राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-12)
राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंश
कछवाहा वंश भाग—1
कछवाहा वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हैराय व पृथ्वीराज बडे़ प्रभावशाली थे जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था।
पृथ्वीराज, राणा सांगा का सामन्त होने के नाते खानवा के युद्ध (1527) में बाबर के विरुद्ध लड़ा था।
पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद 1547 में भारमल ने आमेर की बागडोर हाथ में ली।
भारमल ने उदयीमान अकबर की शक्ति का महत्त्व समझा और 1562 में उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर अपनी ज्येष्ठ पुत्री हरकूबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया।
अकबर की यह बेगम मरियम-उज्जमानी के नाम से विख्यात हुई। भारमल पहला राजपूत था जिसने मुसलमानों (मुगल) से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।
भारमल के पश्चात् कछवाहा शासक मानसिंहं अकबर के दरबार का योग्य सेनानायक था।
रणथम्भौर के 1569 के आक्रमण के समय मानसिंह और उसके पिता भगवन्तदास अकबर के साथ थे।
मानसिंह को अकबर ने काबुल, बिहार और बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था तथा उसे अकबर ने 7000 मनसब प्रदान किया था।
मानसिंह ने आमेर में शिलादेवी मन्दिर, जगतशिरोमणि मन्दिर इत्यादि का निर्माण करवाया।
इसके समय में दादूदयाल ने ‘वाणी’ की रचना की थी।
मानसिंह के पश्चात् के शासकों में मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667) महत्त्वपूर्ण था, जिसने 46 वर्षों तक शासन किया।
इस दौरान उसे जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे शाहजहाँ ने ‘मिर्जा राजा’ का खिताब प्रदान किया।
औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को मराठों के विरुद्ध दक्षिण भारत में नियुक्त किया था।
जयसिंह ने पुरन्दर में शिवाजी को पराजित कर मुगलों से संधि के लिए बाध्य किया। 11 जून,
1665 को शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरन्दर की संधि हुई थी, जिसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर शिवाजी ने मुगलों की सेवा में उपस्थित होने का वचन दिया।
इस प्रकार पुरन्दर की संधि जयसिंह की राजनीतिक दूरदर्शिता का एक सफल परिणाम थी। जयसिंह के बनवाये आमेर के महल तथा जयगढ़ और औरंगाबाद में जयसिंहपुरा उसकी वास्तुकला के प्रति रुचि को प्रदर्शित करते हैं।
इसके दरबार में हिन्दी का प्रसिद्ध कवि बिहारीमल था।