राजस्थान का इतिहास (विशेष परीक्षापयोगी तथ्य) भाग—1
राजस्थान प्राचीन सभ्यताओं की जन्म स्थली रहा है। यहाँ कालीबंगा, आहड़, बैराठ, बागौर, गणेश्वर जैसी अनेक पाषाणकालीन, सिन्धुकालीन और ताम्रकालीन सभ्यताओं का विकास हुआ।
बागौर मध्यपाषाणकालीन और नवपाषाणकालीन सभ्यता से सम्बन्धित है।
कालीबंगा सिन्धुकालीन सभ्यता का नगर है।
आहड़ और गणेश्वर प्राचीनतम ताम्रकालीन सभ्यताएँ हैं।
सरस्वती और दृषद्वती जैसी नदियाँ आर्यों की प्राचीन बस्तियों की शरणस्थली रही है।
महाभारत तथा पौराणिक गाथाओं से प्रतीत होता है कि जांगल (बीकानेर), मरुकान्तार (मारवाड़) आदि भागों से बलराम और कृष्ण गुजरे थे, जो आर्यों की यादव शाखा से सम्बन्धित थे।
आर्य संक्रमण के बाद राजस्थान में जनपदों का उदय हुआ।
सिकन्दर के आक्रमण से परेशान होकर दक्षिण पंजाब की मालव, शिवि तथा अर्जुनायन जातियाँ राजस्थान में आयीं और यहाँ बस गयीं।
इनमें भरतपुर का राजन्य और मत्स्य जनपद, नगरी का शिवि जनपद, अलवर का शाल्व जनपद प्रमुख हैं।
इसके अतिरिक्त 300 ई. पू. से 300 ई. के मध्य तक मालव, अर्जुनायन तथा यौधेयों की प्रभुता का काल राजस्थान में मिलता है।
मालवों की शक्ति का केन्द्र जयपुर के निकट था, कालान्तर में यह अजमेर, टोंक तथा मेवाड़ के क्षेत्र तक फैल गये।
इसी प्रकार रुद्रदामन के लेख से स्पष्ट होता है कि राजस्थान के उत्तरी भाग के यौधेय भी एक शक्तिशाली गणतन्त्रीय कबीला था। यौधेय संभवतः उत्तरी राजस्थान की कुषाण शक्ति को नष्ट करने में सफल हुये थे।
राजस्थान के कुछ भाग मौर्यों के अधीन या प्रभाव क्षेत्र में थे। अशोक का बैराठ का शिलालेख तथा उसके उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मन्दिर मौर्यों के प्रभाव की पुष्टि करते हैं।