भरतपुर में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के दौरान ही देशभक्ति की भावनाएं अपनी जड़े जमाने लग गई थी। गदर के दौरान भरतपुर के महाराजा जसवंत सिंह के नाबालिक होने के कारण राज्य का शासन अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट के हाथ में था। भरतपुर राज्य के सेना तात्या टोपे का मुकाबला करने के लिए और अंग्रेजी सेना के सहायता के लिए दौसा गई परंतु राज्य के मेवों और गुर्जरों ने विद्रोहियों का साथ दिया फलस्वरुप राज्य में नियुक्त अंग्रेज अधिकारी भरतपुर छोड़कर भाग गए। राज्य में ऐसा लगने लगा कि ब्रिटिश सत्ता समाप्त हो गई है। गदर शांत होने के बाद ही पॉलिटिकल एजेंट ने राज्य में दोबारा अधिकार स्थापित कर सके। भरतपुर में सन 1930—31 में प्रजा परिषद और राष्ट्रीय युवक दल आदि संस्थाएं कायम हुई। उन्हीं दिनों नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए भरतपुर से एक जत्था अजमेर भेजा गया।जिसमें किशन लाल जोशी, वीरेंद्र दत्त, महेश चंद्र, नथाराम, इंद्रभान और ठाकुर पूर्ण सिंह शामिल थे।
सन 1931 में जगन्नाथ प्रसाद कक्कड़ दिल्ली के क्रांतिकारियों को बंदूके पहुंचाने के संबंध में पकड़ लिए गए लगभग 7 माह तक जेल में रहे। सन 1932 में मदन मोहन लाल पोद्दार और गोकुल चंद दीक्षित को राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने के फलस्वरुप 6 माह से अधिक जेल में रखा गया। सन 1937 में जगन्नाथ कक्कड़, गोकुल वर्मा और मास्टर फकीरचंद आदि के साथ भरतपुर कांग्रेस मंडल की स्थापना की एवं कांग्रेस की सहायता का अभियान चलाया। इस प्रकार एक लंबे समय तक भरतपुर में जागृति की चिंगारियां जलती रहीं। भरतपुर में प्रजामंडल की स्थापना सन 1938 में हुई जिसमे गोलीलाल यादव अध्यक्ष चुने गए। भरतपुर रियासत ने प्रारंभ में प्रजामंडल को मान्यता नहीं दी। मान्यता के लिए पूरे जिले में सत्याग्रह आंदोलन किया गया। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 600 से अधिक सत्याग्रही गिरफ्तार हुए जिसमें 32 महिलाएं भी थी। 25 अक्टूबर 1939 को राज्य सरकार और प्रजा मंडल के बीच समझोता हो गया जिसमें प्रजामंडल का नाम बदलकर प्रजा परिषद कर दिया गया साथ ही बंदियों को अगस्त 1940 में रिहा कर दिया गया। महात्मा गांधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं के 10 अगस्त 1942 को गिरफ्तार होने के विरोध में यहां प्रजा परिषद के नेताओं ने आंदोलन तेज कर अपनी गिरफ्तारी दी। इस भारत छोड़ो आंदोलन के तहत स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा तोड़फोड़ की गई। जनवरी 1947 में महाराजा भरतपुर के निमंत्रण पर भारत के वायसराय लार्ड वेवेल और बीकानेर के महाराजा शार्दुल सिंह भरतपुर पक्षी विहार में जल मुर्गियों के शिकार के लिए आए। शिकार के अवस्था के लिए लोगों को बेगार के लिए पकड़ा जाने लगा प्रजा परिषद और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस निर्णय लिया कि राज्य द्वारा ली जाने वाली बेगार का विरोध किया जाए।
दोनों संगठनों ने बेगार विरोधी आंदोलन छेड़ दिया। जूलूस हड़ताल और प्रदर्शन हुए। 5 जनवरी 1947 को लॉर्ड वेवेल और महाराजा शार्दूल सिंह भरतपुर आए तो जनता का विशाल जुलुस काले झंडे हाथ में लिए वेवेल गो बैक के नारे लगाता हुआ हवाई पट्टी तक गया। प्रजा परिषद ने सरकारी किले के सामने धरना देना आरंभ किया। 15 जनवरी को महाराजा के भाई बच्चू सिंह के नेतृत्व में सेना के घुड़सवारों और पुलिस ने सत्याग्रहियों को रौंद डाला जिसमें सावन प्रसाद चतुर्वेदी, राज बहादुर, आले मोहम्मद एवं श्रीमती जमुना देवी चतुर्वेदी आदि कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटे आईं। सरकार ने राजधानी में धारा 144 लगा दी। शहर में हड़ताल हो गई जो 22 दिन तक चली। ढेरों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। इस आंदोलन के कुछ समय बाद ही भारत को 15 अगस्त 1947 को आजाद कर दिया गया।
दोनों संगठनों ने बेगार विरोधी आंदोलन छेड़ दिया। जूलूस हड़ताल और प्रदर्शन हुए। 5 जनवरी 1947 को लॉर्ड वेवेल और महाराजा शार्दूल सिंह भरतपुर आए तो जनता का विशाल जुलुस काले झंडे हाथ में लिए वेवेल गो बैक के नारे लगाता हुआ हवाई पट्टी तक गया। प्रजा परिषद ने सरकारी किले के सामने धरना देना आरंभ किया। 15 जनवरी को महाराजा के भाई बच्चू सिंह के नेतृत्व में सेना के घुड़सवारों और पुलिस ने सत्याग्रहियों को रौंद डाला जिसमें सावन प्रसाद चतुर्वेदी, राज बहादुर, आले मोहम्मद एवं श्रीमती जमुना देवी चतुर्वेदी आदि कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटे आईं। सरकार ने राजधानी में धारा 144 लगा दी। शहर में हड़ताल हो गई जो 22 दिन तक चली। ढेरों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। इस आंदोलन के कुछ समय बाद ही भारत को 15 अगस्त 1947 को आजाद कर दिया गया।