जिला दर्शन:जयपुर (Jaipur)
प्रदेश के ह्नदय स्थल में अवस्थित जयपुर राजस्थान की राजधानी है। गुलाबी नगरी के नाम से विश्वविख्यात जयपुर अपने अद्वितीय नगर नियोजन, समद्व ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने तत्कालीन सीमित साधनों के बावजूद विश्व के अनेक विख्यात नगरों के मानचित्रों का अध्ययन करने के बाद ज्योतिष एवं वास्तु सम्मत बातों को महत्व देते हुये इस नगर की स्थापना की। ऐतिहासिक भव्य राजमहलों, आकर्षक बाजारों, रमणीय उघानों एवं सुदर्शन मंदिरों से अलंकृत यह शहर आज भी दुनियाभर के पर्यटकों को आकृष्ट करता है। सवाई जयसिंह ने लगभग 2 लाख की आबादी को बसाने के लिये इस शहर की परिकल्पना की थी। शांत, सुव्यवस्थित एवं गुणीजनों के इस शहर की आबादी निरंतर बढ़ती गयी और वर्ष 2011 की गणना के अनुसार यहां की आबादी 66 लाख 26 हजार से अधिक हो चुकी है।
➤ जयपुर शहर की स्थापना कछवाहा वंश के शासक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18 नवम्बर, 1727 को अरावली पर्वत मालाओं की तलहटी में की एवं आमेर की बजाय इस नगर को अपनी राजधानी बनाया।
➤ सवाई जयसिंह ने विश्व के सुन्दरतम शहर की परिकल्पना की और इसे साकार करने का दायित्व अपने मुख्य वास्तुकार श्री विघाधर भट्ठाचार्य को सौंपा।
➤ स्थापत्य कला के उपलब्ध् समस्त नमूनों का विस्तार से अध्ययन कर श्री विघाधर ने इस अनूठे नगर का नियोजन किया।
➤ इस चतुर्भुजाकार शहर को नौ चैकड़ियों में विभाजित किया गया। नगर के चारों ओर सात प्रवेश द्वार बनाये गये।
➤ इनमें चांदपोल गेट, अजमेरी गेट, सांगानेरी गेट, घाटगेट, सूरजपोल गेट, गंगापोल गेट, जोरावर सिंह गेट आज भी शहर के जन-जीवन के साक्षी बने हुये है।
➤ विभिन्न व्यवसायों से जुड़े व्यक्तियों को अलग-अलग चौकड़ियों में व्यवस्थित रूप से बसाया गया।
➤ सवाई जयसिंह ने जयपुर को कला के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिये अनेक कलाकारों और विशेषज्ञों को विभिन्न स्थानों से लाकर उन्हें जयपुर में बसाया और राज्याश्रय प्रदान किया।
➤ इससे यह शहर शिल्पकला, चित्रकारी, मीनाकारी, जवाहरात, पीतल की नक्काशी, हस्त निर्मित कागज, रत्नाभूषण, ब्ल्यूपोट्री तथा छपाई कला आदि सभी कलाओं में उत्कृष्टता अर्जित कर सका।
➤ प्रिंस आॅफ वैल्स के सन् 1876 में जयपुर आगमन के समय शहर को एकरूपता प्रदान करने के लिये गुलाबी रंग से रंगा गया।
➤ इसके बाद से यह शहर विश्व में ‘गुलाबी नगरी’ के नाम से विख्यात हुआ।
➤ स्वतंत्रता के बाद रियासतों का एकीकरण हुआ एवं जयपुर को प्रदेश की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
➤ प्रदेश की राजधानी होने से जयपुर में विधानसभा, सचिवालय एवं लगभग सभी विभागों के राज्य स्तरीय कार्यालय विद्यमान है।
➤ प्रशासनिक दृष्टि से जयपुर में संभागीय आयुक्त कार्यालय, जिला कलेक्ट्रट एवं विभिन्न विभागों के संभाग व जिला स्तरीय कार्यालय स्थित है।
➤ जिले को 13 उपखण्डों में विभाजित किया हुआ है।
➤ जिले के 13 उपखण्डों में जयपुर, सांगानेर, बस्सी, चाकसू, आमेर, चैमूं, जमवारामगढ़, साभंर, दूदू, फागी, कोटपुतली, शहपुरा और विराटनगर शामिल है।
➤ जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 11 हजार 143 वर्ग किलोमीटर है।
➤ जिले में कुल 2 हजार 180 गांव है।
➤ यह जिला प्रदेश के पूर्वी भाग में 26.23 व 27.51 उत्तरी अक्षांश एवं 74.55 व 76.50 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है।
