बांसवाड़ा (Banswara) का ऐतिहासिक परिदृश्य
ऐतिहासिक तौर पर वागड़ राज्य की स्थापना के कई तथ्य पाए जाते हैं। एक मान्यता के अनुसार बंसिया भील ने बांसवाड़ा (Banswara) की नीव रखी थी जबकि एक दूसरा मत यह है कि गुहिलोतों ने वागड़ राज्य की स्थापना की थी। इन तथ्यों के बावजूद ज्यादातर यही माना जाता है कि इस राज्य के वास्तिवक संस्थापक सामन्तसिंह थे। उन्होंने 1179 ईस्वी के लगभग वागड़ प्रदेश को अधिकृत किया। सामन्तसिंह के पुत्र सिंहडदेव के पौत्र वीरसिंह देव (विक्रम सम्वत 1343—1349) तक वागड़ के गुहिलवंशीय राजाओं की राजधानी बड़ौदा—डूंगरपुर थी। जब वीरसिंह के पोते डूंगरसिंह ने डूंगरपुर शहर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनाया तब से वागड़ के राज्य का नाम उसकी नई राजधानी के नाम से डूंगरपुर प्रसिद्ध हुआ। यहां के उत्तराधिकारी रावल उदयसिंह मेवाड़ महाराणा सांगा के साथ लड़ाई में मारे गए। उन्होंने जीते जी ही डूंगरपुर राज्य के दो हिस्से कर पश्चिमी हिस्सा अपने ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज को और पूर्व का अपने पुत्र जगमाल को दे दिया। पृथ्वीराज की राजधानी डूंगरपुर रही और जगमाल की राजधानी बांसवाड़ा। बांस के जंगलों की बहुतायत अथवा मेजर अर्सकिन के अनुसार यहां के प्रतापी शासक बांसिया भील को जगमाल द्वारा मार दिए जाने के कारण इस क्षेत्र का नाम बांसवाड़ा (Banswara) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।सन् 1945 में बांसवाड़ा (Banswara) में प्रजा मंडल नामक संगठन वहां के शासक संरक्षण में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना के उद्देश्य से बनाया गया जिसके द्वारा विभिन्न प्रशासकीय व अन्य सुधारों की मांग की गई। रियासतों के भारतीय संघ में विलय के साथ ही बांसवाड़ा रियासत और कुशलगढ़ ठिकाने का वृहतर राजस्थान के संयुक्त राज्य में 1949 में विलय हो गया और इन जागीरों को मिलाकर बांसवाड़ा (Banswara) नामक एक पृथक् जिला बना दिया गया। इस प्रकार जिले में भूतपूर्व बांसवाड़ा रियासत और कुशलगढ़ ठिकाने को सम्मिलित किया गया है।