इस अंचल में प्रदर्शनकारी कलाओं में नौटंकी, भुटनी, हुरंगे और लांगुरियों की प्रधानता है। नौटंकी की खयाल गायकी में यद्यपि नक्कारों का प्रयोग प्रमुखता से होता है, किन्तु इसके साथ ही ढोलक, ढपली, सारंगी तथा चिकारा आदि अन्य प्रकार के वाद्य यंत्र भी बजाए जाते हैं। खयाल समूह गायन के रूप में किया जाता है जिसे मीणा और गुजर जाति के लोग अधिक गाते हैं। श्रृंगारिक व प्रेम भावना प्रधान खयालों में गायन ढप तथा बड़े नक्कारे के साथ किया जाता है। जिसमें एक विशेष प्रकार के उल्लासमय वातावरण की सृष्टि होती है। जिकड़ी में ऐतिहासिक आख्यानों तथा राजा महाराजाओं अथवा वीर पुरूषों की विरूदावली के रूप में गाया जाता है। जिसके कथानक में वीर रस की प्रधानता रहती है। यह मेले व त्यौहारों तथा दंगलों पर आयोजित होती है।
होली के बाद पंचमी से लेकर अष्टमी तक भरतपुर जिले के ग्रामीण अंचलों में हुरंगे का आयोजन किया जाता है। होली की मस्ती में सराबोर पुरूष व महिलाएं बम, ढोल तथा मांट की ताल पर सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार के स्वांग धरकर नृत्य व गीतमय हुरंगे में मशगूल हो जाते हैं। इनमें शिव व शक्ति की महिमा का गायन किया जाता है। अपनी विशिष्ट गायन शैली के कारण लांगुरिया गीत करौली व भरतपुर में आपस में काफी मिलते हैं।