➤ इसके उत्तर में राजस्थान का सीकर जिला व हरियाणा का महेन्द्रगढ़ जिला, दक्षिण में टोंक, पूर्व में अलवर, दौसा व सवाईमाधोपुर जिले एवं पश्चिम में नागौर व अजमेर जिले है।
➤ जिले का पूर्व व उत्तर का क्षेत्र अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की पहाड़ियों से घिरा है।
➤ जयपुर जिले की जलवायु शुष्क एवं स्वास्थ्यप्रद मानी जाती है।
➤ जिले की अधिकांश नदियां अपरिवार्षिक है। इनमें बाणगंगा व साबी महत्वपूर्ण है।
➤ शहर की पेयजल आपूर्ति के उदेश्य से बाणगंगा नदी को जमवारामगढ़ के निकट अवरूद्व कर बांध बनाया गया।
➤ जिले की एकमात्र उल्लेखनीय प्राकृतिक झील सांभर झील है। यह झील देश में नमक का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
➤ जयपुर जिले में विविध प्रकार के खनिज-तांबा, मृतिका, डोलोमाइट, लोहा, चूना पत्थर, कांच आदि उपलब्ध है।
➤ समुद्र तल से जिले की ऊंचाई सामान्यतः 122 से 183 मीटर है।
➤ पश्चिम से पूर्व तक जिले की कुल लम्बाई 180 किलोमीटर एवं उत्तर से दक्षिण तक इसकी चौड़ाई लगभग 110 किलोमीटर है।
➤ जिले की सन् 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 66 लाख 26 हजार 178 है।
➤ कुल जनसंख्या में से 34 लाख 68 हजार 507 पुरूष एवं 31 लाख 57 हजार 671 महिलायें है।
➤ जिले का महिला-पुरूष लिंगानुपात 910 है।
➤ जिले की साक्षरता की दर 75.51 है।
➤ शहर से 11 किमी. दूर अरावली पर्वतमाला पर स्थित आमेर का किला राजपूत वास्तुकला का अद्भूत उदाहरण है।
➤ प्राचीन काल में अम्बावती और अम्बिकापुर के नाम से आमेर कछवाहा राजाओं की राजधानी रहा है।
➤ आमेर किले के राजमहलों का निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह ने करवाया था।
➤ सवाई जयसिंह ने इसमें कुछ नये भवनों का निर्माण करवाया।
➤ हिन्दू और फारसी शैली के मिश्रित स्वरूप का यह किला देश में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है।
➤ महल के मुख्य द्वार के बाहर कछवाहा राजाओं की कुल देवी शिला माता का मंदिर है।
➤ महल में घुसते ही 20 खम्भों का राजपूत भवन शैली पर सफेद संगमरमर व लाल पत्थर का बना दीवानें आम है।
➤ दीवाने खास और शीशमहल पर्यटको के आकर्षण का विशेष केन्द्र है।
➤ महल में मावडा झील से आती ठण्डी हवाओं का आनन्द लेने के लिये सुख निवास भी स्थित है।
➤ रानियों के लिये अनेक निजी कक्ष भी निर्मित है।
➤ सवाई जयसिंह ने शहर की स्थापना करते हुये चारदीवारी का लगभग सातवां हिस्सा अपने निजी निवास के लिये बनवाया।
➤ राजपूत और मुगल स्थापत्य में बना महाराजा का यह राजकीय आवास चन्द्रमहल के नाम से विख्यात हुआ।
➤ चन्द्रमहल में प्रवेश करते ही मुबारक महल के नाम से एक चतुष्कोणीय महल बना हुआ है।
➤ इस महल में स्थित पोभीखाने में बहुमूल्य दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथों की पाण्डुलिपियां संरक्षित है।
➤ महल की ऊपरी मंजिल पर बने वस्त्रागार में म्यूजियम में राजकीय पोशाकें, अलंकरण, आभूषण आदि संग्रहित किये गये है।
➤ इसके पास ही म्यूजियम का शस्त्रागार है जिसमें महाराजाओं द्वारा काम में लिये गये हथियार और शस्त्र प्रदर्शित किये गये है।
➤ शस्त्रागार में जयपुर के महाराजाअें को विभिन्न अवसरों पर पुरस्कार स्वरूप मिले शस्त्र भी प्रदर्शित किये गये है।
➤ मुबारक महल से श्वेत संगमरमर से निर्मित राजेन्द्र पोल से दीवाने आम में प्रवेश किया जाता है।
➤ इस समय दीवाने आम में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा अपनी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान गंगाजल ले जाने के लिये बनाये गये दो विशाल रजल कलश रखे हुये है।
