राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-6)
पूर्व मध्यकाल में विभिन्न राजपूत राजवंशों का उदय
- प्रारम्भिक राजपूत कुलों में जिन्होंने राजस्थान में अपने-अपने राज्य स्थापित किये थे, उनमें मेवाड़ के गुहिल,मारवाड़ के गुर्जर प्रतिहार और राठौड़, सांभर के चौहान तथा आबू के परमार, आम्बेर के कछवाहा, जैसलमेर के भाटी आदि प्रमुख थे।
मेवाड़ के गुहिल
- इस वंश के आदिपुरुष गुहिल थे। इस कारण इस वंश को गुहिलवंशीय कहा गया।
- गौरीशंकर हीराचन्द ओझा गुहिलों को विशुद्ध सूर्यवंशीय मानते हैं, जबकि डी. आर. भण्डारकर के अनुसार मेवाड़ के राजा ब्राह्मण थे।
- गुहिल के बाद मान्य प्राप्त शासकों में बापा का नाम प्रमुख है। डाॅ. ओझा के अनुसार बापा इसका नाम न होकर कालभोज की उपाधि थी। बापा का एक सोने का सिक्का भी मिला है, जो 115 ग्रेन का था।
- अल्लट, जिसे ख्यातों में आलुरावल कहा गया है, 10वीं सदी के लगभग मेवाड़ का शासक बना। उसने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया था तथा उसके समय में आहड़ में वराह मन्दिर का निर्माण कराया गया था।
- आहड़ से पूर्व गुहिल वंश की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र नागदा था।
मारवाड़ के गुर्जर-प्रतिहार
- प्रतिहारों द्वारा अपने राज्य की स्थापना सर्वप्रथम राजस्थान में की गई थी।
- जोधपुर के शिलालेखों से प्रमाणित होता है कि प्रतिहारों का अधिवासन मारवाड़ में लगभग छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में हो चुका था।
- चूँकि उस समय राजस्थान का यह भाग गुर्जरत्रा कहलाता था, इसलिए चीनी यात्री युवानच्वांग ने गुर्जर राज्य की राजधानी का नाम पीलो मोलो (भीनमाल) या बाड़मेर बताया है।
- मुँहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का उल्लेख किया है, जिनमें मण्डौर के प्रतिहार प्रमुख थे।
- इस शाखा के प्रतिहारों का हरिश्चन्द बड़ा प्रतापी शासक था, जिसका समय छठी शताब्दी के आसपास माना जाता है।
- जालौर-उज्जैन-कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों की नामावली नागभट्ट से आरंभ होती है, जो इस वंश का प्रवर्तक था।
- उसे ग्वालियर प्रशस्ति में ‘म्लेच्छों का नाशक’ कहा गया है। इस वंश में भोज और महेन्द्रपाल को प्रतापी शासकों में गिना जाता है।
आबू के परमार
- ‘परमार’ शब्द का अर्थ शत्रु को मारने वाला होता है।
- प्रारंभ में परमार आबू के आस-पास के प्रदेशों में रहते थे। परन्तु प्रतिहारों की शक्ति के हृास के बाद इन्होंने मारवाड़, सिन्ध, गुजरात, वागड़, मालवा आदि स्थानों में अपने राज्य स्थापित कर लिये।
- आबू के परमारों का कुल पुरुष धूमराज थे परन्तु परमारों की वंशावली उत्पलराज से आरंभ होती है।
- परमार शासक धंधुक के समय गुजरात के भीमदेव ने आबू को जीतकर वहाँ विमलशाह को दण्डपति नियुक्त किया।
- विमलशाह ने आबू में 1031 में आदिनाथ का भव्य मन्दिर बनवाया था।
- धारावर्ष आबू के परमारों का सबसे प्रसिद्ध शासक था। धारावर्ष का काल विद्या की उन्नति और अन्य जनोपयोगी कार्यों के लिए प्रसिद्ध है।
- इसका छोटा भाई प्रह्लादन देव वीर और विद्वान था। उसने ‘पार्थ-पराक्रम-व्यायोग’ नामक नाटक लिखकर तथा अपने नाम से प्रहलादनपुर (पालनपुर) नामक नगर बसाकर परमारों के साहित्यिक और सांस्कृतिक स्तर को ऊँचा उठाया।
- धारावर्ष के पुत्र सोमसिंह के समय में, जो गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव द्वितीय का सामन्त था, वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल ने आबू के देलवाड़ा गाँव में लूणवसही
- नामक नेमिनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया था।
- मालवा के भोज परमार ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मन्दिर बनवाकर अपनी कला के प्रति रुचि को व्यक्त किया।
- वागड़ के परमारों ने बाँसवाड़ा के पास अर्थूणा नगर बसा कर और अनेक मंदिरों का निर्माण करवाकर अपनी शिल्पकला के प्रति निष्ठा का परिचय किया।
सांभर के चौहान
- चौहानों के मूल स्थान के संबंध में मान्यता है कि वे सपादलक्ष एवं जांगल प्रदेश के आस-पास रहते थे। उनकी राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी।
- सपादलक्ष के चौहानों का आदि पुरुष वासुदेव था, जिसका समय 551 ई. के लगभग अनुमानित है।
- बिजौलिया प्रशस्ति में वासुदेव को सांभर झील का निर्माता माना गया है। इस प्रशस्ति में चौहानों को वत्सगौत्रीय ब्राह्मण बताया गया है।
- प्रारंभ में चैहान प्रतिहारों के सामन्त थे परन्तु गुवक प्रथम, जिसने हर्षनाथ मन्दिर का निर्माण कराया, स्वतन्त्र शासक के रूप में उभरा।
- इसी वंश के चन्दराज की पत्नी रुद्राणी यौगिक क्रिया में निपुण थी। ऐसा माना जाता है कि वह पुष्कर झील में प्रतिदिन एक हजार दीपक जलाकर महादेव की उपासना करती थी।
- 1113 ई. में अजयराज चैहान ने अजमेर नगर की स्थापना की।
- उसके पुत्र अर्णोराज (आनाजी) ने अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाकर जनोपयोगी कार्यों में भूमिका अदा की।
- चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ का काल सपादलक्ष का स्वर्णयुग कहलाता है। उसे वीसलदेव और कवि बान्धव भी कहा जाता था। उसने ‘हरकेलि’ नाटक और उसके दरबारी विद्वान सोमदेव ने ‘ललित विग्रहराज’ नामक नाटक की रचना करके साहित्य स्तर को ऊँचा उठाया। विग्रहराज ने अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया। जिस पर आगे चलकर कुतुबुद्दीन ऐबक ने ‘ढाई दिन का झोंपड़ा’ बनवाया।
- विग्रहराज चतुर्थ एक विजेता था। उसने तोमरों को पराजित कर ढिल्लिका (दिल्ली) को जीता। इसी वंशक्रम में पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने राजस्थान और उत्तरी भारत की राजनीति में अपनी विजयों से एक विशिष्ट स्थान बना लिया था।
- 1191 ई. में उसने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी को परास्त कर वीरता का समुचित परिचय दिया। परन्तु 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में जब उसकी गौरी से हार हो गई।
काम के नोट्स: