नागौर राजस्थान के निर्माण के पूर्व जोधपुर रियासत का एक भाग था। प्राचीन शिलालेखों तथा इतिहासविदों के अनुसार इसका प्राचीन नाम अहिछत्रपुर था।
इस नगर पर लगभग 2 हजार वर्षों तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा जिन्हें बाद में परमार राजपूतों ने पराजित किया। मुगल शासन के शक्तिहीन होेने के पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजाओं का नागौर पर अधिकार हो गया।
जोधपुर के तत्कालीन महाराजा गजसिंह प्रथम के वीर पुत्र अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण नागौर इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कृष्ण भक्त मीरा की जन्मस्थली मेड़ता भी इसी जिले में है।
विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक जम्भेश्वर जी का अवतार भी जिले के पीपासर गांव में हुआ था। नागौर जिले का खरनाल गांव लोक देवता तेजाजी की जन्मस्थली है।
इस नगर पर लगभग 2 हजार वर्षों तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा जिन्हें बाद में परमार राजपूतों ने पराजित किया। मुगल शासन के शक्तिहीन होेने के पश्चात् जोधपुर के राठौड़ राजाओं का नागौर पर अधिकार हो गया।
जोधपुर के तत्कालीन महाराजा गजसिंह प्रथम के वीर पुत्र अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण नागौर इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कृष्ण भक्त मीरा की जन्मस्थली मेड़ता भी इसी जिले में है।
विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक जम्भेश्वर जी का अवतार भी जिले के पीपासर गांव में हुआ था। नागौर जिले का खरनाल गांव लोक देवता तेजाजी की जन्मस्थली है।
आजादी के बाद व राजस्थान बनने पर नागौर को जिला मुख्यालय का दर्जा मिला तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर से ही पंचायती राज का श्री गणेश किया।
भौगोलिक स्थिति
नागौर जिला 25′.25’ से 73′.18’ से 75′.15′ पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। जिले का तीन चैथाई भाग रेगिस्तानी एवं अर्द्धमरूथलीय है तथा 1/2 भाग में पुरानी चट्टानों से निर्मित पहाड़ पाये जाते हैं।
नागौर जिले का कुल क्षेत्रफल 17718 वर्ग किलोमीटर है। जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का पांच प्रतिशत भाग है। जिले में वर्षा का वार्षिक औसत 38.86 सेन्टीमीटर है। जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1764475 हैक्टर है।
जिले में 243.8 वर्ग किलोमीटर सुरक्षित वन क्षेत्र है। जिले में पहाड़ी क्षेत्रों को हराभरा बनाने के लिए अरावली वृक्षारोपण परियोजना क्रियान्वित है।
जिले में 243.8 वर्ग किलोमीटर सुरक्षित वन क्षेत्र है। जिले में पहाड़ी क्षेत्रों को हराभरा बनाने के लिए अरावली वृक्षारोपण परियोजना क्रियान्वित है।
प्रशासनिक ढांचा
नागौर जिले में 12 उपखण्ड नागौर, मेड़ता, डीडवाना, परबतसर, जायल, डेगाना, नावां, लाडनूं, मकराना, खींवसर, रियां बड़ी, कुचामन सिटी है।
इसके अलावा नागौर, जायल, डीडवाना, लाडनूं, मेड़ता, डेगाना, परबतसर, नावां, रियां, कुचामन, मूण्डवा, मकराना, खींवसर और मौलासर सहित कुल 14 पंचायत समितियां हैं।
नागौर में 13 तहसीलें मेड़ता, डेगाना, जायल, डीडवाना, नावां, परबतसर, लाडनूं, नागौर, मकराना, कुचामन, रियां बड़ी, मुंडवा व खींवसर हैं।
जिले में नागौर में 1 नगर परिषद जबकि मेड़ता, मूण्डवा, मकराना, नावां, कुचेरा, परबतसर, लाडनूं, कुचामन, डेगाना व डीडवाना 10 नगरपालिकाएं हैं। जिले में कुल 467 ग्राम पंचायतें और 1631 राजस्व गांव हैं।
इसके अलावा नागौर, जायल, डीडवाना, लाडनूं, मेड़ता, डेगाना, परबतसर, नावां, रियां, कुचामन, मूण्डवा, मकराना, खींवसर और मौलासर सहित कुल 14 पंचायत समितियां हैं।
नागौर में 13 तहसीलें मेड़ता, डेगाना, जायल, डीडवाना, नावां, परबतसर, लाडनूं, नागौर, मकराना, कुचामन, रियां बड़ी, मुंडवा व खींवसर हैं।
जिले में नागौर में 1 नगर परिषद जबकि मेड़ता, मूण्डवा, मकराना, नावां, कुचेरा, परबतसर, लाडनूं, कुचामन, डेगाना व डीडवाना 10 नगरपालिकाएं हैं। जिले में कुल 467 ग्राम पंचायतें और 1631 राजस्व गांव हैं।
नागौर के ऎतिहासिक स्थल
नागौर दुर्ग
सोमेश्वर चैहान के सामन्त कैमोस ने विक्रम संवत् 1211 में नागौर दुर्ग का निर्माण करवाया था। इसकी प्राचीर में 28 विशाल बुजें बनी हुई है। यह किलो दोहरे परकोटे में बहुत ही सुदृढ़ बना हुआ है किले के भीतर महलों, कृत्रिम तालाब तथा बाग-बगीचे दुर्ग की मुख्य विशेषताएं हैं किले की प्राचीर पर गणेश मंदिर निर्मित है जहां प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय को मेला आयोजित होता है। यह किला वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ की शौर्य गाथाओं के कारण इतिहास में विशिष्ट स्थान एवं महत्व रखता है।
