Art and Culture of Rajasthan-Rajasthan ke lokgeet-1

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राजस्थान के लोकगीत 

Rajasthan ke Lokgeet

राजस्थान के लोक​गीत इसकी लोक संस्कृति के पहचान है. राजस्थान की विभिन्न बोलियों और भाषाओं में संस्कृति के अनुरूप लोक​गीतों का विशाल संग्रह है. राजस्थान के लोकगीतों में दैनिक आचार के साथ ही मनुष्य के जीवन में आने वाले विभिन्न अवसरो जैसे विवाह, गर्भाधान, जन्म और विभिन्न उत्सवों पर अलग—अलग शैली के लोकगीतों का प्रचलन है.

हम यहां आपको राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में गाये जाने वाले लोकगीतों की आरंभिक सामान्य ज्ञान की जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रहे हैं. यह विषय बहुत ही वृहद् है और इस पर कई किताबें भी लिखी गई है लेकिन हम आपको उन तथ्यों के बारे में ही बता रहे हैं जो परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है और इसकी मदद से आप राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों का समुचित उत्तर दे पायेंगे।

राजस्थान में लोकगीतों की रचना शैली 

राजस्थान के ज्यादातर लोकगीत सरल और आम मुहावरों की भाषा का उपयोग कर रचे गये हैं. इनमें परिहास के माध्यम से गहरी बात कहने का प्रयास किया गया है। व्यंग्य शैली से ओत—प्रोत गीतों के साथ ही महिमा मंडन वाले लोकगीतों पर आपको यहां प्रचलित रही ख्यातों और रास परम्परा का  स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है. 

राजस्थान के लोक गीतों में एक सामान्य गीत की ही भांति तीन अवयवों की प्रमुखता होती है, इन्हें गीत, धुन और वाद्य में बांटा जा सकता है। 

राजस्थान के लोकगीतों में 3, 7, 9, 32 और 56 की संख्या में मात्राओं का प्रयोग किया जाता है। इस संतुलन को बनाने के लिये कई बार ऐसे शब्दों को भी लोकगीतों की रचना में प्रयोग में लिया जाता है, जिनकी कोई आवश्यकता नहीं होती है.

राजस्थान के लोकगीतों के ऐतिहासिक स्रोत

राजस्थान में लोकगीत लोकपरम्परा में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अलिखित रूप से ही मिलते आये हैं। लोकाचार के दौरान यह गीत एक पीढ़ी द्वारा न सिर्फ दूसरी पीढ़ी को दिये गये बल्कि इसी समय इनमें बदलाव भी हुये और पुराने गीतों के आधार पर नये लोकगीत भी रचे गये. 

लिखित रूप में राजस्थानी लोकगीतों का संकलन पहले पहल जैन कवियों द्वारा करीब 500 साल पहले किया गया। 

1892 ईं ० में प्रकाशित सी. ई. गेब्हर के संकलन ‘फोक सांग्स आँफ सदर्न इंडिया’ में पढ़ने को मिलते हैं. 

इसके बाद यह कर्नल जेम्स टॉड द्वारा भी संग्रहित किये गये.
लोकगीत और लोकगायक


राजस्थान में लोकगीत आम जन के साथ ही विभिन्ने पेशेवर जातियों द्वारा गाये जाने की परम्परा है।


राजस्थान में लोकगीतों का गायन करने वाली प्रमुख जातियों में राणा, दमामी, लंघा, मांगणियार, ढाढी, मिरासी, जागड़ और नगारची का नाम लिया जा सकता है।


इन जातियों द्वारा प्रमुख रूप से मूमल, वायरियो, रतन, राणा, बाघो, लाखो, पणिहारी, घाटी की नगारी, सूवरियो, मुडिया नाहि महेश, काछबियो, धूसों आदि लोकगीत गाया जाता है। 


पेशेवर गायकों द्वारा गीत गाये जाते वक्त वाद्यो में ढोल, नक्कारा, ढोलक, सितार, सारगी, सिंधी सारंगी और हारमोनियम जैसे वाद्य प्रयोग किये जाते हैं।


जैसलमेर क्षेत्र में गाये जाने वाले लोकगीतों में माढ राग का प्रयोग किया जाता है क्योंकि जैसलमेर का प्राचीन नाम माढ है। 


इसके अलावा शुद्ध, देश, सारग, सूप, सामेरी तथा मारू रागों का उपयोग लोकगीतों में किया जाता है।


राजस्थान में युद्ध के समय जागड़े और सिंधु गाये जाने की परम्परा है। जागड़े वीरों को दिये जाते हैं, इन गीतों में साहस और पराक्रम का वर्णन होता है।


परिवार की महिलाओं द्वारा लोकगीत गाये जाने की परम्परा भी राजस्थान में पुरातन काल से रही है। ऐसी महिलायें जो इसमें प्रवीण होती हैं, उन्हें मगलामुखी कहा जाता है।



राजस्थान में मगलामुखी के रूप में जोधपुर की गवरी बाई, जैसलमेर की खुशाली बाई, मागी बाई, नाराणी बाई, उदयपुर की तुलसी बाई और किशनगढ़ की ललता बाई के अलावा अल्ला जिलाई बाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।


काम के नोट्स:

राजस्‍थान की चित्रकला
राजस्‍थान का मंदिर स्‍थापत्‍य
राजस्‍थान की ऐतिहासिक इमारतें
राजस्‍थान की प्रमुख बावडियां

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