अढ़ाई दिन का झोपड़ा
अढ़ाई दिन का झोपड़ा मूलत: प्रथम चौहान सम्राट बीसलदेव द्वारा सन् 1153 में संस्कृत पाठशाला के लिए बनाया गया। बाद में शहाबुद्दीन गौरी ने इस विद्यालय को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। परिवर्तन का यह कार्य सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश के समय में हुआ। परिवर्तन के समय सात मेहराब बनाए गए। तीन केन्द्रीय मेहराबों पर तीन पंक्तियों में लिखावट है। यह लिखावट पत्थरों पर खुदी हुई अरबी तथा नागरी या सूफी लिपि में है। एक मुसलमान फकीर पंजाबशाह का उर्स यहां लगने के समय से ही यह स्थान अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहलाने लगा।
अढ़ाई दिन के झोपड़े के बारे में एक मत और है कि 1192 ई. में मुहम्मद ग़ोरी ने नष्ट करके उसके स्थान पर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिद बनवाई थी जबकि कुछ विद्वानों का मत है, कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था। कहावत है, कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी, किन्तु ऐतिहासिकों का मत है, कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्थान पर मराठा काल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है।