राजस्थान के किसान आंदोलन भाग-1
➤ राजस्थान के किसान आंदोलनों के पीछे सबसे बड़ा कारण लगान के अलावा कई प्रकार की कर वसूला जाना था, जिनकी संख्या 100 से अधिक थी।
लाग का नाम
|
विवरण
|
खिचड़ी
|
राज्य की सेना जब किसी गांव के पास पड़ाव डालती, उसके भोजन के लिए गांव के लोगों से वसूल की जाने वाली लाग।
|
अखराई
|
राज्य कोष में जमा होने वाली राशि पर दी जाने वाली रसीद पर एक रूपये पर एक पैसा लिया जाने लगा।
|
कमठा
|
गढ़ के निर्माण व मरम्मत हेतु दो रूपये प्रति घर से वसूले जाते थे।
|
कांसा
|
शादी अथवा गमी के अवसर पर ठिकाने को दी जाने वाली रकम के साथ कम से कम पच्चीस पत्तल खाना भेजना।
|
खरड़ा
|
श्रमजीवी जातियों यथा भांबी, मोची, छीपा, कुम्हार आदि से वसूली जाती थी।
|
चूड़ा
|
ठिकानेदार की पत्नी द्वारा नया चूड़ा पहनने पर मूल्य काश्तकारों द्वारा वसूला जाता था।
|
पावणा पावरा
|
जागीरदार अपने मेहमानों पर होने वाले खर्चे को गांव वालो से वसूल करता था।
|
राम-राम लाग
|
इसे मुजरा लाग भी कहा जाता है। इसे प्रति व्यक्ति एक रूपये के हिसाब से वसूल करते थे।
|
हल लाग
|
खेती पर प्रति हल लगने वाली लाग।
|
ठिकानेदार लाग
|
ठिकाने के रखरखाव के लिए वसूली जाने वाली लाग।
|
➤ बेगार प्रथा से किसान इतना त्रस्त था कि उसके ना करने पर कठोर यातना का भागी होना पड़ता था।
➤ सन् 1941 में जोधपुर राज्य द्वारा अवैध लागों की जांच के लिए गठित समिति के सम्मुख मारवाड़ किसान सभा ने 136 लाग-बागों की सूची प्रस्तुत की।
➤ शेखावाटी में 31 लागें बिजौलिया में 74 (सन् 1922 में किसान पंचायत द्वारा) व बिलाड़ा में विभिन्न प्रकार के 142 लागे वसूल की जाती थी।
बिजौलिया कृषक आन्दोलन (1913-1922, 1927-1941)
➤ बिजौलिया (ऊपरमाल) मेवाड़ का एक प्रथम श्रेणी का जागीरी इलाका था। यहां के उमराव रावजी कहलाते थे।
➤ बिजोलिया में असंतोष का पहला विस्फोट सन 1897 में गिरधरपुर के धाकड़ गंगाराम के पिता की मृत्यु के अवसर पर एकत्रित हुए कृषकों ने ठिकाने के अत्याचार के प्रतिकार के लिए नानजी पटेल व ठाकरी पटेल के नेतृत्व में एक दल महाराणा फतह सिंह के पास भेजने का निश्चय किया।
➤ ठिकाने की भेद व दमन नीति से शिथिल हो चुके कृषकों को साधु सीताराम, ब्रह्मदेव तथा फतहकरण चारण ने सन 1913 में पुनः संगठित किया तथा 100 किसानों के साथ रावजी से मिलने गये किन्तु रावजी ने मिलने से इंकार कर दिया व 5 रूपये चंवरी कर लगा दिया।
इसके विरोध में किसानों ने विवाह करना बंद कर दिया। खेत जोतने पर रोक लगा दी।
➤ इससे ठिकाने की आय को धक्का पहुंचा। इसके प्रतिकार में सीताराम, फतहकरण एवं ब्रह्मदेव को देश निकाला दे दिया।
➤ सन 1914 ई. में ठिकाने पर मुंसरमात कायम होने के पश्चात अमरसिंह राणावत तथा नायब मुंसरीम डूंगरसिंह भाटी के नेतृत्व में किसानों का दमन चक्र पुनः शुरू हो गया।
➤ सन 1916 के भीषण अकाल से पीड़ित प्रजा से लाग-बाग व युद्ध का चंदा इकट्ठा किया जाने लगा। इसी दौरान माणिक्य लाल वर्मा ठिकाने की सेवा-त्याग आन्दोलनकारियों के साथ हो गए।
➤ साधु सीताराम ने विजय सिंह पथिक जी से आंदोलन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया।
