ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह ख्वाजा साहब और गरीब नवाज के नाम से विश्वविख्यात है। यह दरगाह एक धार्मिक स्थल है जहां मुस्लिमों के साथ—साथ अन्य सभी धर्मों के भी लोग अपनी हाजिरी देने जाते हैं।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
अजमेर के प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 536 हिज़री संवत् या 1141 में पूर्व पर्षिया के सीस्तान क्षेत्र में हुआ और निधन 1236 ई॰ में हुआ। उनका पूरा नाम “ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन” है और चिश्तिया तरीक़े या सिलसिले के सूफी होने के कारण वे “चिश्ती” कहलाने लगे। दरअसल भारत में चिश्ती सिलसिले को स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। चिश्तिया तरीका अबू इसहाक़ शामी ने ईरान के शहर “चश्त” में शुरू किया था, इस लिए इस तरीक़े को “चश्तिया” या चिश्तिया तरीका नाम पड गया। यह तत्व या तरीक़ा आध्यात्मिक था, भारत भी एक आध्यात्म्कि देश होने के नाते, इस तरीक़े को समझा, स्वागत किया और अपनाया।
ख्वाजा साहब का उर्स
अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह जिन्हें अजमेर शरीफ भी कहा जाता है। यहां प्रति वर्ष रज्जब माह की एक से 6 तारीख तक उर्स मेला भरता है। देश के विभिन्न भागों से सभी धर्मों के धर्मावलम्बी इस मेले मे आते हैं। ख्वाजा साहब का उर्स चांद दिखाई देने पर दरगाह के बुलंद दरवाजे पर झंडा फहराने के साथ शुरू हो जाता है। रज्जब माह की एक तारीख से शाही महफिल खाने में रात 11 से सुबह तक आध्यात्मिक कव्वालियां होती हैं। यह कार्यक्रम 6 दिन तक चलता है। एक रज्जब से 6 रज्जब तक रात्रि को ख्वाजा साहब की मजार से गुसल की रस्म होती है। पहले चरण में खादिमों द्वारा केवड़े व गुलाब जल से मजार धोई जाती है फिर दरगाह दीवान व अन्य सूफी संतों को बुलाया जाता है जो मजार शरीफ को गुसल देते हैं। मजार शरीफ से उतरा गुलाब जल खादिम बोतलों में भरकर जायरीनों को भेंट में देते हैं। रज्जब की 6 तारीख को ख्वाजा साहब की बफात का दिन मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही जायरीन नमाज के बाद से ही दरगाह में आने लगते हैं। यहां गुलाब जल के छींटे मारे जाते हैं। इसे कुल के छींटे और कुल की रस्म भी कहा जाता है। तीन दिन बाद रज्जब की 9 तारीख को आखिरी गुसल की रस्म होती है। इसे बड़े कुल की रस्म करार दिया जाता है।