राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-17)
राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंश
चौहान वंश भाग—1
- बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में शाकम्भरी के चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने अपनी विजयों से उत्तरी भारत की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया था।
- उसने चन्देल शासक परमार्दीदेव के देशभक्त सेनानी आल्हा और ऊदल को मारकर 1182 को महोबा को जीत लिया।
- कन्नौज के गाहड़वाल शासक जयचन्द का दिल्ली को लेकर चौहानों से वैमनस्य था।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय भी अपनी दिग्विजय में कन्नौज को शामिल करना चाहता था। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान तृतीय और जयचन्द की महत्त्वाकांक्षा दोनों के वैमनस्य का कारण बन गयी।
- पृथ्वीराजरासो दोनों के मध्य शत्रुता का कारण जयचन्द की पुत्री संयोगिता को बताता है। पृथ्वीराज तृतीय ने 1191 में तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी को पराजित कर भारत में तुर्क आक्रमण को धक्का पहुँचाया।
- तुर्कों के विरुद्ध लड़े गये युद्धों में तराइन का प्रथम युद्ध हिन्दू विजय का एक गौरवपूर्ण अध्याय है।
- पृथ्वीराज चौहान द्वारा पराजित तुर्की सेना का पीछा न किया जाना इस युद्ध में की गयी भूल के रूप में दर्ज है।
- इस भूल के परिणामस्वरूप 1192 में मुहम्मद गौरी ने तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चैहान
- तृतीय को पराजित कर दिया।
- इस हार का कारण राजपूतों का परम्परागत सैन्य संगठन माना जाता है। पृथ्वीराज चौहान अपने राज्यकाल के आरंभ से लेकर अन्त तक युद्ध लड़ता रहा, जो उसके एक अच्छे सैनिक और सेनाध्यक्ष होने को प्रमाणित करता है।
- सिवाय तराइन के द्वितीय युद्ध के, वह सभी युद्धों में विजेता रहा। वह स्वयं अच्छा गुणी
- होने के साथ-साथ गुणीजनों का सम्मान करने वाला था।
- जयानक, विद्यापति गौड़, वागीश्वर, जनार्दन तथा विश्वरूप उसके दरबारी लेखक और कवि थे, जिनकी कृतियाँ उसके समय को अमर बनाये हुए हैं।
- जयानक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की थी। पृथ्वीराजरासो का लेखक चन्दबरदाई भी पृथ्वीराज चौहान का आश्रित कवि था।
काम के नोटस