सिवाना दुर्ग (Fort Sivana)
सिवाना का किला इतिहास प्रसिद्ध रहा है। यह किला सिवाना तहसील एवं पंचायत समिति मुख्यालय पर ही एक उंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इसका निर्माण पंवार राजा भोज के पुत्र श्री वीरनारायण ने करवाया था। अलाउद्दीन खिलजी, राव मल्लीनाथ, तेजपाल, राव मालदेव, राव चंद्रसेन, अकबर, कल्ला रायमलात, मोटाराजा, उदयसिंह महाराज, जसवंतसिंह प्रथम, औरंगजेब, राजा सुजानसिंह तथा अजीत सिंह आदि इतिहास प्रसिद्ध पुरूषों का इस किले से सम्बन्ध रहा है। किले में पानी का बड़ा तालाब और निवास के महल अब भी टूटी—फूटी हालत में देखने को मिलते हैं। जिले के मुख्यद्वार की विशालता योद्धाओं की वीरोचित भावनाओं की बोलती तस्वीर है। यह दुर्ग चारों ओर रेतीले भाग से घिरा हुआ है परंतु इसके साथ-साथ यहां छप्पन के पहाड़ों का सिलसिला पुर्व से पश्चिम तक फैला हुआ है। इस पहाड़ी सिलसिले के अंतगर्त हलदेश्वर का पहाड़ सबसे ऊँचा है, जिस पर सिवाना का सुदृढ़ दुर्ग बना है। सिवाना के दुर्ग का गौरवशाली इतिहास है। प्रारंभ में यह प्रदेश पंवारों के आधीन था। इस वंश में वीर नारायण प्रतापी शासक हुआ। उसी ने सिवाना दुर्ग को बनवाया था। बाद में यह दुर्ग चौहानों के अधिकार में आ गया। इसके बाद यह दुर्ग अलाउद्दीन खिलजी के कब्जे में चला गया। अलाउद्दीन के बाद राव मल्लीनाथ के भाई राठौड़ जैतमल ने इस दुर्ग पर कब्जा कर लिया और कई वर्षों तक जैतमलोतों की इस दुर्ग पर प्रभुता बनी रही। जब मालदेव मारवाड़ का शासक बना तो उसने सिवाना दुर्ग को अपने अधिकार में ले लिया। अकबर के समय राव चन्द्रसेन ने सिवाना दुर्ग में रहकर बहुत समय तक मुगल सेनाओं का मुकाबला किया। अकबर ने अपने पोषितों के दल को बढ़ाने के लिए इस दुर्ग को राठौड़ रायमलोत को दे दिया।