➤ चन्द्रमहल के म्यूजियम को दिये गये हिस्से में महाराजाओं के आदमकद विशाल चित्र, मानचित्र, गलीचे एवं बहुमूल्य राजकीय सामग्री के साथ अनेक दुर्लभ पाण्डुलिपियां भी प्रदर्शित की गई है परिसर में बने दीवाने खास में तत्कालीन नरेशों और उनके महत्वपूर्ण दरबारियों की विशेष बैठकें आयोजित की जाती थी।
➤ चन्द्रमहल महाराजओं के सुख-सुविधा की दृष्टि से स्थापत्य और वास्तुशिल्प का अनूठा नमूना है।
➤ मध्य युग में निर्मित यह भवन भूकम्प के झटकों से सुरक्षित रखने के लिये तड़ित चालक की व्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है।
➤ महाराजा सवाई जयसिंह ने सन् 1718 में इस वैधशाला की आधारशिला रखी।
➤ इस ज्योतिष यंत्रालय में समय की जानकारी, सूर्याेदय, सूर्यास्त एवं नक्षत्रों की जानकारी प्राप्त करने के उपकरण अवस्थित है।
➤ वैधशाला में स्थापित यंत्रों में वृहत् सम्राट यंत्र, जय प्रकाश यंत्र, राम यंत्र, कपाली यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, राशि वलय यंत्र, घोटा यंत्र आदि मुख्य है। इसे वर्ष 2010 में यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
➤ गुलाबी नगरी के प्रतीक के रूप में विख्यात हुये हवामहल का निर्माण सन् 1799 में सवाई प्रतापसिंह ने करवाया था।
➤ वास्तुविद लालचन्द उसता ने केवल आठ इंच की दीवार के सहारेइस पांच मंजिले 152 खिड़कियों से युक्त भवन का निर्माण किया।
➤ देशी निर्माण पद्वति से निर्मित हवामहल में प्रकाश व वायु संचार की अत्यन्त आकर्षक एवं समुचित व्यवस्था है।
➤ इस महल के पिछले हिस्से में राज्य सरकार द्वारा हवामहल म्यूजियम का संचालन किया जा रहा है। म्यूजियम में अनेक कलात्मक वस्तुयें प्रदर्शित की गयी है।
➤ शहर के सर्वाधिक सुन्दर उघान रामनिवास बाग में यह भवन निर्मित किया गया है।
➤ रामनिवास बाग का निर्माण महाराजा सवाई रामसिंह ने अकाल राहत कार्यो के अन्तर्गत 4 लाख रूपये की राशि व्यय कर करवाया था।
➤ महाराजा सवाई रामसिंह ने ही सन् 1876 में ब्रिटेन के महाराजा एडवर्ड सप्तम प्रिन्ट आफ वैल्स के रूप में भारत आने के समय यादगार के रूप में अल्बर्ट हाॅल का निर्माण प्रारम्भ किया।
➤ भवन की डिजाइनिंग सर स्विंटन जैकब द्वारा की गई। भारतीय व फारसी शैली में बनी इस भव्य इमारत में इस समय म्यूजियम संचालित किया जा रहा है।
➤ इस म्यूजियम को देखने के लिये लाखों देशी-विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते है।
➤ म्यूजियम में प्रदर्शित वस्तुओं को देखकर पर्यटक प्रदेश की संस्कृति की एक झांकी पा सकते है।
➤ जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील के मध्य स्थित इस महल का निर्माण सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ के बाद अपनी रानियों और पंडितों के साथ अवभ्रत स्नान के लिये करवाया था।
➤ इससे पूर्व सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति हेतु गर्भावती नदी पर बांध बनवाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया।
➤ जलमहल मध्यकालीन महलों की तरह मेहराबों, बुर्जो, छतरियों एवं सीढ़ीदार जीनों से युक्त दुमंजिला और वर्गाकार रूप में निर्मित भवन है।
➤ इसकी ऊपरी मंजिल की चारो कोनों पर बुर्जो की छतरियां व बीच की बारादरियां, संगमरमर के स्तंभों पर आधारित है।
➤ जलमहल अब पक्षी अभयारण्य के रूप में भी विकसित हो रहा है।
➤ जलमहल में आने वाले सीवरेज के पानी की दुर्गन्ध की समस्या का समाधान करने के लिये राज्य सरकार द्वारा एक बड़ी परियोजना बनाई गई है।