राव अमरसिंह की छतरी
नागौर में झड़ा तालाब में आई स्थित 16 कलात्मक खम्भों की बनी वीरवर राय अमरसिंह राठौड़ की छतरी बनी हुई है। विशाल मजबूत परकोटे में बनी यह कलात्मक छतरी और सामने एक कलात्मक बावड़ी है जो दर्शकों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
सूफी संत हमीदुद्दीन सुल्ताने तारीकीन की दरगाह
नागौर की पनाह में आई हुई 52 फीट बुलन्द दरवाजे की भव्यता लिये सूफी संत हमीदुद्दीन सुल्ताने तारीकीन साहब की दरगाह गिनाणी तालाब के पास स्थित है। दरगाह शरीफ की पीले पत्थर की बेजोड़ कलात्मक खुदाई पर्यटकों को आकर्षित करती है। राजस्थान में आयोजित होने वाले ख्वाजा साहब के उर्स के बाद यहां भी सालाना उर्स का आयोजन होता है। नागौर के दर्शनीय स्थलों में बंशीवाले का मंदिर, जैन मंदिरों में कांच का मंदिर तथा दिगम्बर जिनालय भी उल्लेखनीय है।
मेड़ता सिटी
यहां पर भक्त शिरोमणी मीरां बाई का विशाल मंदिर है। शहर के मध्य बने इस मंदिर का नाम चारभुजा नाथ मंदिर है। जिसका निर्माण मीरां बाई के पितमह राय दूदा द्वारा करवाया गया था। मीरा की क्रीड़ास्थली का गौरव भी इस भूमि को प्राप्त है। मंदिर में श्रावणी एकादशी से पूर्णिमा तक प्रतिवर्ष झूलोत्सव मेला आयोजित होता हैं मंदिर के नजदीक ही शाही जामा आरम्भ हुआ तथा औरगजेब के समय बनकर पूर्ण हुई। मेड़ता के राजा रामदेव द्वारा बनाया गया मालकोट किला भी ऐतिहासिक स्थलों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
मेड़ता सिटी से 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे मेड़ता रोड जंक्शन पर निर्मित जैन सम्प्रदाय का प्राचीन पार्श्वनाथ जिनायल में रंग-बिरंगे कांच की कलात्मक जड़ाई का काम दर्शनीय है। यहां प्रतिवर्ष आसोज के एक विशाल मेला आयोजित होता है जिसमें देशभर के लोग भाग लेते हैं। मेड़ता शहर के नजदीक बसे गांव रेण में रामस्नेही सम्प्रदाय के आदिचार्य श्री दरियाव जी का धाम है जहां प्रतिवर्ष मेला आयोजित होता है।
भवाल मामा का मंदिर
मेड़ता सिटी से 32 किलोमीटर की दूरी पर जसनगर के समीपस्थ जग प्रसिद्ध भवाल माता का मंदिर है। यह मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी का स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। यहां नवरात्रा में शक्तिपीठ के रूप में काली माता एवं ब्रह्माणी की प्रतिमा की पूजा-अर्चना होती है।
दधिमति माता का मंदिर
जिले की जायल तहसील क्षेत्र के गोठ मांगलोद गांव में दधिमति माता का प्राचीन मंदिर है जहां प्रतिवर्ष नवरात्रा में भव्य मेले का आयोजन होता है। यहां का शिलालेख मारवाड़ भर में प्राचीन माना जाता है।
नागौर के प्रमुख मेले
नागौर जिला मुख्यालय पर प्रतिवर्ष श्रावणी तीज और शीतलाष्टमी को मेले आयोजित होते हैं। नागौरी नस्ल के बैलों के लिये विख्यात राज्य स्तरीय परबतसर का वीर तेजाजी पशुमेला प्रतिवर्ष भाद्र शुक्ला दशमी से 15 दिवस के लिए भरता है। इसी प्रकार नागौर का राज्य स्तरीय लोक देवता बाबा रामदेव के नाम से भरा जाने वाला रामदेव पशु मेला प्रतिवर्ष माघ शुक्ला प्रतिपदा से पूर्णिमा तक तथा मेड़ता सिटी का राज्य स्तरीय बलदेव पशु मेला प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला सप्तमी से पूर्णिमा तक आयोजित होता है। इन तीनों मेलों में नागौर नस्ल के बैलों की मुख्य रूप से खरीद-फरोख्त होती है।
खनिज सम्पदा
नागौर जिले में खनिज सम्पदा के अथाह भण्डार है। संगमरमर, टंगस्टन, चूना, पत्थर, इमारती पत्थर तथा नमक के अलावा जिप्सम से विपुल भण्डार उपलब्ध हैं।
हस्त औजार उद्योग
नागौर जिले के हस्त औजारों की मांग देश में ही नहीं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी है। नगौरी हस्त औजारों की तीन श्रेणियां है। इसमें सामान्य अभियांत्रिकी से संबंधित औजारों में प्लास, हथौड़ी, टीन कटर, सन्डासी आदि मुख्य है। दूसरी श्रेणी में घड़ीसाजी के औजार जिनमें छोटी हथौड़ी, कैंची, चीमटी, पेचकस आदि हैं। तीसरी श्रेणी के तहत सुनारी व्यवसाय से जुडे़ औजार निजमें हथौड़ी, प्लास, चीमटी, तार खींचने की जंत्री, डाई आदि है। इस उद्योग से करीब 500 परिवार जुडे़ हुए हैं।
काम के नोट्स:
काम के नोट्स:
जिला दर्शन अजमेर
जिला दर्शन अलवर
जिला दर्शन बारां
जिला दर्शन बाड़मेर