राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-13)
राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंश
कछवाहा वंश भाग—2
सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743)
- कछवाहा शासकों में सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743) का अद्वितीय स्थान है। वह राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, खगोलविद्, विद्वान एवं साहित्यकार तथा कला का पारखी था। वह मालवा का मुगल सूबेदार रहा था।
- जयसिंह ने मुगल प्रतिनिधि के रूप में बदनसिंह के सहयोग से जाटों का दमन किया। सवाई जयसिंह ने राजपूताना में अपनी स्थिति मजबूत करने तथा मराठों का मुकाबला करने के उद्देश्य से 17 जुलाई, 1734 को हुरड़ा (भीलवाड़ा) में राजपूत राजाओं का सम्मेलन आयोजित किया।
- इसमें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, किशनगढ़, नागौर, बीकानेर आदि के शासकों ने भाग लिया था परन्तु इस सम्मेलन का जो परिणाम होना चाहिए था, वह नहीं हुआ, क्योंकि राजस्थान के शासकों के स्वार्थ भिन्न-भिन्न थे।
- सवाई जयसिंह अपना प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से बूँदी के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर स्वयं वहाँ का सर्वेसर्वा बन बैठा, परन्तु बूँदी के बुद्धसिंह की पत्नी अमर कुँवरि ने, जो जयसिंह की बहिन थी, मराठा मल्हारराव होल्कर को अपना राखीबन्द भाई बनाकर और धन का लालच देकर बूँदी आमंत्रित किया जिससे होल्कर और सिन्धिया ने बूँदी पर आक्रमण कर दिया।
- सवाई जयसिंह संस्कृत और फारसी का विद्वान होने के साथ गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पण्डित था।
- उसने 1725 में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुगल सम्राट के नाम पर ‘जीजमुहम्मदशाही’ नाम रखा। उसने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की।
- सवाई जयसिंह की महान् देन जयपुर है, जिसकी उसने 1727 में स्थापना की थी। जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था।
- नगर निर्माण के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का अनूठा है, जिसकी समकालीन और वर्तमानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है।
- जयपुर में जयसिंह ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ़) किले का निर्माण करवाया तथा जयगढ़ किले में जयबाण नामक तोप बनवाई।
- उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पाँच वेधशालाओं (जन्तर-मन्तर) का निर्माण करवाया, जो ग्रह-नक्षत्रादि की गति को सही तौर से जानने के लिए बनवाई गई थी।
- जयपुर के जन्तर-मन्तर में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ‘सूर्य घड़ी’ है, जिसे ‘सम्राट यंत्र’ के नाम से जाना जाता है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है।
- धर्मरक्षक होने के नाते उसने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया।
- वह अन्तिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परम्परा के अनुकूल अश्वमेध यज्ञ किया। इस प्रकार सवाई जयसिंह अपने शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्याति प्राप्त व्यक्ति बन गया था, परन्तु वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर न उठ सका।
काम के नोट्स: