।
➤ कुलधरा व खाभा ऐसे ही वीरान गांव हैं एवं पालीवालों के मकानों के व खण्डहर, भवन, सरोवर, मंदिर, छतरियां, पशुओं के स्थान आदि पालीवाल ब्राह्मणों की समृद्ध संस्कृति के परिचायक के रूप में आज भी अपने निर्माताओं की कहानी सुना रहे हैं।
➤ ये खण्डहर गांव आज शोधकर्ताओं व फिल्म निर्माताओं के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं।
➤ जैसलमेर विकास समिति के माध्यम से कुलधरा एवं खाभा में पालीवाल संस्कृति के अनुरूप कुछ जीर्णोद्धार कार्य करवाया गया है।
➤ जैसलमेर के दक्षिण-पश्चिम में थार के मरूस्थल के तीन हजार वग्र किमी क्षेत्र में फैला ‘राष्ट्रीय मरू उद्यान’ मरू भूमि की वनस्पति, वन्य जलीव और रेतीले भू-भाग के लिए विख्यात है।
➤ सम के विश्व प्रसिद्ध रेतीले धोरे इसी उद्यान के क्षेत्र में हैं।
➤ राष्ट्रीय मरू उद्यान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें दुर्लभ गौडावन पक्षी पाया जाता है।
➤ इसके अलावा मरू लोमड़ी, चिंकारा आदि वन्य जीव बहुतायत में पाये जाते हैं।
➤ ककर, शिप्रचता, गौरा तीतर, पाटल सारिक, तिलोर, कुरजां, चील बाज गरूड़ जैसे पक्षी भी बहुतायत में देखने को मिलते हैं।
➤ ककर पक्षी शीतकालीन अक्टूबर से फरवरी तक रहता है तो पाटल पक्षी टिड्डियों को समाप्त करता है।
➤ जैसलमेर जिले में वेसे तो कई मेले लगते है, परन्तु जैलसमेर से 125 किमी दूर स्थित् लोक तीर्थ रामदेवरा में लगने वाले मेले का विशेष महत्व है।
➤ प्राप्त यह मेला माघ और भाद्रपद महिनों के शुक्ल पक्ष में दूज से एकादशी तक लगता है।
➤ बाबा रामेदव सर्वमान्य लोक देवता है, जिनको हिन्दू रामदेव बाबा के नाम से तो मुसलमान ‘राम सा पीर’ के नाम से पूजते हैं।
➤ बाबा रामदेव मध्यकालीन भारत के प्रगतिाशील विचारक थे।
➤ जिन्होंने आज से कोई साढ़े छः सौ वर्ष पूर्व समाज में फैले विद्वेष और कुरीतियों को मिटाने का बीड़ा उठाया।
➤ साम्प्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाया तथा अछुतोद्धार की अलख जगायी।
➤ जन आस्थाओं के अनुसार बाबा रामदेव द्वारकाधीश श्री कृष्ण के अवतार थे।
➤ रामदेवरा में भाद्रपद माह में लगने वाला मेला जिले का सबसे बड़ा मेला हे।
➤ इसमें राजस्थान सहित अध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि प्रांतों से सभी धर्मों के श्रद्धालु पहुंचते है।
➤ बाबा रामदेव की समाधि पर लकड़ी व कपड़े से बने घोड़े व ध्वजाएं चढ़ाते हैं।
➤ एक अनुमान के अनुसार रामदेवरा के भादो के मेले में दस लाख से अधिक श्रद्धालु आ जाते हैं।
➤ इस प्रकार मरू संस्कृति का परिचायक तीन दिवसीय मरू मेला जैसलमेर में हर साल माघ सुदी 13 से पूर्णिमा तक लगता हैं।
➤ पर्यटन विभाग की ओर से सन् 1979 से प्रति वर्ष आयोजित हो रहा यह मेला अब लोकोत्सव का रूप ले चुका है।