अजमेर की झीलें
आनासागर
दो पहाड़ियों के बीच में पाल डालकर सम्राट पृथ्वीराज के पितामह राजा अरणोराज अथवा आनाजी द्वारा 1135 ई. में निर्मित यह कृत्रिम झील शहर के अनुपम सौन्दर्य में अभिवृद्धि करती है। सम्राट जहांगीर ने इस झील के किनारे शही बाग बनवाया जिसका नाम दौलतबाग रखा गया। सम्राट शाहजहां ने सन् 1627 ई. में आनासागर की पाल पर 1240 फुट लम्बा कटहरा और संगमरमर की पांच बारहदरियां बनवाकर इसके सौन्दर्य में चार चांद लगा दिए।
फायसागर
सन् 1991—92 में अकाल राहत कार्यों के अन्तर्गत अजमेर नगर परिषद द्वारा 2 लाख 68 हजार रूपये की लागत से इस जलाशय का निर्माण कराया गया था। इसका नामकरण इसके निर्माणकर्ता अभियन्ता श्रीफाय के नाम पर किया गया। इस जलाशय में बांडी नदी का जल एकत्रित होता है। फायसागर की अधिकतम गहराई 26 फुट है। यहां से अजमेर नगर के लिए पेयजल का वितरण किया जाता है।
चश्मा—ए—नूर
तारागढ़ के पश्चिम की ओर घाटी के एक रमणीक स्थान का नाम चश्मा—ए—नूर है। बादशाह जहांगीर ने अपने नाम नुरूद्दीन जहांगीर से इसका नामकरण चश्मा—ए—नूर रखा। इस चश्मे का पानी अत्यन्त मीठा है।
पुष्कर झील
अर्ध चंद्राकार में फैली इस झील में बावन घाट हैं। उनमें वराह, ब्रह्मा और गौ घाट सर्वाधिक पवित्र माने जाते हैं। पौराणिक काल में गौ घाट को ही सर्वाधिक महत्व मिला हुआ था। कहा जाता है कि ईसा पश्चात 1809 में मराठा सरदारों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यही वह स्थान है जहां गुरू गोविन्द सिंह ने संवत् 1762 में गुरूग्रंथ साहब का पाठ किया। सन् 1911 ईस्वी पश्चात अंग्रेजी शासन में महारानी मेरी जब पुष्कर देखने आई तो उसने यहां महिलाओं के लिए पृथक् से घाट का निर्माण कराया। इसी स्थान पर महात्मा गांधी की अस्थियां प्रवाहित की गईं, तब से इसे गांधी जी घाट भी कहा जाता है।