राजस्थान का स्थापत्य—2
राजस्थान का दुर्ग स्थापत्य
➤ राजस्थान के राजा, महाराजा, सामंत व ठिकानेदारों ने राज्य की तथा स्वंय की रक्षा हेतु बडी़ संख्या में दुर्गों का निर्माण किया।
➤ शुक्र नीति में नौ प्रकार के दुर्गों का उल्लेख है।
➤ कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में दुर्गों की चार श्रेणियां निर्धारित की है:-
1. औदृक 2. पार्वत 3. धान्वन 4.वन दुर्ग।
➤ कुछ विद्वान स्थल पर बने दुर्ग की भी एक पृथक श्रेणी- स्थल दुर्ग को मानते है।
➤ राजस्थान में ये सभी प्रकार के दुर्ग पाये जाते हैं।
➤ औदुक दुर्ग को जल दुर्ग भी कहते हैं। गागरौन दुर्ग इसी प्रकार है।
➤ पार्वत दुर्ग पहाड़ पर स्थित होता है। जालोर, सिवाना, चित्तौड़, रणथम्भौर, तारागढ़ मेहरनगढ़, जयगढ़ आदि दुर्ग इसी श्रेणी के पार्वत दुर्ग हैं।
➤ मरूभूमि में बना हुआ दुर्ग धान्वन दुर्ग कहलाता है। जैसलमेर का दुर्ग इसी श्रेणी का है।
➤ जंगल में बना हुआ वन दुर्ग होता है। सिवाना का दुर्ग इसी कोटि का है।
➤ समान जमीन पर बना हुआ दुर्ग स्थल दुर्ग होता है। बीकानेर, नागौर, चौमू तथा माधोराजपुरा का दुर्ग इसी श्रेणी में आते हैं।
➤ चितौड़गढ़ का किला धन्व दुर्ग श्रेणी को छोड़कर सभी श्रेणियों की विशेषताएँ रखता है।
➤ इसी कारण राजस्थान में एक कहावत है, कि गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढैया।
➤ राजस्थान में मिटटी के किले भी बने है। इसके प्रसिद्ध उदाहरण हनुमानगढ़ का भटनेर तथा भरतपुर का लोहागढ़ हैं।
काम के नोट्स:
राजस्थान की चित्रकला