भरतपुर के ऐतिहासिक स्थल
लोहागढ़: भरतपुर के ऐतिहासिक किला लोहागढ़ दुर्ग अपनी विशिष्ट स्थापत्य शैली तथा अजेयता के कारण देश के कतिपय दुर्गों में अपना विशेष स्थान रखता है। कोई 250 वर्ष पूर्व निर्मित यह दुर्ग अपने निर्माण से लेकर भारत की स्वाधीनता तक निरन्तर अविजित रहा है जिसका प्रमुख कारण किले के बाहर चारों ओर बनी 100 फुट चौड़ी और 60 फुट गहरी खाई और इसके बाहर चारों ओर मिट्टी से बनी ऊंची दीवार है जिसे भेदकर कोई भी आक्रमणकारी इस पर विजय हासिल नहीं कर सका। सन 1805 में लार्ड लेक के नेतृत्व में यद्यपि इस दुर्ग पर मात्र एक माह की अवधि में चार बार भारी गोलाबारी की गई लेकिन इसके बाद भी किले पर विजय नहीं पाई जा सकी। लोहागढ़ दुर्ग के उत्तरी द्वार पर लगे किवाड़ महाराजा जवाहरसिंह द्वारा दिल्ली लूट के दौरान लाये गए थे। इनमें से एक द्वार जिसे अकबर के शासनकाल में चित्तौड़गढ़ के किले से लाया गया था अष्ठधातु से बना हुआ है।
भरतपुर संग्रहालय की स्थापना 11 नवम्बर 1944 को की गई थी। इस संग्रहालय में जिले के विभिन्न स्थानों पर समय—समय पर पुरातत्व द्वारा की गई खुदाइयों में वस्तुओं, चित्रों, पोशाकों, हस्तशिल्प की चीजों तथा अस्त्र—शस्त्र आदि का बेहतरीन संकलन है।