➤ महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह ने इस सुन्दर और अदभुत वास्तुकला के नमूने का निर्माण करवाया।
➤ सात खण्डों की यह मीनार सवाई ईश्वरी सिंह ने अपनी विजय के स्मारक के रूप में बनवाई।
➤ यह विजय उन्होंने सात सम्मिलित सेनाओं को बगरू के युद्व में परास्त कर अर्जित की थी।
➤ इसे सरगासूली के नाम से भी जाना जाता है।
➤ स्टैच्यू सर्किल एवं शासन सचिवालय के पास 9.8 एकड़ भूमि पर बिड़ला विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्र स्थित है।
➤ इस केन्द्र में विज्ञान संग्रहालय, कम्प्यूटर केन्द्र, अनुसंधान केन्द्र एवं पुस्तकालय है।
➤ बिड़ला तारामण्डल देशी-विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।
➤ परिसर में स्थित 1350 दर्शकों के बैठने की क्षमता से युक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का सभागार यहां की मुख्य पहचान बन चुका है।
➤ इस केन्द्र के मुख्य प्रवेश द्वार पर आमेर किले की गणेश पोल की प्रतिकृति निर्मित की गई है।
➤ नाहरगढ़ किले का प्रारम्भ में 1734 में सवाई जयसिंह ने निर्माण कराया था परन्तु इसको वर्तमान स्वरूप 1868 में सवाई रामसिंह ने दिया।
➤ पहाड़ी पर बने इस किले से जयपुर शहर के चारों ओर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। आमेर से भी नाहरगढ़ की तरह जाने का रास्ता है।
➤ ऋषि गालव की पवित्र तपोभूमि एक प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है।
➤ शहर की पूर्वी पहाड़ियों पर अवस्थित गलता के कुण्ड में गोमुख से निरन्तर पानी बहता रहता है।
➤ पर्वत की सर्वोच्च ऊचाई पर सूर्य मंदिर है।
➤ गलता के रास्तें में पर्वत श्रृंखलाओं के बीच घाट की गूणी और आमागढ़ स्थित है।
➤ घाट की गूणी क्षेत्र में सवाई जयसिंह तृतीय की महारानी सिसोदिया द्वारा सन् 1779 में निर्मित सिसोदिया रानी का महल एवं बाग है।
➤ इस बाग में आकर्षक फव्वारे एवं भव्य महल बना हुआ है।
➤ जयपुर के मुख्य वास्तुविद एवं नगर नियोजक विद्याधर के नाम से अनेक फव्वारों एवं कुण्डों से आच्छादित विद्याधर का बाग भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
➤ यह सिसोदिया रानी के महल एवं बाग के पास ही स्थित है।
➤ जयपुर को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां कई बड़े-बड़े मंदिर है।
➤ इनमें गोविन्द देवजी का मंदिर यहां का सबसे प्रमुख मंदिर माना जाता है।
➤ चन्द्रमहल के पीछे सूर्यमहल के हिस्से में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।
➤ प्रतिदिन लाखों श्रद्वालु भगवान गोविन्द देव जी की लीला चरित्रों की आठ झांकियों के दर्शन करते है।
➤ इसके अलावा नाहरगढ़ जी के गणेशजी (गढ़ गणेशजी) तथा मोती डूंगरी के गणेशजी का मन्दिर, ताड़केश्वरजी का मंदिर, राममन्दिर, गोपीनाथ जी, हनुमान जी इत्यादि मंदिर है।
➤ एल्बर्ट हाॅल से पीछे जवाहर लाल नेहरू मार्ग पर इन्दिरा सर्किल के निकट स्थित भगवान लक्ष्मीनारायण का मंदिर (बिड़ला मंदिर) भी श्रद्वालुओं एवं पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
➤ इसी के साथ यहां पर चर्च, गुरूद्वारे, जामा मस्जिद आदि है।
➤ जयपुर के दक्षिण में 13 किलोमीटर दूर पंचायत समिति मुख्यालय सांगानेर रंगाई-छपाई और कागज निर्माण के लिये प्रसिद्व है।
➤ जयपुर से 26 किलोमीटर दूर पूर्व की ओर जमवारामगढ़ बांध है, जो पिकनिक की दृष्टि से उपयोगी स्थल है।
➤ जयपुर शहर को इस बांध से पीने का पानी सप्लाई किया जाता है।
➤ इस झील का कुल क्षेत्रफल 16 वर्ग किलोमीटर है।
➤ बांधस्थल के समीप ही जमुवाय माता का मंदिर है।
