History of Rajasthan (Important facts for RPSC exams) Part-8

History of Rajasthan (Important facts for RPSC exams) Part-8

राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-8)

राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंश

गुहिल-सिसोदिया वंश

राणा कुंभा (1433 -1468)

  • मोकल के पुत्र राणा कुंभा (1433 -1468) का काल मेवाड़ में राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए जाना जाता है।
  • कुंभा को अभिनवभरताचार्य, हिन्दू सुरताण, चापगुरु, दानगुरु आदि विरुदों से संबोधित किया जाता था।
  • राणा कुंभा ने 1437 में सारंगपुर के युद्ध में मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित किया था।
  • इस विजय के उपलक्ष्य में कुंभा ने अपने आराध्यदेव विष्णु के निमित्त चित्तौड़गढ़ में नौ मंजिला प्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ (विजयस्तंभ) का निर्माण करवाया।
  • कुंभा ने मेवाड़ की सुरक्षा के उद्देश्य से 32 किलों का निर्माण करवाया था, जिनमें बसन्ती दुर्ग, मचान दुर्ग, अचलगढ़, कुंभलगढ़ दुर्ग प्रमुख हैं।

    • कुंभलगढ़ दुर्ग का सबसे ऊँचा भाग कटारगढ़ कहलाता है। कुंभाकालीन स्थापत्य में मंदिरों का बड़ा महत्त्व है। ऐसे मन्दिरों में कुंभस्वामी तथा शृंगारचैरी का मंदिर (चित्तौड़), मीरां मंदिर (एकलिंगजी), रणकपुर का मंदिर अनूठे हैं।
    • कुंभा वीर, युद्धकुशल, कलाप्रेमी के साथ-साथ विद्वान एवं विद्यानुरागी भी था। एकलिंगमहात्म्य से ज्ञात होता है कि कुंभा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद्, व्याकरण, साहित्य, राजनीति में बड़ा निपुण था।
    • संगीतराज, संगीत मीमांसा एवं सूड़ प्रबन्ध कुंभा द्वारा रचित संगीत ग्रंथ थे। कुंभा ने चण्डीशतक की व्याख्या, गीतगोविन्द की रसिकप्रिया टीका और संगीत रत्नाकर की टीका लिखी थी।
    • कुंभा का दरबार विद्वानों की शरणस्थली था। उसके दरबार में मण्डन (प्रख्यात शिल्पी), कवि अत्रि और महेश, कान्ह व्यास इत्यादि थे।
    • अत्रि और महेश ने कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति की रचना की तथा कान्ह व्यास ने एकलिंगमहात्य नामक ग्रंथ की रचना की।

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