History of Rajasthan (Important facts for RPSC exams) Part-18

राजस्थान का इतिहास भाग-18
रणथम्भौर के चौहान
➤ रणथम्भौर के चौहान वंश की स्थापना पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविन्द राज ने की थी।
➤ यहाँ के प्रतिभा सम्पन्न शासकों में हम्मीर का नाम सर्वोपरि है।
➤ दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने हम्मीर के समय रणथम्भौर पर असफल आक्रमण किया था।
➤ अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में रणथम्भौर पर आक्रमण कर दिया।
➤ इसका मुख्य कारण हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध मंगोल शरणार्थियों को आश्रय देना था।
➤ किला न जीत पाने के कारण अलाउद्दीन ने हम्मीर के सेनानायक रणमल और रतिपाल को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया।
➤ हम्मीर ने आगे बढ़कर शत्रु सेना का सामना किया पर वह वीरोचित गति को प्राप्त हुआ।
➤ हम्मीर की रानी रंगादेवी और पुत्री ने जौहर व्रत द्वारा अपने धर्म की रक्षा की।
➤ यह राजस्थान का प्रथम जौहर माना जाता है। हम्मीर के साथ ही रणथम्भौर के चौहानो का राज्य समाप्त हो गया।
हम्मीर के बारे में प्रसिद्ध है ‘‘तिरिया-तेल हम्मीर हठ चढे़ न दूजी बार।


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जालौर के  चौहान
➤ जालौर की चौहान शाखा का संस्थापक कीर्तिपाल था।
➤ प्राचीन शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालिपुर और किले का सुवर्णगिरि मिलता है, जिसको अपभ्रंश में सोनगढ़ कहते हैं।
➤ इसी पर्वत के नाम से चैहानों की यह शाखा ‘सोनगरा’ कहलायी।
➤ इस शाखा का प्रसिद्ध शासक कान्हड़दे चौहान था।
➤ दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर को जीतने से पूर्व 1308 में सिवाना पर आक्रमण किया। उस समय चौहानो के एक सरदार, जिसका नाम सातलदेव था, दुर्ग का रक्षक था।
➤ उसने अनेक स्थानों पर तुर्कों को छकाया था। इसलिए उसके शौर्य की धाक राजस्थान में जम चुकी थी।
➤ परन्तु एक राजद्रोही भावले नामक सैनिक द्वारा विश्वासघात करने के कारण सिवाना का पतन हो गया और अलाउद्दीन ने सिवाना जीतकर उसका नाम खैराबाद रख दिया।
➤ इस विजय के पश्चात् 1311 में जालौर का भी पतन हो गया और वहाँ का शासक कान्हड़देव वीर गति को प्राप्त हुआ।
➤ वह शूरवीर योद्धा, देशाभिमानी तथा चरित्रवान व्यक्ति था। उसने अपने अदम्य साहस तथा सूझबूझ से किले निवासियों, सामन्तों तथा राजपूत जाति का नेतृत्व कर एक अपूर्व ख्याति अर्जित की थी।


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हाड़ौती के चौहान
➤ वर्तमान हाड़ौती क्षेत्र पर चौहान वंशीय हाड़ा राजपूतों का अधिकार था। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र पर मीणाओं का अधिकार था।
➤ ऐसा माना जाता है कि बून्दा मीणा के नाम पर ही बूँदी का नामकरण हुआ।
➤ कुंभाकालीन राणपुर के लेख में बूँदी का नाम ‘वृन्दावती’ मिलता है।
➤ राव देवा ने मीणाओं को पराजित कर 1241 में बूँदी राज्य की स्थापना की थी।
➤ बूँदी के प्रसिद्ध किले तारागढ़ का निर्माण बरसिंह हाड़ा ने करवाया था।
➤ तारागढ़ ऐतिहासिक काल में भित्तिचित्रों के लिए विख्यात रहा है।
➤ बूँदी के सुर्जनसिंह ने 1569 में अकबर की अधीनता स्वीकार की थी।
➤ बूँदी की प्रसिद्ध चैरासी खंभों की छतरी शत्रुसाल हाड़ा का स्मारक है, जो 1658 में शामूगढ़ के युद्ध में औरंगजेब के विरुद्ध शाही सेना की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था।
➤ बुद्धसिंह के शासनकाल में मराठों ने बूँदी रियासत पर आक्रमण किया था।
➤ प्रारम्भ में कोटा बूँदी राज्य का ही भाग था, जिसे शाहजहाँ ने बूँदी से अलग कर माधोसिंह को सौंपकर 1631 ई. में नये राज्य के रूप में मान्यता दी थी।
➤ कोटा राज्य का दीवान झाला जालिमसिंह इतिहास चर्चित व्यक्ति रहा है। कोटा रियासत पर उसका पूर्ण नियन्त्रण था।
➤ कोटा में ऐतिहासिक काल से आज तक कृष्ण भक्ति का प्रभाव रहा है। इसलिए कोटा का नाम ‘नन्दग्राम’ भी मिलता हैं।
➤ बूँदी-कोटा में सांस्कृतिक उपागम के रूप में यहाँ की चित्रशैलियाँ विख्यात रही हैं।
➤ बूँदी में पशु-पक्षियों का श्रेष्ठ अंकन हुआ है, वहीं कोटा शैली शिकार के चित्रों के लिए विख्यात रही है।


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