➤ जयपुर से 94 किलोमीटर दूर सांभर उत्तरी भारत के चौहान राजाओं की प्रथम राजधानी थी।
➤ यहां की झील से तैयार किया हुआ नमक निर्यात किया जाता है। यहां पर शाकम्बरी माता का मंदिर है।
➤ जयपुर-शाहपुरा-अलवर मार्ग पर स्थित बैराठ के लिये कहा जाता है कि यहां पाण्डवों ने अपना निर्वासित जीवन व्यतीत किया था।
➤ यहां आज भी ऐसे स्थल है, जो पुरानी यादों को ताजा कराते है।
➤ बैराठ के समीप पहाड़ियों पर भव्य बौद्व मठ के भी अवशेष मिले है।
➤ यह अवशेष बौद्व अनुयायियों के लिये पर्यटन की असीम संभावनायें समेटे हुये है।
➤ जयपुर में वैसे तो कई मेले लगते है, परन्तु सावन की तीज के मेले का अपना ही महत्व है।
➤ पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती ने भगवान शिव जैसा पति पाने के लिये वर्षो तपस्या की थी।
➤ अतः इस दिन कुमारियां पार्वती का पूजन कर शिव जैसा पति पाने की प्रार्थना करती है और सुहागिनें अपने पति के दीर्घजीवन की कामना करती है।
➤ इस दिन जनानी ड्योढ़ी में पूजा-अर्चना के बाद गौरी माता की मूर्ति को पूरे लवाजमे के साथ त्रिपोलिया बाजार, गणगौरी बाजार, चैगान होते हुये पालिका बाग तक ले जाया जाता है।
➤ सवारी को देखने के लिये विदेशी पर्यटक एवं ग्रामीण बड़ी संख्या में एकत्रित होते है।
➤ चैत्र शुक्ला तृतीया को गणगौर का त्यौहार मनाया जाता है।
➤ यह त्यौहार भी कुमारियों और सुहागिनों का त्यौहार हैं।
➤ तीज की तरह इस दिन भी गौरी माता की सवारी पूरे लवाजमें के साथ निकाली जाती है।
➤ चाकसू के निकट शील की डूंगरी पर शीतलाष्टमी के दिन मेला भरता है।
➤ मेला रात भर चलता है। इसमें हजारो की संख्या में ग्रामीण शामिल होते है।
➤ इस दिन घरों में ठण्डा-बासी भोजन किया जाता है।
➤ इसके अलावा होली, दशहरा, दीपावली, मकरसंक्रान्ति, रामनवमी, गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टी के त्यौहार भी बड़े धूमधाम से मनाये जाते है।
➤ इन अवसरों पर विशाल शोभायात्रायें भी निकाली जाती है। अन्य धर्मों के पर्व भी यहां बड़े उत्साह एवं उमंग से मनाये जाते है।
➤ होली के दिन शहर के चौगान स्टेडियम में मनाये जाने वाला यह महोत्सव विदेशी पर्यटकों के लिये सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र होता है।
➤ महोत्सव में सजे-धजे हाथी भाग लेते है।
➤ इसमें हाथी पोलो, हाथी दौड़ के साथ हाथी पर बैठकर होली खेलने का भी आनन्द लिया जाता है।
➤ जयपुर में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये प्रमुख केन्द्र रवीन्द्र मंच और जवाहर कला केन्द्र है।
➤ इन केन्द्रों पर कला और कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिये कई आयोजन किये जाते है।
➤ जयपुर की चित्रकला अपना एक विशेष स्थान रखती है।
➤ यहां के भवनों, मन्दिरों, राजभवनों पर पाये जाने वाले भित्ति चित्रों की अपनी अलग शैली है, जो जयपुर शैली के नाम से जानी जाती है।
➤ इन चित्रों में हरे रंग का ज्यादा उपयोग होता है।
➤ चित्रों में पीपल, बड़, घोड़ा और मोर का अधिक चित्रण किया हुआ है।
➤ अधिकांश चित्र रागमाला, बारहामास, कृष्ण चरित्र व नायिका भेद के होते है।
➤ यहां के चित्रो के रंग चमकदार, घने और टिकाऊ होते है।
➤ जवाहरात के निर्माण और व्यवसाय में जयपुर का नाम विश्व प्रसिद्व है।
➤ यहां की नगीनाकारी का काम भी प्रसिद्व है।
➤ पीतल की नक्काशी, मीनाकारी के लिये भी यह शहर प्रसिद्व है।
➤ यहां पर संगमरमर की मूर्तियां भी बनाई जाती है, जिनका देश-विदेश में निर्यात होता है।
➤ चन्दन की लकड़ी के खिलौने और ब्ल्यू पाॅटरी के लिये भी यह शहर प्रसिद्व है।