केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर
लगभग 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को भरतपुर पक्षी विहार के नाम से अधिक जाना जाता है। भरतपुर के तत्कालीन महाराजा द्वारा जंगली गायों को संरक्षित रखने के लिए इस घने जंगल को संरक्षित किया। इस घने जंगल की झीलों के आस—पास के वृक्षों पर देशी—विदेशी पक्षियों का जमावड़ा रहने लगा। जिससे यहां के महाराजाओं के लिए यह एक आखेट स्थल की तरह विकसित हो गया। यहां देशी विदेशी पक्षियों के आगमन एवं अन्य वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सन् 1956 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया। सन 1985 में यूनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर में शामिल किया। इस उद्यान में सर्दियों के मौसम में लगभग 350 प्रजातियों के देशी—विदेशी पक्षी आते हैं। जिनमें से 150 पक्षी विदेशी और 200 स्थानीय प्रजाति के होते हैं। देशी पक्षियों में पेन्टेड स्टार्क, ओपन स्टार्क, ओपन बिल स्टार्क, रेडबेन्टेड, बुलबुल, कारमोरेंट, किंगफिशर, इग्रेट, सारस, चकवा आदि प्रमुख हैं।
सर्दियां शुरू होते ही अफगानिस्तान, चीन, मध्य एशिया, साइबेरिया, यूरोप आदि देशों के ठंडे प्रदेशों में रहने वाले विदेशी मेहमान पक्षी वहां के प्रतिकूल मौसम से बचाव एवं भोजन की खोज में यहां चले आते हैं। लाखों की संख्या में आने वाले इन पक्षियों में कूटस, गीज, पीनटेल्स, शॉवलर, कॉमन क्रेन आदि प्रमुख हैं। इस उद्यान की ख्याति साइबेरिया के पश्चिमी क्षेत्रों से आने वाली लुप्त हो रही सारस की साइबेरियन प्रजाति के कारण से है। इनके आगमन में निरन्तर गिरावट दर्ज की जा रही है। इन सारसों की वंश वृद्धि के लिए अथक प्रयास किए जा रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सारस अनुसंधान केन्द्र में इन सारसों के अण्डों को कृत्रिम ताप देकर पैदा किए गए शिशुओं को इस उद्यान में लाने का प्रयोग भी किया गया है ताकि स्वत: उड़कर आए सारसों के साथ मिलकर ये अपने प्राकृतिक निवास स्थलों की ओर लौट सके लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हो सका। उद्यान में पक्षियों के अलावा चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, गीदड़, नेवाला और अजगर जैसे वन्य जीव भी हैं।