राजपूतों का यह बलिदान चित्तौड़ के प्रथम साके के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें गोरा-बादल की वीरता एक अमर कहानी बन गयी।
रत्नसिंह के पश्चात् सिसोदिया के सरदार हम्मीर ने मेवाड़ को दयनीय स्थिति से उभारा। वह राणा शाखा का राजपूत था।
राणा लाखा (1382-1421) के समय उदयपुर की पिछोला झील का बांध बनवाया गया था। लाखा के निर्माण कार्य मेवाड़ की आर्थिक स्थिति तथा सम्पन्नता को बढ़ाने में उपयोगी सिद्ध हुए।
लाखा के पुत्र मोकल ने मेवाड़ को बौद्धिक तथा कलात्मक प्रवृत्तियों का केन्द्र बनाया।
उसने चित्तौड़ के समिधेश्वर (त्रिभुवननारायण मंदिर) मंदिर के जीर्णोद्धार द्वारा पूर्व मध्यकालीन तक्षण कला के नमूने को जीवित रखा।
उसने एकलिंगजी के मंदिर के चारों ओर परकोटा बनवाकर, उस मंदिर की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की।