भरतपुर जिले का इतिहास (History of Bharatpur)
ऐतिहासिक दृष्टि से भरतपुर जिले का अतीत अनगिनत संघर्षों तथा साहस और पराक्रम की गाथाओं से परिपूर्ण रहा है। इस अंचल के लोग स्वभाव से ही बलिष्ठ और साहसी प्रकृति के होते हैं जिनमें स्वाभिमान की भावना कूट—कूट कर भरी होती है। भरतपुर राज्य का उदय औरंगजेब की मृत्यु के बाद शुरू हुआ जब जयपुर के राजा जयसिंह ने बदनसिंह को 19 नवम्बर 1722 को डीग का राजा बना दिया। बदनसिंह के शासनकाल में कुम्हेर, डीग व भरतपुर के दुर्गों का निर्माण कराया गया। राव बदनसिंह की मृत्यु के बाद 7 जून 1956 को सूरजमल डीग के महाराजा बने। उन्होंने रक्त एवं धन के न्युनतम व्यय से एक विशाल राज्य खड़ा किया। यह राज्य उस समय देश के धनी एवं समृद्ध राज्यों में से एक था। महाराजा सूरजमल की मृत्यु नजीबखां की सेना से लड़ते हुए हिंडन नदी के किनारे शहादरा, दिल्ली में 25 दिसम्बर, 1763 को हुई। जिस समय महाराजा सूरजमल की मृत्यु हुई थी उस समय उनके राज्य में आगरा, अलीगढ़, बल्लभगढ़, बुलन्दशहर, धौलपुर, एटा, हाथरस, मेरठ, मथुरा, अलवर, रोहतक, होडल, गुड़गांव, नारनौल, फर्रूखाबाद, मेवात, रेवाड़ी शामिल थे।
इस राज्य की लंबाई 200 मील और चौड़ाई 100 मील थी। सूरजमल के शासन के अंतिम पांच—छह वर्षों में उसकी वार्षिक आय 175 लाख रूपये से कम नहीं थी तथा कुल वार्षिक खर्च 60 से 65 लाख रूपये के मध्य थी। तत्कालीन महाराजा सूरजमल की महान और अद्वितीय उपलब्धि यह थी कि उन्होंने परस्पर लड़ने वाले जाट—गुटों को मिलाकर एक कर दिया। सूरजमल के बाद जवाहर सिंह ने 5 वर्ष तक भरतपुर पर शासन किया। जवाहर सिंह की मृत्यु के बाद भरतपुर राज्य की शक्ति कमजोर पड़ी। जवाहर सिंह के उत्तराधिकारी रतनसिंह ने केवल नौ माह शासन किया। उसके बाद उनका पुत्र केशरीसिंह शासक बना। महाराजा रणजीतसिंह के शासनकाल में पहली बार 29 सितम्बर 1803 में कम्पनी सरकार के प्रतिनिधि लार्डलेक और भरतपुर रियासत के बीच ऐतिहासिक संधि हुई लेकिन 1804 में रणजीत सिंह और कम्पनी सरकार के बीच ठन गई। इसके फलस्वरूप 3 जनवरी से 22 फरवरी तक लार्डलेक के नेतृत्व में भरतपुर किले पर कब्जा जमाने के लिए कम्पनी और होल्कर की सम्मिलित सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ परन्तु बाद में संधि हो गई। कालान्तर में किशनसिंह भरतपुर के राजा बने। उनकी मृत्यु के बाद 14 अप्रैल, 1929 को उनके पुत्र बृजेन्द्र सिंह को भरतपुर का महाराज बनाया गया। भरतपुर में संगठित राजनीतिक आंदोलन का आरंभ 1938 में प्रजा मंडल के गठन से हुआ। 17 मार्च 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली रियासतों को मिलाकर मत्स्य राज्य अस्तित्व में आया। इस राज्य को 1949 में वृहद् संयुक्त राज्य में और 1950 में राजस्थान में विलय हुआ और तब से भरतपुर एक पृथक जिला बन गया। आगे चलकर इसी जिले का हिस्सा रहे धौलपुर को भी पृथक जिला बनाया गया।