➤ माणिक्यलाल वर्मा, मन्नालाल पटेल, लक्ष्मण पटेल तथा जगन्नाथ के नेतृत्व में केन्द्रीय कमेटी का गठन कर पंचायत को मजबूत बनाया गया।
➤ गांव-गांव किसानों ने सत्याग्रह छेड़ दिया।
➤ इस आंदोलन की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि उस समय वंदे मातरम की आवाज ऊपरमाल (बिजौलिया) के कोने-कोने में गूंजती थी।
मेवाड़ सरकार ने स्थिति को सुलझाने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की जिसके सदस्य ठाकुर अमरसिंह (मुन्सीराम बिजौलिया), अफजल अली (मजिस्ट्रेट) और बिन्दूलाल (मांडलगढ़ के हाकिम) के कमीशन ने सिफारिश की कि बिजौलिया के किसानों की मांगे न्यायसंगत है।
➤ राजपूताना मध्य भारत सभा ने भी महाराणा को अपना प्रतिनिधि भेजने हेतु लिखा।
➤ जन आन्दोलन को जोर पकड़ते देख महाराणा ने फरवरी, 1921 को दूसरा कमीशन ठिकाने की स्थिति व कृषकों की मांग की जांच करने हेतु नियुक्त किया जिसके सदस्य पंडित रमाकांत मालवीय, ठाकुर राजसिंह और महता तख्तसिंह थे। कमीशन किसानों की मांगे न्यायोचित मानी।
➤ सन 1920 में विजय सिंह पथिक जी ने आंदोलन को सुचारू तौर पर चलाने हेतु आवश्यक निर्देश दिए और वर्धा पहुंच गये।
➤ आंदोलन को गति देने के लिए सन 1921 में पथिकजी वर्धा से अजमेर आ गए किन्तु उनका मेवाड़ प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया।
➤ ठिकाने ने 8 हजार बीघा जमीन नये खातेदारों को नये लगान दर पर सुपुर्द कर दी।
➤ स्थिति को गंभीरता को समझने हुए ब्रिटिश हुकूमत ने बिजौलिया समस्या के समाधान हेतु सन 1922 में एजीजी हाॅलेण्ड के नेतृत्व में बड़ा सा कर्मचारी मण्डल भेजा।
➤ हालैण्ड व किसानों के मध्य हुए समझौते में किसानों की अधिकतर मांगे स्वीकार कर ली गई।
➤ बेगार प्रथा का अंत कर दिया गया और अधिकांश लाग-बाग समाप्त कर दी गई।
➤ किसानों के विरूद्ध मुकदमों को वापिस लेने और खेती नहीं किये गए वर्ष का लगान न लेने के आश्वासन के साथ आंदोलन का प्रथम चरण समाप्त हो गया।
बेगूं मे किसान आंदोलन (1921-1925)
➤ बिजौलिया आंदोलन की सफलता से प्रेरित होकर बेगूं (मेवाड़) ठिकाने के कृषकों ने भी सन 1921 से आन्दोलन कर दिया।
➤ वहां राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से पथिकजी एवं माणिक्य लाल वर्मा तथा रामनारायण चैधरी द्वारा जनजागृति की जा रही थी।
➤ कालखंड और चांदखेड़ी की बैठकों में किसानों ने बेगार व लगान न देने का निर्णय लिया।
➤ सन 1922 में मंडावरी में किसान आन्दोलन को गोलियों की बौछार से तितर-बितर कर दिया गया।
➤ सन 1923 में ट्रेंच द्वारा सार्वजनिक सभा के लिए एकत्रित हुए हजारों कृषकों, महिलाओं व बच्चों पर गोली चलवा दी गई जिससे दो व्यक्ति मारे गए और सैकड़ो घायल हुए।
➤ मेवाड़ सरकार ने इस घटना के लिए विजय सिंह पथिक, हरि भाई किंकर और माणक लाल जी को दोषी माना गया।
➤ 1925 के बंदोबस्त में किसानों की अधिकांश मांगे मान ली गई और आंदोलन समाप्त हो गया।
➤ बिजोलिया और बेगूं के किसान आंदोलन से प्रेरित होकर भींडर, मुडला, पारसौली, बसी, जामोली, भैंसरोड, धारियावाद, परशाद, काछोला के ठिकानों के किसानों ने भी आंदोलन किया।